पदार्थो का वर्गीकरण | Classification of Substances | Class 9th Chemistry | Hindi Medium

रासायनिक संरचना के आधार पर पदार्थ के दो भागो में विभाजित किया गया है |

1 . शुद्ध पदार्थ

2. अशुद्ध पदार्थ 

1 . शुद्ध पदार्थ (Pure substance ) – वे पदार्थ जिसके सभी भागों में समान संरचना और समान गुण होते है क्योकि किवल एक प्रकार के कण मौजुद होते है | 

शुद्ध पदार्थ दो प्रकार के होते है | 

  1. तत्व ( Elements ) 
  2. यौगिक ( Compounds ) 

(i) तत्व ( Elements )– तत्व पदार्थ का एक शुध्द और सरलतम द्रव्य है जो किसी भी भौतिक या रासायनिक विधि द्वारा दो या दो से अथिक सरल द्रव्यों में विभाजित नहीं किया जा सकता है जैसे – सोना , चाँदी , लोहा , आँक्सीजन आदि | 

तत्व की विशेषताएँ – 

  1. यह एक ही प्रकार के परमाणुओं ( तत्व का सरलतम कण ) से बना होता है | 
  2. भिन्न – भिन्न तत्वों के कुछ विशिष्ट गुण होते है |  

कुल संख्या = 118 

जिनमे ;94 तत्व प्रकृति में है अन्य 24 संश्लेषित तत्व है | 

तत्वों का वर्गीकरण ( Classification of elements ) 

तत्व तीन प्रकार के होते है | 

  1. धातु ( Metal ) = 90 
  2. अधातु ( Non – metal ) = 21 
  3. उपधातु ( Metalloid ) = 7 

धातुओं के गुण – 

  1. इनमें ऐ विशेष प्रकार की चमक होती है जिसे धातुई चमक कहते है | 
  2. धातुएँ आघातवर्धनीय होती हैक अर्थात् इन्हें हथौडे से पीटकर इनकी चादर बनाई जा सकते है | 
  3. धातुएँ तन्य होती है अर्थात् इन्हें खीचकर इनसे टार बनाए जा सकते है | 
  4. धातुओं केद्रवणांक एवं क्वथनांक उच्च होते है | सोडियम और पोटेशियम अपवाद है क्योंकी ये निंन टार पर ही पिघलाकर उबलने लगते है 
  5. सभी धातुएँ ऊष्मा एवं विधुत की सुचालक होते है लेकिन ग्रैफाइट एक अपवाद है जो अधातु होते हुए विधुत का सुचालक होता है | 
  6. सभी धतुएँ कठोर होती है | 
  7. हथौडे से पीते जाने पर धातुओं से एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे धातुई ध्वनि कहते है | 
  8. कमरे के ताप पर धातुएँ सामान्यत: ठोस होती है | लेकिन मरकरी अपवाद जो कमरे के ताप पर द्रव में पाया जाता है | 
  9. धातुओं के घनत्व उच्च होते है | जैसे – सोना , चाँदी , लोहा |  

अधातुओं के गुण – 

  1. अधातुओं में कोई विशेष प्रकार की चमक नहीं होती है | 
  2. अधातुओं प्राय: भंगुर होती है अर्थात् इससे चादर एवं टार नहीं बनाए जा सकते है | 
  3. अधातुऍ प्राय: ऊष्मा एवं विधुत की कुचलक होती है | 
  4. अधातुओं के द्रवणांक एवं क्वथनांक निंन होते है | 
  5. अधातुएँ मुलायम होती है | 
  6. अधातुओं के घनत्व निंन होती है | जैसे – आँक्सीजन , नाइट्रोजन , क्लोरीन , आदि |  

उपधातु में प्राय: और अधातु दोनों के गुण पाए जाते है | जैसे – बोरान , सिलिकाँन , आर्सेनिक , एंटीमनी | 

यौगिक ( Compounds )– यौगिक वह शुध्द पदार्थ है जो दो या दो से अथिक पटवो के भर के विचार से एक निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग के फलस्वरूप बनता है | जैसे – जल , कार्बनडाईआँक्साइड 

                    – H तथा O का अनुपात 1 : 8 होता है | 

यौगिक के गुण – 

  1. यौगिक इए अवयवी तत्वों में किसी भी यांत्रिक यो भौतिक विधि द्वारा अलग – अलग नहीं किया जा सकता है | 
  2. किसी यौगिक के गुण उसके अवयवी तत्वों के गुणों से बिलकुल अलग होते है | 
  3. किसी यौगिक के बनाने में ऊष्मा या प्रकाश के रूप में ऊर्जा का प्रार्य उत्सर्जन या अवशोषण होता है | 
  4. यौगिक में उसके अवयवी तत्व भर के विचार से एक निश्चित अनुपात में रहते है | 
  5. यौगिक के द्रवणांक और क्वथनांक निश्चित होते है | 
  6. यौगिक समांग पदार्थ है |  

नोट – किसी तत्व का सूक्ष्मतम कण परमाणु कहलाता है | किसी यौगिक का सूक्ष्मतम कण अणु कहलाता है | 

अशुद्ध पदार्थ ( मिश्रिण ) – मिश्रण वह पदार्थ है जो दो या दो से अधिक तत्वों या यौगिको को किसी की अनुपात में मिला देने से बनता है और इसके अवयवों को सरल यांत्रिक विधियों द्वारा अलग – अलग किया जा सकता है | 

जैसे – वायु , इस्पात 

मिश्रण के गुण – 

  1. मिश्रण समांग या विषमांग हो सकता है | 
  2. मिश्रण के अवयवों को सरल यांत्रिक विधियों ( छानना , वाष्पन , आदि ) से पृथक किया जा सकता है | 
  3. मिश्रण के बनने में प्राय: ऊर्जा का न तो उत्सर्जन होता है नही अवशोषण | 
  4. मिश्रण के अवयव निश्चित अनुपात में नहीं होते है | 
  5. मिश्रण के द्रवणांक , क्वथनांक निश्चित नहीं होते है | 
  6. मिश्रण के बनने में कोई रासायनिक अभिक्रिया नही होती है | 

मिश्रण के प्रकार – 

  1. ठोस -ठोस का मिश्रण – चीनी आर बालू का मिश्रण , नमक और बालू का मिश्रण 
  2.  ठोस – द्रव का मिश्रण – नामक और जल का मिश्रण , चीनी तथा जल का मिश्रण 
  3.  ठोस – गैस का मिश्रण – मिट्टी और वायु का मिश्रण  
  4. द्रव – गैस का मिश्रण – हाइड्रोजन , ऑक्सीजन और नाइट्रोजन का मिश्रण 
  5. गैस – गैस का मिश्रण – वायु 
  6.  द्रव – द्रव का मिश्रण – जल तथा तेल का मिश्रण , जल तथा शराब का मिश्रण   

मिश्रण के अवयवो को अलग – अलग करने की विधियाँ  -Method of separation of the components of mixture 

  1. हाथ से चुनकर ( Hand – picking ) – मिश्रण में उपस्थित बड़े आकर के अवयवो का हाथ से चुनकर अलग – अलग किया जा सकता है जैसे – चावल के पत्थर चुनना 
  2. चलनी से चालकर ( Sieving ) – मिश्रण में उपस्थित बड़े आकार के अवयवों का चली से चालकर अलग किया जा सकता है जैसे – बालू से ककंड़ अलग करना | 
  3. थिराना ( Sedimentation ) – किसी द्रव में अविलय ठोस को स्थिर छोड़ देने पर वह निचे पेंदी में बैठ जाता है | इस प्रकिया को थिराना कहते है और निचे बैठे ठोस को तलछर कहते है | 
  4. मंथन ( Churning ) – किसी द्रव में उपस्थित ठोस पदार्थ के कणों की अलग करने के लिए उसे छानना विधि द्वारा पृथक किया जाता है जैसे – बालू तथा जल के मिश्रण को छानकर बालू को अलग करना | 
  5. छानना ( Filtration )– किसी द्रव में उपस्थित बहुत छोटे आकार के कणों को अलग करने के लिए उसे छानना विधि द्वारा पृथक किया जाता है जैसे – बालू तथा जल के मिश्रण को छानकर बालू को अलग करना | 
  6. चुंबकीय पृथक्करण ( Magnetic separation ) – यदि मिश्रण का एक अवयव चुम्बकीय हो हो उसे चुबंक की सहायता के पृथक किया जा सकता है जैसे – लौह चूर्ण और गंधक का मिश्रण से लोहे – चूर्ण अलग करना | 
  7. उर्ध्वपातन ( Sublimation ) – याकि मिश्रण में एक अवयव ऐसे हो जो बिना पिघले वाष्प में परिणत हो जाता है और ठंडा करने पर पुन: ठोस में परिवर्तन हो जोता है तो उसे उर्ध्वपातन विधि द्वारा अलग किया जाता है | जैसे – नमक और अमोनियम क्लोराइड के मिश्रण से अमोनियम क्लोराइड को अलग करना | 
  8. वाष्पन (evaporation) – यह विधि किसी वाष्पशील द्रव में घुले हुए ठोस पदार्थ को पृथक करने में प्रयुक्त होती है | जैसे – नमक तथा जल के मिश्रण से जल अलग करना |
  9. रवाकरण (crystallization) – इस विधि में विलयन से शुद्ध ठोस पदार्थ को खो के रूप में पृथा हो जाते है |जैसे – चीनी के विलयन से चीनी अलग करना |
  10. स्त्रवण (distillation) – इस प्रक्रिया में किसी द्रव को गर्म कर वाष्प में परिवर्तित किया जाता है फिर उसे ठंडा कर पुन: द्रव में संघनित किया जाता  है | इस विधि दो वैसे मिश्रणीय द्रवों को पृथक किया जा सकता हक्वथनांको में कम-से-कम 25°C का अंतर हों |
  11. प्रभाजी स्त्रवण (Fractional distillation) – यह विधि दो या दो से अधिक मिश्रणीयों द्रवों के मिश्रण के अवयवो को पृथक करने में अपनाई जाती है जिसके अवयवी द्रवों के क्वथनांक का अंतर 10°C से कम है | जैसे – पेट्रोलियम से घटको ( पेट्रोल , डीजल , किरोसिन आदि ) को अलग करना |  
  12. कीप द्वारा पृथक्करण – इस विधि का उपयोग दो अमिश्रणीय द्रवों के पृथक करने में किया जाता है | जैसे – तेल और जल के मिश्रण से तेल तथा जल को अलग करना |
  13. क्रोमैटोग्राफी (chromatography) – क्रोमैटोग्राफी एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग मिश्रण के उन अवयवों को  पृथक करने में किया जाता है जो एक ही विलायक में विलय होते है |जैसे स्याही से उनके विभिन्न रंगो को पृथक करना | 

जल का शुद्धिकरण ( Purification of water) – अशुद्ध जल को पीने योग्य बनाने की प्रक्रिया जल का शुद्धिकरण कहलाती है इसके लिए निम्न प्रक्रिया करनी पड़ती है |

1 . थिराने की टंकी (sedimentation tank) – नदियों तालाबों और झीलों के जल को एक थिराने की टंकी में लाया जाता है इसमें थोड़ा फिटकरी मिलाकर जल का स्थिर छोड़ दिया जाता है जिससे जल में स्थित गंद पदार्थ (तलछट) निचे बैठ जाते है|ऊपर के स्वच्छ जल को पंप की सहायता से निस्यंदक टंकी ले जाया जाता है |

2 . निस्यंदक टंकी (filtration tank) – इस टंकी में जल को चारकोल ,कंकड़ और बालु के महीने कणों के स्तर से गुजरना पड़ता है जिससे जल में निलंबित अशुद्धिया छनकर अलग हो जाती  हैं | अब जल को क्लोरीनीकरण टंकी में ले जाया जाता है |

3 . क्लोरीनीकरण टंकी ( Chlorination tank )– इस टंकी में जल में क्लोरीन या विरंजक चूर्ण मिला दिया जाता है | जिससे जल में स्थित जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और जल पीने योग्य बन जाता है |

भौतिक परिवर्तन (Physical changes) – भौतिक परिवर्तन वह है जिसमें पदार्थ के कुछ गुणों ( रंग ,रूप ,आदि ) में थोड़ा आस्थायी परिवर्तन अवश्य हो जाता है किंतु उनके मूल संघटन और द्रव्यमान में कोई परिवर्तन नहीं होता और इस परिवर्तन के फलस्वरूप कोई नया  पदार्थ नहीं  बनना है |

जैसे – 1 . जल का वाष्प बनना

           2 . नमक का जल में विलयन

          3 . विधुत बल्ब से प्रकाश का उत्सर्जन |

रासायनिक परिवर्तन (Chemical  changes) – रासायनिक परिवर्तन वह परिवर्तन है जिसके फलस्वरूप पर्दाथ नए पदार्थ में परिवर्तन हो जाता है जिसके गुण        ( संरचना द्रव्यमान आदि ) मूल पदार्थ से पूर्णत: भिन्न हिते है और परिवर्तन लाने वाले कारण को हटा लेने पर भी पदार्थ अपनी मूल अवस्था में नहीं आता |

जैसे – 1 . लोहे में जंग लगना |

           2 . कोयले का जलना |

          3 . शारीर में भोजन का पचना | 

विलयन (Solution) – दो या अधिक पदार्थो का समांग मिश्रण विलयन कहलाता है |

विलायक और विलेय (Solvent and Solute) – विलयन में जो पदार्थ कम मात्रा में रहता है उसे विलेय और जो अधिक मात्रा में रहता है उसे विलायक कहते है |

जलीय विलयन –  किसी पदार्थ के जल में घुलाकर जो विलयन बनता है | उसे जलीय विलयन कहते है |   

वास्तविक विलयन – वे विलयन जो पूर्णत: संमाग हों वास्तविक विलयन कहलाता है | जैसे – चीनी , शोरा का जलीय विलयन 

विलयन के प्रमुख गुण 

  1. विलयन स्वच्छ एवं पारदर्शी होता है | उदहारण के लिए , नमक का जल में विलयन स्वच्छ एवं पारदर्शी होता है | 
  2. विलयन को कुछ समय तक स्थिर छोड़ देने पर भी विले के कण नीचे नहीं बैठते है | 
  3. विलयन में विलेय और विलायक के कणों को मेक्रोस्कोप की सहायता से देखने पर भी अलग – अलग नहीं दिखाई पाड़ते है | 
  4. विलयन समांग होता है | 
  5. विलयन के अवयवों को छानकर पृथक नही किया जा सकता है | 
  6. विलयन के कणों का व्यास के क्रम में होता है | 

  विलयन के प्रकार – 

  1. असंतृप्त विलयन ( Unsaturated solution )  – किसी निश्चित ताप पर बना वह विलयन जिसमे विलेय की और अधिक मात्रा उस ताप पर घुलाई जा सकती है , असंतृप्त विलयन कहलाता है | 
  2. संतृप्त विलयन ( Saturated solution )– किसी निश्चित ताप पर बना वह विलयन जिसमे विलेय की अधिकतम मात्रा घुली हो , संतृप्त विलयन कहलाता है | 

विलयन के संतृप्तता और असंतृप्तता के जाँच – यह जाँच करनी के लिए कि विलयन संतृप्त है या असंतृप्त , उस विलयन में थोड़ा विलेय डालकर काँच की अच्छी तरह मिलाएँ | यदि विलेय घुल जाता है तब विलयन असंतृप्त माना जाता है , अन्यथा संतृप्त | 

   3. अतिसंतृप्त विलयन ( Supersaturated solution )– वह संतृप्त विलयन जिसमें विलेय की मात्रा उस विलयन को संतृप्त करने के लिए आवश्यक विलेय की मात्रा से अधिक घुली हुई हो , अतिसंतृप्त विलयन  कहलाता है | 

अतिसंतृप्त विलयन के पहचान –  

  • इस विलयन को काँच की छड़ से चलने पर या पात्र को काँच की छड़ से खुरचने पर विलेय के रवे पृथक होने लगते है |
  • इस विलयन में बाहर से विलेय का एक छोटा टुकड़ा डाल देने पर विलयन से अतिरिक्त विलेय के रवे पृथक हो जाते है | 

विलेयता ( Solubility ) – एक निश्चित ताप और दाब पर 100 g विलायक में किसी विलेय की घुलनेवाली अधिकतम मात्रा , जो विलायक को संतृप्त कर दे , उस ताप और दाब पर उस विलेय की उस विलायक में विलेयता ( Solubility ) कहलाती है | 

विलेय की विलेयता =

विलेयन पर दाब का प्रभाव – किसी द्रव में ठोस पदार्थ की विलेयतता पर दाब का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है | किंतु द्रव में किसी गैस की विलेयता पर दाब का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है | दाब बढ़ाने पर विलेयता बढ़ती है और दाब कम करने पर विलेयता घटती है | 

विलेयता पर ताप का प्रभाव – किसी निम्न ताप पर संतृप्त विलयन उच्च ताप पर असंतृप्त बन जाता है | किंतु में गैस की विलेयता ताप बढ़ने से घटती है | 

निलंबन  ( Suspension ) -निलंबन एक विश्मांग पदार्थ है जिसमें  किसी ठोस पदार्थ के छोटे – छोटे कण द्रव या गैस में निलंबित स्थिति में रहते है | उदहारण के लिए , किचड़ , बालू और  खड़िया ( Chalk ) के कण जल में निलंबित रहते है | अतः कीचड़युक्त जल , बालू एवं जल का मिश्रण , खड़िया एवं जल का मिश्रण आदि निलंबन के उदहारण है | 

निलंबन के गुण – 

  1. यह एक विषमांग मिश्रण है | 
  2. इसमें ठोस के कण काफी बड़े होते है जिन्हें नग्न आँखों से या मेक्रोस्कोप की सहायता से आसानी से देखा जा सकता है | 
  3. ठोस के निलंबित कण छात्रा पत्र को पर नही कर सकते है | 
  4. यह अस्थायी होता है | इसमें निलंबित ठोस के द्रव से अलग हो जाने की प्रवृति रखते है | ये लम्बे समय तक निलंबित अवस्था में नही रहते हैं अतः निलंबन को स्थिर छोड़ देने पर कुछ समय के पश्चात ठोस के कण निचे बैठ जाते हैं | 
  5. इसमें निलंबित ठोस के कोणों का व्यास या इससे अधिक होता है |  

कोलाइड ( Colloids ) – कोलाइड विलयन की वह अवस्था है जिसमे विलेय के कणों का आकार वास्तविक और निलंबन में उपस्थित कणों के आकार का मध्यवर्ती होता है | दूध , स्याही , रक्त , टूथपेस्ट , स्टार्च का विलयन , धुल – कण युक्त वायु , बादल , कुहासा ( वायु में जल की बूंदों का परिक्षेपण ) , धुआं और जेली | 

कोलाइड विलयन के गुण – कोलाइड विलयन के प्रमुख गुण निम्नलिखित है | 

  1. विषमांग मिश्रण – कोलाइड विलयन विषमांग होता है | इसमें परिक्षेपित कणों  को उच्च क्षमता वाले मेक्रोस्कोप की सहायता से देखा जा सकता है | 
  2. छानना – क्रिया – कोलाइड के कण छन्ना पात्र को पार कर सकते है | 
  3. स्थायित्व – कोलाइड के कण बहुत स्थायी होते हैं | कोलाइड को स्थिर छोड़ देने पर उसके कण निचे नही बैठते हैं | 
  4. कणों का आकार – कोलाइड के कणों का आकार ( व्यास ) के बीच होता है | 
  5. ब्राऊनी गति – कोलाइड विलयन के अंतर्गत कोलाइड के कण टेढ़े – मेढे ( Zigzag ) मार्ग से होकर अनवरत गमन करते रहते हैं | इसे ब्राऊनी गति कहा जाता है | 
  6. टिंडल प्रभाव ( Tyndall effect ) – कोलाइड के कण प्रकाश का प्रकीर्ण ( Scattering ) कर जाता है |           

   विलयन का सांद्रण  या सामर्थ्य – विलयन के इकाई परिमाण ( आयतन या द्रव्यमान ) में घुले हुए विलेय की मात्रा को विलयन का सांद्रण या सामर्थ्य कहते हैं | 

द्रव्यमान के रूप में प्रतिशत – द्रव्यमान  के विचार से विलयन के प्रति 100 भागो में घुले हुए विलेय के भागो की संख्या विलयन के सांद्रण कहलाती हैं | 

आयतन के रूप में प्रतिशत – आयतन के विचार से विलयन के प्रति 100 भागो में घुले हुए विलेय के भागो के संख्या विलयन का सांद्रण कहलाती है | 

विलयन में पदार्थ का प्रतिशत – 

 पदार्थ का प्रतिशत द्रव्यमान =

                                                   =

पदार्थ का प्रतिशत आयतन

                                                      =

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