कृषि संसाधन – Class 10th Social Science Notes in Hindi

भारत एक कृषि प्रधान देश है | इसकी लगभग दो-तिहाई जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है |  

कृषि भूमि उपयोग – भूमि एक अमूल्य संसाधन है | कृषि प्रधान देश में इसका बहुत अधिक महत्त्व है | वन तथा गैर-कृषि कार्यों में लगी भूमि भी महत्त्वपूर्ण है, किन्तु यहाँ स्थायी चारागाह की बहुत कमी है | 

2002-03 में भूमि उपयोग के आँकड़ें इस प्रकार हैं – 

1. कृषि योग्य भूमि          59.77 प्रतिशत
        i. शुद्ध बोई गई भूमि        43.41 प्रतिशत
       ii.चालू परती भूमि           7.03 प्रतिशत 
      iii. अन्य परती भूमि 3.82 प्रतिशत
       iv. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि 4.41 प्रतिशत 
       v. बाग-बगीचे 1.10 प्रतिशत 
2. वन क्षेत्र 22.57 प्रतिशत 
       i. गैर-कृषि कार्यों में लगी भूमि  7.92 प्रतिशत
      ii. बंजर और व्यर्थ भूमि 6.29 प्रतिशत 
     iii. स्थायी चारागाह और घास क्षेत्र 3.45 प्रतिशत

 

शस्य गहनता – जनसंख्या वृद्धि और गैर-कृषि कार्यों में कृषि भूमि के बढ़ते उपयोग के कारण कृषि योग्य भूमि की कमी हो रही है | ऐसी स्थिति में उत्पादन में वृद्धि करने के दो उपाय हो सकते हैं – 

  1. उर्वरक, सिंचाई, उन्नत बीजों का प्रयोग करके प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि | 
  2. एक ही कृषि वर्ष में एक ही भूमि में एक से अधिक फसलों को पैदा करना | 

  एक ही कृषि वर्ष में एक ही भूमि पर एक से अधिक फसलों के उत्पादन की क्रिया को शस्य गहनता कहते हैं | 

शस्य गहनता = कुल बोया गया क्षेत्र / शुद्ध बोया गया क्षेत्र x 100 

कृषि के प्रकार 

भूमि की प्रकृति, जलवायविक विशेषताओं तथा सिंचाई की प्राप्त सुविधाओं के आधार पर कृषि को विभिन्न प्रकारों में बाँटा गया है, जो इस प्रकार है – 

  1. जीविका निर्वाह कृषि | 
  2. गहन कृषि | 
  3. रोपण कृषि | 
  4. स्थानान्तरी कृषि | 
  5. शुष्क कृषि | 
  6. आर्द्र कृषि | 

शुष्क भूमि की विशेषताएँ – 

  1. शुष्क समय में उपयोग करने के लिए वर्षा जल के संग्रहण की विभिन्न पारम्परिक विधियों का प्रयोग किया जाता है | 
  2. भूमिगत जल के पुन:भरण के लिए तालाबों और छोटे-छोटे अवरोधों से  वर्षा जल को व्यर्थ बहने से रोका जाता है | 
  3. आर्द्रता की कमी के कारण शुष्क भूमि के क्षेत्रों की मिट्टी में जीवांश ( ह्यूमस ) की मात्रा बहुत कम होती है | 
  4. शुष्कता के कारण तेज हवा और आँधी से मिट्टी की ऊपरी परत का कटाव अधिक होता है | 
  5. शुष्क क्षेत्रों में प्राय: गरीब किसान रहते और खेती करते हैं, जो उन्नत बीज, उर्वरक इत्यादि नहीं खरीद सकते हैं | पूँजी के आभाव में कृषि का उत्पादन भी कम रहता है | 

भारतीय कृषि की मुख्य विशेषताएँ 

भारतीय कृषि की मुख्य विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा वर्णित किया जा सकता है – 

  1. भारतीय कृषि गहन प्रकार की है | जनसंख्या की अधिकता के कारण प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की कमी है तथा खेतों का आकर छोटा है | 
  2. भारतीय कृषि मुख्यतः जीवन निर्वाहक है | यहाँ अधिकतर किसान जीविका निर्वाह के लिए अनेक प्रकार के खाद्यान्नों का उत्पादन करते हैं | 
  3. स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्पश्चात् योजनाबद्ध कार्यक्रम के फलस्वरूप यहाँ अनेक नकदी और औद्योगिक फसलों की खेती होने लगी है | 
  4. भारत में कुल जनसंख्या का लगभग 64 प्रतिशत भाग कृषि कार्य में लगा हुआ है, जबकि यू० एस० ए० और यू० के० की क्रमशः 7 प्रतिशत और 5 प्रतिशत जनसंख्या कृषि में लगी हुई है | 
  5. भारत की कुल भूमि का लगभग 54 प्रतिशत भाग कृषि के अंतर्गत है, जबकि चीन की केवल 12% और जापान की 15% भूमि कृषि के अंतर्गत है | 
  6. भारत की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 27.4 प्रतिशत तथा उत्पादन का 80% खाद्यान्न, 8% अखाद्य पदार्थ, 4% रेशेदार कृषि पदार्थ, 4% तेलहन तथा 4% चारा फसलों का उत्पादन किया जाता है | 

फसल प्रारूप या शस्य प्रारूप 

भारत में विभिन्न प्रकार की फसलें विभिन्न ॠतुओं में उपजाई जाती हैं | ॠतु के आधार पर इन फसलों को तीन भागों में बाँटते हैं – 

  1. खरीफ – ये फसलें वर्षा पर आधारित हैं | इन्हें जून-जुलाई में बोया जाता है और सितंबर-अक्टूबर में काट लिया जाता है | 
  2. रबी – ये फसलें शीतॠतु के आरंभ होने पर नवम्बर में बोई जाती हैं और ग्रीष्म ॠतु के आरंभ में अप्रैल-मई में काट ली जाती हैं | 
  3. जायद – इन्हें गरमा फसल भी कहते हैं, जिनकी खेती सिंचाई के सहारे की जाती है | इनकी खेती ग्रीष्म ॠतु में मार्च-अप्रैल से मई-जून के बीच की अल्प अवधि में की जाती है | 

भारत की प्रमुख फसलें 

भारत की विशालता एवं जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नता के करण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं | सुविधानुसार उन्हें निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत रख सकते हैं – 

  1. खाद्य फसलें | 
  2. दलहन एवं तिलहन | 
  3. रेशेदार फसलें | 
  4. पेय फसलें | 
  5. नकदी फसलें | 
  1. खाद्य फसलें – भारत एक कृषि प्रधान देश है | यहाँ विविध प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं, इसमें खाद्यान्न फसलों की प्रधानता होती है |

चावल – चावल भारत की प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है | चीन के बाद भारत का चावल के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है | 

      चावल एक उष्णकटिबंधीय पौधा है | इसकी अच्छी उपज के लिए उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है | इसके लिए लगभग 24° सें० ग्रे० औसत मासिक तापमान की आवश्यकता होती है | बोने, बढ़ने और काटने की अवधि में चावल के लिए भिन्न तापमानों की आवश्यकता होती है | 

           चावल देश के विस्तृत भागों में उगाया जाती है | पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु चावल के प्रमुख उत्पादन राज्य हैं | 

गेहुँ – यह भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है | देश के उत्तरी और उत्तरी पशिचमी भागों की यह सर्वप्रमुख फसल है | चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा प्रमुख गेहुँ उत्पादक देश है |  

                   गेहुँ शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है | गेहूँ रबी फसल है | इसके लिए बोते समय 10° सें० ग्रे० से 15° सें० ग्रे० तथा पकते समय 20° सें० ग्रे० से 25° सें० ग्रे० तापमान की आवश्यकता होती हैं | 75 सेमी० वर्षा इसके उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त है | 

मक्का – मक्का एक मोटा अनाज है | इसका उपयोग खाने और चारे, दोनों के लिए होता है |  मक्का 50 सेमी० से 100 सेमी० वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की मदद से यह फसल उगाई जाती है | 

मोटे अनाज – भारत में उगाये जाने वाले मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा और रागी प्रमुख हैं | 18° सें० ग्रे° से 32° सें० ग्रे° औसत मासिक तापमान इसके उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं | इसके लिए लगभग 30 सेमी० से 60 सेमी० वर्षा की आवश्यकता होती है | 

2. दलहन – दलहन फसलों का मानवीय जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है | इन फसलों से मानव शरीर को प्रोटीन जैसे महत्त्वपूर्ण विटामिन की प्राप्ति होती है | 

मूँगफली – भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण तिलहन फसल है | इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों में आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र हैं | ये राज्य देश के कुल उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत खाद्य तेल पैदा करते हैं | 

3. रेशेदार फसलें – कपास और जूट भारत की दो प्रमुख रेशेदार फसलें हैं | कपास और उष्ण और उपोष्ण जलवायु की फसल है | यह खरीफ की फसल है | कपास की फसल को तैयार होने में 6 से 8 महीने लगते हैं | फसल को तैयार होने के समय खुला मौसम आवश्यक है | इससे कपास में चमक बनी रहती है |

जूट ( पटसन ) उष्णार्द्र जलवायु की फसल है | जूट फसल को तैयार होने में 8 से 10 महीने तक का समय लगता है | 

4. पेय फसलें – चाय और कहवा महत्त्वपूर्ण पेय फसलें हैं | भारत में चाय एक विशिष्ट रोपण फसल है | चाय की उपज के लिए 20° सें० ग्रे० 30° सें° ग्रे° तापमान आदर्श है | 150 सेमी० 200 सेमी० वार्षिक वर्षा इसके लिए उपयुक्त है | 

कहवा भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण पेय फसल है | इसकी खेती के लिए उष्णार्द्र जलवायु दशाएँ आवश्यक होती हैं | कहवा की उपज के लिए 15° सें० ग्रे० से 28° सें० ग्रे० तापमान तथा 150 सेमी० से 200 सेमी० वार्षिक वर्षा चाहिए | 

खाद्य सुरक्षा 

पिछले 50 वर्षों में देश में खाद्यान्नों के उत्पादन में गुणात्मक बढ़ोतरी हुई है | इसी अवधि में जनसंख्या 1951 में 36.10 करोड़ थी, जो 2001 में बढ़ाकर 102.70 करोड़ हो गई है | 

          इन परिस्थितियों में कृषि वैज्ञानिकों का यह दयितत्व बन जाता है कि अपने एक अरब से भी अधिक लोगों का भूख मिटाने के लिए ऐसी कृषि तकनीकों का उपयोग किया जायु जो पर्यावरण की दृष्टि से सतत् पोषणीय हैं | 

मत्स्यपालन 

मछलियाँ मनुष्य का एक महत्त्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है | इससे मानव शरीर को प्रचूर मात्रा में प्रोटीन की आपूर्ति होती है | मत्स्य पालन दो प्रकार का है – समुद्री जल ( खारे पानी ) और स्वच्छ जल का | पहले प्रकार के मत्स्य पालन में समुद्र तटीय क्षेत्रों से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं | 

 

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