लघु उत्तरीय प्रश्न
- जैव विकास का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – अनेक प्रमाणों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी पर वर्त्तमान जटिल प्राणियों का विकास प्रारंभ में पाए जानेवाले सरल प्राणियों में परिस्थिति और वातावरण के अनुसार होनेवाले परिवर्तनों के कारण हुआ | सजीव जगत में होनेवाले इस परिवर्तन को जैव विकास कहते हैं |
2. आनुवंशिक गुण ( या पैतृक गुण ) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – माता-पिता के ऐसे गुण जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके संतानों में संचारित होते रहते हैं, आनुवंशिक गुण या पैतृक गुण कहलाते हैं |
3. आण्विक जातिवृत्त क्या है ?
उतर – मानव – सहित विभिन्न जीवों के पूर्वजों की खोज उनके DNA में हुए परिवर्तन का अध्ययन कर किया जा सकता है |DNA में परिवर्तन का अर्थ उसके प्रोटीन अनुक्रम में परिवर्तन से है |DNA अनुक्रम के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा किसी जीव के पूर्वजों की खोजआण्विक जातिवृत ( molecular phylogeny ) कहलाती है |
4. समजात एवं समरुप अंग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – विभिन्न वातावरण में रहनेवाले जंतुओं के ऐसे अंग जो संरचना एवं उत्पत्ति के दृष्टिकोण से एकसमान होते हुए भी कार्य में भिन्न – भिन्न होते हैं , उन्हें समजात अंग कहते हैं , जैसे मेढ़क एवं पक्षी के अग्रपाद रचना एवं उत्पत्ति में समान होते हुए भी मेंढ़क में कूदने एवं पक्षियों में उड़ने का कार्य करते हैं | इसके विपरीत जंतुओं के ऐसे अंग जो रचना एवं उत्पत्ति के दृष्टिकोण में एक – दूसरे से भिन्न होते हुए भी एकसमान कार्य करते हैं , उन्हें समरूप अंग कहते हैं , जैसे – तितली तथा पक्षी के पंख |
5. आनुवंशिकता का अर्थ बताएँ |
उत्तर – एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीवों में मूल गुणों का संचरण आनुवंशिकता कहलाता है | इन गुणों का संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनकों के युग्मकों के द्वारा होता है | अतः जनकों से उनके संतानों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी युग्मकों के माध्यम से पैतृक गुणों का संचरण आनुवंशिकता कहलाता है |
6. जीनप्ररूप या जीनोटाइप किसे कहते हैं ?
उत्तर – किसी जीव या प्राणी की जीनी संरचना उस जीवप्ररूप या जीनोटाइप के कारण प्रकट होने वाले गुणों की जीव का निर्धारण जनकों के युग्मकों के संयोजन के समय ही हो जाता है | संतति में पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुणों का संचरण अपने जनकों से होता है |
7. जीन कोश क्या है ?
उत्तर – किसी भी पजाति विशेष के एक समष्टि या आबादी में स्थित समस्त जीन उस आबादी का जीन कोश कहलाता है | जीन कोश के कुछ जीन में वातावरणीय कारणों से कुछ बदलाव आ सकता है | जीन में होने वाले बदलाव पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशगत संचारित होते रहते हैं |
8. जाति उद्-भवन क्या है ?
उत्तर – डार्विन ने बताया कि किसी भी स्थान पर जीवों के लक्षणों में थोड़ा-थोड़ा परिवर्तन होता रहता है | इसके साथ ही प्रकृति की भौतिक परिस्थितियों में भी परिवर्तन होता रहता जिससे लगातार प्राकृतिक चयन भी उनके विरुद्ध काम करते हैं | इन कारणों से सैकड़ो वर्षो में इनके लक्षणों में काफी परिवर्तन हो जाते हैं | जिससे नई प्रजाति की उत्पत्ति होती है | इसे ही जाति उद्-भवन कहा जाता है |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. जैव विकास क्या है ? डार्विन के प्राकृतिक चयन सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन करें |
उत्तर – सजीव जगत में होनेवाले परिवर्तन को जैव विकास कहते हैं | जैव विकास के संबंध में दो डार्विन द्वारा प्रतिपादित प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के अनुसार , इस प्रकृति में कोई भी दो जीव बिल्कुल एक समान नहीं होते | इनमें कुछ – न – कुछ असमानताएँ अवश्य होती हैं , जिसे विभिन्नता कहते हैं | जीवों में इन विभिन्नताओं की अधिकता के फलस्वरूप इनके बीच जीवन के अस्तित्व के लिए संघर्ष शुरू हो जाता है | इस संघर्ष में जो योग्यतम हैं , वही जीतते हैं और अयोग्य गुणवाले जीव नष्ट हो जाते हैं , अर्थात प्रकृति योग्यतम तथा अनुकूल विभिन्नता वाले जीवों का चयन कर लेती हैं | प्रकृति द्वारा चयन किए गए इन जीवों की उपयोगी विभिन्नताओं की पीढ़ी – दर – पीढ़ी वंशागत होते रहने के कारण एक नई प्रजाति की उत्पत्ति होती हैं |यही डार्विन का प्राकृतिक चयन का सिद्धांत है |
2. जैव विकास क्या है ? लामार्कवाद का वर्णन करें |
उत्तर – पृथ्वी पर वर्तमान जटिल प्राणियों का विकास प्रारंभ में पाए जानेवाले सरल प्राणियों की परिस्थिति और वातावरण के अनुसार होनेवाले परिवर्तनों के कारण हुआ सजीव जगत में होनेवाले इस परिवर्तन को जैव विकास कहते हैं |
लामार्क फ्रांस का प्रसिद्ध प्रकृति वैज्ञानिक था | इसने सर्वप्रथम 1809 में जैव विकास के अपने विचारों की अपनी पुस्तक फिलौसफिक, जुलौजिक में प्रकाशित किया | लामार्क के सिध्दांत को उपार्जित लक्षणों का वंशागति सिध्दांत कहते हैं | लामार्क के अनुसार जीवों की संरचना, कायिकी उनके व्यवहार पर वातावरण के परिवर्त्तन का सीधा प्रभाव पड़ता है | लामार्क के अनुसार वे अंग जो जीवधारियों के अनुकूलता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं बार-बार उपयोग में लाये जाते हैं, जिससे की उनका विकास होता है, लेकिन वैसे लक्षण जो अनुकूलता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं हैं या हानिकारक हो सकते हैं उनका उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे वे धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं | लामार्क के यह अवधारण थी की परिवर्तित वातावरण के कारण जीवों के अंगों का उपयोग अधिक या कम होता है | जीन अंगों का उपयोग अधिक होता है वे अधिक विकसित हो जाते हैं | जिनका उपयोग नहीं होता है उनका धीरे-धीरे ह्रास हो जाता है | यह परिवर्त्तन वातावरण अथवा जन्तुओं के उपयोग पर निर्भर करता है | इस कारण जंतु के शरीर में जो परिवर्त्तन होता है उसे उपार्जित कक्षण कहा जाता है | ये लक्षण वंशगत होते हैं अर्थात् एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रजनन के द्वारा चले जाते हैं | ऐसा लगातार होने से कुछ पीढियों के पश्चात् उनकी शरीरिक रचना बदल जाती है तथा एक नये प्रजाति का विकास होता है | हालाँकि लामार्कवाद के सिध्दांत का कई वैज्ञानिकों ने खंडन किया है |
3. जीवों में जाति उद्-भवन की प्रक्रिया कैसे संपन्न होता है ?
उत्तर – नई स्पीशीज के उद्-भव में वर्त्तमान स्पीशीज के सदस्यों का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवित बने रहना है | इन सदस्यों को नये पर्यावरण में जीवित रहने के लिए कुछ बाह्य लक्षणों में परिवर्तन करना पड़ता है | अतः भावी पीढ़ी के सदस्यों में शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं | जो संभोग क्रिया के द्वारा अगली पीढ़ी में हस्तांतरित हो जाते हैं परंतु यदि दूसरी कॉलोनी के नर एवं मादा जीव वर्त्तमान पर्यावरण में संभोग करेंगे तब उत्पन्न होने वाली पीढ़ी के सदस्य जीवित नहीं रह सकेंगे |
इसके अतिरिक्त अंतःप्रजनन अर्थात एक ही प्रजातियों के बीच आपस में प्रजनन, आनुवंशिक विचलन तथा प्राकृतिक चुनाव के द्वारा होनेवाले जाती उद्-भवन उन जीवों में हो सकते हैं जिनमें केवल लैंगिक जनन होता है | अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न जीवों में तथा स्व-परागण द्वारा उत्पन्न पौधों में जाति -उद्-भवन की संभावना नहीं होती है |