द्विचर संक्रिया ( Binary Operation ) – Class 12th Mathematics Notes & Exercise By Ravikant Sir

द्विचर संक्रिया ( Binary Operation ) -यदि किसी समुच्चय के दो अवयवों पर संक्रिया करने से प्राप्त नया अवयव भी उसी समुच्चय का अवयव हो , तो उस संक्रिया को द्विचर या द्विआधारी संक्रिया कहते हैं | 

या, किसी अरिक्त समुच्चय A में द्विचर सक्रिया एक फलन है जो A x A के प्रत्येक क्रमित युग्म ( a, b ) को A के अद्वितीय अवयव जिसे संकेत में a b कहते हैं, से संबंद्ध करता है | 

इस प्रकार, 

              फलन  : A x A → A, समुच्चय A पर द्विचर संक्रिया कहलाता है | 

जेसे  – 

( i ) दो धन पूर्णाकों का योग हमेशा ही एक धन पूर्णांक होता है | 

          ∴ धन पूर्णांकों के समुच्चय Z+ में ‘ योग ‘ की संक्रिया एक द्विचर संक्रिया है | 

( ii ) दो प्राकृत संख्याओं का गुणनफल हमेशा ही एक प्राकृत संख्या होता है | 

          ∴ प्राकृत संख्याओं के समुच्चय N मे ‘गुणा’ की संक्रिया एक द्विचर संक्रिया  है | 

किसी परिमित समुच्चय पर द्विचर संक्रियाओं की संख्या ( Number of Binary Operations on a finite Set ) : 

किसी समुच्चय पर द्विचर संक्रिया A x A से A में एक फलन है | 

अत: समुच्चय A पर द्विचर संक्रियाओं की संख्या = A x A से A में फलनों की संख्या 

                                                                                         = [ n ( A ) ] n ( A x A )

                                                                                         = , जहाँ n (A) = p

Example : 

               माना A = { 4,5 } ⇒ n ( A ) = 2 

  ∴समुच्चय A पर द्विचर संक्रियाओं की संख्या =  = 2 = 16 

द्विचर संक्रियाओं के प्रकार ( Types of binary operation ): 

(i) क्रमविनिमय द्विचर संक्रिया (  Commutative binary operation ) : किसी समुच्चय A में एक द्विचर संक्रिया  क्रमविनिमय काहालाते हैं यदि

a b = b a, ∀ a, b ∈ A 

Example : साबित करें – Z  पर, a b = ab + 1 द्वारा परिभाषित द्विचर संक्रिया क्रमविनियम है | 

क्रमविनियम : a b = b a, , ∀ a, b ∈ Z 

L. H. S. 

         a b = ab + 1 

R. H. S. 

           b a = ba + 1

                     = ab + 1               [ पूर्णाकों के लिए ab = ba क्रमविनियम से ] 

∴ a b = b a, ∀ a, b ∈ Z 

अत: संक्रिया क्रमविनियम है, 

( ii ) साहचर्य द्विचर संक्रिया  ( Associative binary operation ) : किसी समुच्चय A में द्विचर संक्रिया ‘‘ साहचर्य कहलाता है यदि 

( a b ) c = a ( b c ), ∀ a, b, c ∈ A 

Example : साबित करें – Z पर, a b = a + b द्वारा परिभाषित द्विचर संक्रिया साहचर्य है |

साहचर्य ( a b ) c = a ( b c ), ∀ a, b, c ∈ Z 

L H.S. 

          ( a b ) c = ( a + b ) c = a + b + c 

R. H. S. 

       a ( b c ) = a (  b + c ) = a + b + c       

∴ ( a b ) c  = ( a b ) c, ∀ a, b, c ∈ Z

अत: संक्रिया साहचर्य है | 

(iii) वितरण या बंटन नियम ( Distributive law ) : माना की A के अतिरिक्त समुच्चय है तथा और o , A में दो द्विचर संक्रियाएँ हैं | संक्रिया , संक्रिया o के सापेक्ष वाम वितरित कहलाता है यदि a ( b o c ) = ( a b ) o ( a c ) ,∀ a, b , c ∈ A .

Example  : Z पर द्विचर संक्रियाएँ और o  , a b = a b , a o b = a + b द्वारा परिभाषित है , वितरण या बंटन नियम को सत्यापित करें |

वितरण नियम : a ( b o c ) = ( a b ) o ( a c ) ,∀ a, b , c ∈ Z

L.H.S.

a ( b o c ) = a ( b + c ) + a( b + c ) = ab +ac

R.H.S.

( a b ) o ( a c ) = (ab) o (ac) = ab + ac

    ∴ a ( b o c ) = ( a b ) o ( a c ) ,∀ a, b , c ∈ Z

तत्समक अवयव ( Identity element ) : माना किसी अरिक्त समुच्चय A पर एक द्विआधारी सक्रिया है तथा A में एक अवयव e इस प्रकार है कि 

       a e = e a = a, ∀ a ∈ A 

तब e को समुच्चय A पर द्विआधारी  संक्रिया के लिए तत्समक अवयव कहा जाता है |

Example

( i ) वास्तविक संख्याओं के समुच्चय में योग की संक्रिया का तत्समक अवयव 0 होता है | 

a + 0 = 0 + a = a, ∀ a ∈ R 

( ii ) वास्तविक संख्याओं के समुच्चय में ‘गुणन की संक्रिया’ का तत्समक अवयव 1 होता है |

a x 1 = 1 x a = a  , ∀ a ∈ R 

प्रमेय : किसी द्विआधारी संक्रिया के लिए तत्समक अवयव यदि इसका अस्तित्व है, अद्वितीय होता है | 

प्रमाण :

          माना किसी अरिक्त समुच्चय A में एक द्विआधारी संक्रिया है | 

माना e ∈ A संक्रिया के लिए तत्समक अवयव है | 

यदि संभव है तो माना कि A में एक दूसरा तत्समक अवयव e1 है |

e ,  संक्रिया के लिए तत्समक अवयव है | 

∴ e a =  a e = a, ∀ a ∈ A 

e e = e1  e = e1                    [ a के जगह e1 रखने पर ]

e e1 = e1 — ( i ) 

पुन: e1 , संक्रिया के लिए तत्समक अवयव है  | 

    ∴ e1  a = a e1 = a,  ∀ a ∈ A 

e1  e = e e1 = e            [ a की जगह e रखने पर ] 

e e1 = e — ( ii ) 

समी० ( i ) तथा ( ii ) से, 

e1 = e 

अत: तत्समक अवयव अद्वितीय होता है | 

किसी अवयव का प्रतिलोम ( Inverse of an element ) : माना किसी अरिक्त समुच्चय A में एक द्विआधारी संक्रिया है तथा e, संक्रिया के लिए तत्समक अवयव है तब द्विआधारी संक्रिया के लिए अवयव b ∈ A, अवयव a ∈ A का प्रतिलोम अवयव कहलाता है, यदि 

             a b = b a = e, 

a प्रतिलोम, a-1 = b 

नोट : यदि किसी अवयव के प्रतिलोम का अस्तित्व हो, तो उसे व्युत्क्रमणीय अवयव कहते हैं | 

प्रमेय: माना  किसी अरिक्ति समुच्चय A में, एक साहचर्य द्विआधारी संक्रिया है तथा संक्रिया के लिए e तत्समक अवयव है तो किसी व्युत्क्रमणीय अवयव का प्रतिलोम अद्वितीय होता है | 

प्रमाण :

           माना अरिक्त समुच्चय A का अवयव a व्युत्क्रमणीय है | 

माना A में a के दो प्रतिलोम b तथा c है | ( यदि यह संभव है ) 

a b = b a = e 

तथा a c = c a = e 

अब, ( b a ) c  = e   c = c           [ b a = e ]

पुन: b ( a c ) = b e = b               [ a c = e ]

संक्रिया , A में साहचर्य है | 

∴ ( b a ) c = b ( a c )       

                  c = b 

अत: यदि द्विआधारी संक्रिया साहचर्य है तो किसी अवयव का प्रतिलोम अद्वितीय होगा | 

प्रमेय : माना समुच्चय A में द्विआधारी संक्रिया साहचर्य है तथा a, A का व्युत्क्रमणीय अवयव है, तो ( a-1 )-1 = a

प्रमाण :

        माना समुच्चय A में द्विआधारी संक्रिया के लिए e तत्समक अवयव है |

a a-1 = a-1  a = e

⇒ a-1  a = a a-1 = e  

⇒ a-1 का प्रतिलोम a है

⇒ ( a-1 )-1 = a

द्विआधारी संक्रिया सारणी [ Binary Operation table ] ; किसी परिमित समुच्चय A में द्विआधारी संक्रिया को एक सारणी के रूप में व्यक्त किया जाता है, जिसे द्विआधारी संक्रिया सारणी कहते हैं | 

माना A = { a1 , a2 , a3 , ………, an

a1  a2 a3       an
a1  a1 a1  a1 a2 a1 a3 …………. ………….. ………….. a1 an
a2  a2  a1  a2  a2 a2  a3 ………….. ………….. …………… a2  an
a3 a3 a1  a3 a2 a3 a3 ………….. …………… ………….. a3 an
¦              
¦              
¦              
an an  a1 an  a2  an  a3 ………….. ………….. ………….. an an

  

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