निर्माण उद्योग – Class 10th Social Science Notes in Hindi

निर्माण-उद्योग या उद्योग

कृषि तथा उत्खनन से प्राप्त प्राथमिक उत्पादों ( कच्चा माल ) को संसाधित करके तैयार माल में बदलने की प्रक्रिया निर्माण-उद्योग या उद्योग कहलाती है | 

         भारत एक कृषि-प्रधान देश है, फिर भी इसकी अर्थव्यवस्था में उद्योग का विशेष महत्त्व है | 

उद्योग की स्थापना के कारक 

किसी स्थान पर उद्योग स्थापित करने के लिए कुछ अनिवार्य सुविधाओं की आवश्यकता होती है | इन्हें उद्योग की स्थापना के कारक कहते हैं | ये कारक निम्नलिखित हैं – 

  1. कच्चा माल – उद्योग में कच्चा माल को ही तैयार माल में बदला जाता है, जैसे गन्ना से चीनी, कपास से सूती वस्त्र, बॉक्साइट से टीन, लौह-अयस्क एवं कोयला से लोहा एवं इस्पात | 
  2. शक्ति के साधन – उद्योग को चलाने के लिए शक्ति अर्थात ऊर्जा की आवश्यकता होती है | यह शक्ति मुख्यतः कोयला, खनिज तेल तथा जलविधुत से प्राप्त होती है |  
  3. संचार के साधन – कच्चा माल को औद्योगिक केन्द्रों तक लाने तथा तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने में सड़क, रेल तथा जल परिवहन की आवश्यकता पड़ती है | 
  4. श्रम – उद्योगों के लिए बड़ी संख्या में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है | 
  5. बाजार – तैयार माल की खपत के लिए बाजार आवश्यक है | अत: उद्योगों की स्थापना के समय यह देखा जाता है कि बाजार औद्योगिक केन्द्रों के निकट हो या परिवहन के साधन द्वारा जुड़ा हुआ हो | 
  6. पूँजी – मशीनों को लगाने, कच्चे माल को खरीदने, श्रमिकों को वेतन देने तथा तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने के लिए एक बड़ी पूँजी की आवश्यकता पड़ती है | 

उद्योगों का वर्गीकरण 

उद्योगों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जाता है, जैसे – 

  1. कच्चे माल के स्रोत के आधार पर 
  1. कृषि पर आधारित उद्योग – सूती वस्त्रोद्योग, रेशमी वस्त्रोद्योग, चीनी उद्योग, जूट उद्योग, खाद्य तेल उद्योग | 
  2. खनिज पर आधारित उद्योग – लोहा, इस्पात उद्योग, ऐलुमिनियम उद्योग, ताँबा उद्योग, सीमेंट उद्योग | 
  3. वन पर आधारित उद्योग – कागज उद्योग, लाह उद्योग, लकड़ी एवं फर्नीचर उद्योग | 
  4. जंतु पर आधारित उद्योग – ऊनी वस्त्रोद्योग, चमड़ा उद्योग, दुग्ध उद्योग, मत्स्योद्योग | 

2. आकार के आधार पर 

  1. बड़े पैमाने का उद्योग – इन उद्योगों में बड़ी संख्या में श्रमिकों और बहुत मात्रा में पूँजी की सहायता से अधिक उत्पादन होता है | मिल पर आधारित सूती वस्त्रोद्योग, लोहा-इस्पात उद्योग, जूट ( पटसन ) उद्योग इसके अंतर्गत आते हैं | 
  2. माध्यम, पैमाने का उद्योग – छोटी चीनी और चावल मिल, साइकिल, रेडियो और टेलीविजन उद्योग |  
  3. छोटे पैमाने का उद्योग – कम पूँजी और श्रम के सहारे इनमें कम उत्पादन होता है | खिलौना और आभूषण निर्माण, हस्तशिल्प उद्योग, गुड़ और खाण्डसारी उद्योग इसके उदहारण हैं | 

3. कच्चे माल और तैयार माल के भार के आधार पर – 

  1. भारी उद्योग – इनमें भारी कच्चे माल से भारी वस्तुएँ निर्मित होती हैं, जैसे – लोहा इस्पात | 
  2. हल्का उद्योग – इनमें हलके कच्चे माल से हलकी वस्तुएँ विनिर्मित होती हैं, जैसे – साइकिल उद्योग, सिलाई मशीन उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उद्योग | 

4. स्वामित्व के आधार पर – 

  1. सार्वजनिक क्षेत्र का उद्योग – इनका संचालन सरकार स्वयं करती है, जैसे – समुद्री जहाज का निर्माण दुर्गापुर, भिलाई और राउरकेला का लोहा इस्पात उद्योग,भारत हेवी इलेक्ट्रीक लिमिटेड (BHEL) और स्टील ऑथिरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (SAIL) | 
  2. निजी क्षेत्र का उद्योग – टाटा लोहा एवं इस्पात उद्योग (टिस्को) | 
  3. सहकारी क्षेत्र का उद्योग – जब उद्योग सहकारी समितियों द्वारा चलाये जाते हैं, तो इन्हें सहकारी क्षेत्र का उद्योग कहते हैं | दक्षिण भारत की अधिकतर चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में हैं | 
  4. संयुक्त क्षेत्र का उद्योग – जब उद्योग दो या दो से अधिक व्यक्तियों के द्वारा चलाये जाते हैं, तो इन्हें संयुक्त क्षेत्र का उद्योग कहते हैं | ऑयल इंडिया लिमिटेड और गुजरात  ऐल्कली लिमिटेड इसके उदाहरण हैं | 

5. उत्पाद के उपयोग के आधार पर – 

  1. आधारभूत उद्योग – इनमें अन्य उद्योगों में काम आने वाले सामान का विनिर्माण होता है, जैसे – लोहा-इस्पात उद्योग | 
  2. उपभोक्ता उद्योग – इनमें उपभोक्ता के लिए सामग्री बनायी जाती है, जैसे- सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, पोशाक उद्योग, सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग, खिलौना उद्योग, साइकिल उद्योग, कागज और चीनी उद्योग इत्यादि | 

 सूती वस्त्रोद्योग –

सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा सुव्यावस्थित उद्योग है | सबसे अधिक व्यक्तियों को आजीविका देने की दृष्टि से इस उद्योग का स्थान सर्वोपरि है | 13 वीं शताब्दी में मार्कोपोलो और 17 वीं शताब्दी में ट्रेवनियर ने अपने-अपने लेखों में भारतीय वस्त्र उद्योग की गरिमा का सुन्दर वर्णन किया है | 

  1.   विकास – आधुनिक ढंग का पहला कारखाना 1818 ई० में कोलकाता के निकट फोर्ट ग्लोस्टर में स्थापित किया गया, किन्तु प्रयास असफल रहा | 1854 ई ० में भारतीय वस्त्र कारखाना कावसजी नाना भाई डाबर द्वारा मुंबई में स्थापित किया गया | 1905 में स्वदेशी आन्दोलन और प्रथम विश्व – युद्ध से इस उद्योग को बड़ा प्रोत्साहन मिला | 

   स्थानीयकरण 

सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित कारक महत्त्वपूर्ण हैं – 

  1. कच्चा-माल – चूँकि रुई बहुत भारी नहीं होती है, अत:जिन प्रदेशों में कपास उत्पन्न नहीं होता है उन प्रदेशों में बहार से आयात की गई रुई से सूती वस्त्र मिलों को चलाया जाता है | 
  2. औद्योगिक शक्ति – सूती धागा कातने और सूती वस्त्र बनाने की फैक्ट्रियों के लिए कोयले या जल-विधुत् शक्ति की आवश्यकता होती है | 
  3. जलापूर्ति – वस्त्र उद्योगों में जल की आवश्यकता भारी मात्रा में होती है | वस्त्रों की धुलाई, रंगाई, छपाई, कलफ कराई आदि में शुद्ध जल आवश्यक होता है, जो नदियों, सोतों, नलकूपों आदि से प्राप्त किया जाता हैं | 
  4. आर्द्रता – सूत की कताई और बुनाई में धागा न टूटे, इसके लिए जलवायु में आर्द्रता आवश्यक होती है | 
  5. श्रमिक – इस उद्योग के लिए अन्य उद्योग की अपेक्षा अधिक श्रमिक की आवश्यकता रहती है | 
  6. परिवहन के साधन – इस उद्योग की स्थापना में बाहर से कपास मंगाने तथा उत्पादित वस्तुओं के निर्यात के लिए सस्ते परिवहन की आवश्यकता है | 

वितरण 

यह देश का सबसे अधिक विकेंद्रीकृत उद्योग है | आज देश में 93% वस्त्र विक्रेंद्रिकृत क्षेत्र में तैयार किया जाता है | सूती-वस्त्र उद्योग हमारे देश में निम्न प्रकार से विकेंद्रित है –

  1. महाराष्ट्र – यह राज्य प्रथम स्थान रखता है | यहाँ पर 157 मिलें हैं, जिनमें से अकेले मुम्बई महानगर में 62 मिलें हैं | इसलिए इसे सुतिवास्त्रों की राजधानी (Cottonopolis of India) कहते हैं | 
  2. गुजरात – यह दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक राज्य है | यहाँ पर 110 मिले हैं | 
  3. मध्यप्रदेश – यहाँ पर कपास बहुतायत से उत्पन्न की जाती है | यहाँ 24 मिलें हैं | 
  4. उत्तरप्रदेश – उत्पादन की दृष्टि से इसका चौथा स्थान है | यहाँ पर 36 मिलें है | “कानपुर उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहलाता है |”
  5. पश्चिम बंगाल – इस राज्य में यह बाजार-स्थापना उद्योग है, जबकि महाराष्ट्र में यह कच्चा-माल स्थापना उद्योग है | 
  6. तमिलनाडु – इस राज्य में मीलों की संख्या सबसे अधिक 208 हैं | उत्पादन की दृष्टि से इसका स्थान छठा है | 
  7. कर्नाटक – यहाँ 30 मिलें हैं | देवनगिरी, हुबली, मैसूर आदि में बड़ी-बड़ी वस्त्र मिलें स्थित हैं | 

निर्यात व्यापर 

भारत से दक्षिणी-पूर्वी एशिया, पूर्वी अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका को सिलेसिलाये कपड़ो का निर्यात होता है | 

जूट या पटसन उद्योग 

जूट उद्योग भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्योग है | इसमें प्रत्यक्ष रूप में 2.61 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध है तथा 40 लाख कृषक परिवारों का जीविकोपार्जन होता है | भारत में जूट की पहली मिल 1859 में कोलकाता के समीप रिशरा में स्थापित हुई | धीरे-धीरे इसकी मिलें हुगली नदी के तटपर खुलने लगीं और यह क्षेत्र जूट से बने सामानों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक बन गया | 

       1947 में भारत विभाजन के बाद जूट उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र बंगलादेश (तत्कालीन पाकिस्तान) में चला गया, भारत से जूट से बने सामानों का विश्व में सबसे अधिक नियांत होता है और इससे विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है |   

रेशमी वस्त्र उद्योग 

रेशमी वस्त्रोद्योग भारत का एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है | इसका कच्चा माल रेशम है, जो चार प्रकार का होता है, यथा मलवरी, तसर, ईरी और मूँगा |

     भारत रेशमी वस्त्र का निर्यातक है और इसका निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका, युनाइटेड किंगडम, रूस, सऊदी अरब, सिंगापुर, इत्यादि को किया जाता है | 

कृत्रिम वस्त्र उद्योग 

कृत्रिम वस्त्र नाइलॉन,डेक्रॉन , रेयॉन इत्यादि कृत्रिम धागों से बनाये जाते हैं | ये धागे पेट्रो-रसायन उत्पाद से तैयार होते हैं | 

चीनी उद्योग 

विश्व के चीनी उत्पादक देशों में भारत का ब्राजील के बाद दूसरा स्थान है | कृषि पर आधारित उद्योगों में इसका स्थान दूसरा है | यह राष्ट्रिय आय का एक मुख्य स्रोत है | 

उत्पादन 

1931 ई० में भारत में 1.63 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ, जा बढ़कर 1951 ई० में 11.34 लाख टन तथा 1971 ई० में 37.4 लाख टन हो गया | 

वितरण 

भारत में चीनी का उत्पादन मुख्यतः गन्ना से होता है, जो भार हासमूलक ( भार खोने वाला ) कच्चा माल है | इस कारण चीनी उद्योग का विकास गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में हुआ है | 

           उत्तर भारत में चीनी उद्योग के विकास के मुख्य कारण गन्ना की उपलब्धि, समतल भूमि, यातायात की सुविधा, विस्तृत बाजार तथा सस्ता श्रम इत्यादि हैं | 

व्यापर 

भारत चीनी का निर्यातक देश है | किन्तु 1992- 93 के बाद चीनी के उत्पादन में तेजी से गिरावट हुई और उपभोग बढ़ता ही रहा | 

समस्याएँ 

भारतीय चीनी उद्योग निम्नलिखित समस्याओं से ग्रसित हैं – 

  1. गन्ने की खेती में कमी-बेशी होती रहती है, जिसके कारण कभी-कभी मीलों को पर्याप्त कच्चा माल नहीं मिल पाता है | 
  2. उच्च कोटि के गन्ने की खेती कम होती है, अत: रस में कमी हो जाती है | 
  3. गन्ना पेराई की अवधि कम है | 
  4. मशीनें पुरानी हैं तथा पुराने तकनीक से काम लिया जाता है |

लोहा-इस्पात उद्योग 

लोहा-इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योग है | खनिज पर आधारित उद्योगों में यह सबसे महत्त्वपूर्ण है | इससे विभिन्न कल-कारखानों के लिए मशीन तथा संयंत्र, कृषि के उपकरण का परिवहन के साधन बनाए जाते हैं | 

ऐतिहासिक विकास 

आधुनिक ढंग का बड़ा कारखाना 1907 ई० में स्वर्णरेखा घाटी के साकची नामक स्थान पर खुला | इसका नाम “टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी” (TISCO ) रखा गया | 

              स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद विशेषकर द्वितीय पंचवर्षीय योजना काल में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तेजी से हुआ | 

उत्पादन 

भारत विश्व के लोहा-इस्पात उत्पादक देशों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है | दिनों-दिन भारत में कच्चा लोहा, इस्पात पिंड तथा बिक्री योग्य इस्पात के उत्पादन में वृद्धि हो रही है | 

व्यापार 

भारत एक ओर-इस्पात के निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा कमाता है, तो दूसरी ओर अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए कुछ विशेष किस्म के इस्पात का आयात करता है | 

समस्याएँ 

इस उद्योग की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं – 

  1. सरकारी क्षेत्र की इकाइयों की अकुशलता | 
  2. क्षमता से कम उत्पादन | 
  3. छोटे कारखानों की रुग्नता | 
  4. अच्छा कोयला का अभाव | 

ऐलुमिनियम उद्योग 

ऐलुमिनियम उद्योग भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण धातु उद्योग है | ऐलुमिनियम लचीला, हल्का, जंगरोधी और विधुत एवं ताप का सुचालक होता है,  

               बॉक्साइट इस उद्योग का कच्चा माल है | बॉक्साइट को गलाने में बहुत अधिक बिजली खर्च होती है | 

ताँबा प्रगलन उद्योग 

ताँबा स्वयं एक उपयोगी धातु है और इससे पीतल, काँसा, जर्मन सिल्वर, रोल्डगोल्ड, अष्टधातु आदि मिश्रित धातु बनाई जाती है | भारत में ताँबा गलाने का पहला कारखाना घाटशिला ( झारखण्ड ) में भारतीय ताँबा निगम द्वारा स्थापित किया गया | दूसरा कारखाना खेतरी में स्थापित हुआ | तीसरा कारखाना तूतीकोरिन ( तमिलनाडु ) में है |

रसायन उद्योग 

आकर की दृष्टि से भारत रसायन उद्योग एशिया में तीसरे और विश्व में 12 वें स्थान पर है | 

रसायन उद्योग दो प्रकार के हैं – 

  1. कार्बनिक रसायन ( पेट्रोकेमिकल उद्योग ) – इस उद्योग में अशुद्ध पेट्रोलियम के परिष्करण से अनेक रसायन प्राप्त किये जाते हैं, जिससे कृत्रिम रेशे, कृत्रिम रबर, पलास्टिक की वस्तुएँ, रंग-रोगन तथा औषधियों का निर्माण होता है | 
  2. अकार्बनिक रसायन उद्योग – इस उद्योग में गंधकाम्ल ( सल्फ्यूरिक एसिड ), सोडा-ऐश, नाइट्रिक एसिड, कीटनाशक दवा ( जैसे डी० डी० टी० ) इत्यादि का उतपादन होता है | 

उर्वरक उद्योग 

उर्वरक उद्योग का भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान है | भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ मिट्टी की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए उर्वरक का उपयोग जरुरी है | 

सीमेंट उद्योग 

सीमेंट एक बहुत ही उपयोगी पदार्थ है, जिसका उपयोग भवन निर्माण, सड़क और पुल निर्माण एवं अन्य ढांचे में होता है | सीमेंट के उत्पादन में विश्व में भारत का दूसरा स्थान है | 

        चूना-पत्थर, सिलिका, जिप्सम और कोयला इस उद्योग के मुख्य कच्चे माल हैं |  

परिवहन उपकरण उद्योग 

रेलगाड़ियाँ, मोटरगाड़ियाँ, जलपोत और वायुयान परिवहन के साधन हैं | इनके विभिन्न उपकरण इंजीनियरिंग उद्योग के अंतर्गत साधन हैं | 

  1. रेल उपकरण उद्योग – भारत में रेलवे इंजन तथा डिब्बे बनाने के अनेक कारखाने हैं | मोकामा ( बिहार ) में भारत वैगन एण्ड इंजीनियरिंग कम्पनी लिमिटेड रेलवे बैगन तैयार करता है | 
  2. मोटरगाड़ी उद्योग – भारत में कार, जीप, बस, ट्रक, मोटर-साइकिल, स्कूटर, साइकिल इत्यादि का निर्माण बड़े पैमाने पर होता है | 
  3. जलपोत निर्माण उद्योग – जलयान निर्माण उद्योग एक बड़ा उद्योग है, जिसमें बहुत अधिक पूँजी लगाती है | भारत में कोच्चि, विशाखापत्तनम, कोलकाता, मुम्बई और मझगाँव जलयान बनाने के पाँच प्रमुख केंद्र हैं | 
  4. वयूयान उद्योग – भारत में वायुयान का निर्माण बंगलुरु, कोरापुत ( उड़ीसा ), नासिक, हैदराबाद, कानपुर इत्यादि स्थानों पर होता है | 

सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक उद्योग 

इसे उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग या ज्ञान पर आधारित उद्योग भी कहा जाता है | इसमें विशिष्ट नए ज्ञान, उच्च प्रौद्योगिकी और निरंतर शोध एवं अनुसंधान की आवश्यकता रहती है | 

       बंगलुरु को इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी तथा सिलिकन सिटी ( Silicon City ) कहा जाता है | यह रोजगार तथा विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है | इससे जुडी अर्थव्यवस्था को ज्ञान अर्थव्यवस्था भी कहते हैं | 

सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग 

सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग भारत में बहुत पहले से होता आया है | आज भी तेल शोधक कारखानों के अवशेष अलकतरा से विभिन्न गंध और गुणवाले पदार्थ प्राप्त कार कृत्रिम प्रसाधन बनाये जाते हैं | इन उद्योगं का प्रसार पूरे भारत में हुआ है | 

खिलौना उद्योग 

            भारत में खिलौना मुख्यत: अन्य उद्योग, वस्त्र उद्योग, प्लास्टिक उद्योग आदि के बेकार टुकड़े या रद्दी का प्रयोग कर बनता है | यह थोड़े से प्रशिक्षण और थोड़ी पूँजी से चलता है | अनेक देशों ने चीन में बने इन खिलौनों को हानिकारक मानकर इनपर प्रतिबंध लगा दिया है और वे भारत में बने खिलौने का आयात करने लगे हैं | 

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान 

               किसी देश का निर्माण उद्योग उसकी अर्थव्यवस्था और विकास के स्तर का परिचायक है | यह अन्य पूर्वी एशियाई देशों में निर्माण उद्योग के सकल घरेलू उत्पाद में 25 से 35 प्रतिशत योगदान से काफी कम है | 12 प्रतिशत वृद्धि की दर पूरा करने के लिए राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा परिषद की स्थापना की गई है | 

उद्योग से उत्पन्न प्रदुषण का प्रभाव 

चर्म उद्योग, तेल शोधक उद्योग, डिजल, कोयला आधारित उद्योग, धातु उद्योग और कागज उद्योग प्रदुषण फैलाने वाले पाँच मुख्य उद्योग हैं | 

  1. वायु प्रदुषण – धूल, धुआँ आदि की अधिकता से वायु अधिक प्रदूषित होती है | कारखानों से दूषित गैसों और धुआँ का निष्काषण होता है और ये वायु में मिलाकर उसे प्रदूषित कर देते हैं | इसका कुप्रभाव मानव और पशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है | 
  2. जल-प्रदूषण – उद्योगों के अवांछनीय उत्पाद जैसे औद्योगिक कचरा, प्रदूषित जल, जहरीली गैसें, रासायनिक अवशेष इत्यादि बहते जल या झीलों में बहा दिये जाते हैं | 
  3. तापीय प्रदूषण – जब कारखानों और तापघरों से जल को बिना ठंढा किए ही नदी तथा तालाबों में प्रवाहित कर दिया जाता है, तो जल में तापीय प्रदुषण होता है |
  4. भूमि प्रदुषण – औद्योगिक संयंत्र के समीप भूमि पर औधोगिक कचरे, मलवे, रसायन, लवण आदि के जमा होते रहने से भूमि प्रदुषण होता है | वर्षा के समय ये जल के साथ बहते हैं | 
  5. ध्वनि प्रदूष्ण – ध्वनि प्रदुषण का तात्पर्य ऊँची ध्वनि और अत्यधिक शोर से है | ध्वनि प्रदुषण बढ़ाने में उद्योगों का बड़ा हाथ है | 

प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय 

औद्योगिक क्षेत्रों में पर्यावरण प्रदुषण को योजनाबद्ध तरीके से रोका जा सकता है | इसके लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं – 

  1. उद्योगों को उचित निर्धारित क्षेत्र में स्थापित करना | 
  2. मशीनों की गुणवत्ता को बनाए रखना | 
  3. कारखानों में ऊँची चिमनी लगाना तथा इनमें इलेक्ट्रॉनिक अपक्षेप, स्क्रबर उपरकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को पृथक करने के लिए उपकरण लगाना | 
  4. धुआँ रोकने के लिए कोयला के स्थान पर तेल का उपयोग करना | 

 

 

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