प्राकृतिक संसाधन – Atomic Structure | Class 9th Science Notes in Hindi

प्राकृतिक संसाधन ( Natural Resoures )– प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध मानव की मूल आवश्यकताओं पूर्ति करनेवाले उपयोगी पदार्थ प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं | उदहारण – वायु, जल, स्थल, पेट्रोलियम आदि प्राकृतिक संसाधन है | 

प्राकृतिक संसाधन के प्रकार – प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के होते हैं | 

  1. नवीकरणीय संसाधन ( Renewable Resources ) – जो संसाधन जो लगातार उपयोग होने पर पुन: स्वत: उत्पन्न हो जाते हैं, नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं | वायु,  सौर ऊर्जा, जल और वन नवीकरणीय संसाधन है | 
  2. अनवीकरणीय ससाधन ( Nonrenewable Resources )– वे संसाधन जो एक बार समाप्त हो जाने पर पुन: जल्दी नहीं होते, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं |उदाहरण के लिए, कोयला और पेट्रोलियम | 

वायु ( Air ) – हमारे वायुमंडल में स्थित वायु कई गैसों का मिश्रण होती है जिसमें लगभग 78% नाइट्रोजन और 21% ऑक्सीजन विद्यमान रहता है | इनके अतिरिक्त वायु में अल्प मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड,जलवाष्प, अक्रिय गैसों और धूल, कण आदि विद्यमान रहते हैं | समुद्र तल से 7 km तक वायु में पर्याप्त ऑक्सीजन मौजूद होता है जो सभी जीवों के लिए परमावश्यक है | इस क्षेत्र को क्षोभमंडल ( Troposphere ) कहते हैं | 

वायु की उपयोगिता – 

  1. श्वसन के लिए 
  2. पौधों के भोजन के लिए 
  3. वायु द्वारा ताप का नियंत्रण 
  4. ईंधन के जलने में वायु की उपयोगिता 
  5. वर्षा के लिए वायु की उपयोगिता 

समुद्री समीर ( Sea breeze ) – दिन के समय तटीय क्षेत्रों में हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होती है, जिसे हम समुद्री समीर कहते हैं | 

स्थल समीर ( Land breeze ) – तटीय क्षेत्रों में रात के समय वायु की दिशा स्थल से समुद्र की ओर होती है जिसे स्थल समीर कहते हैं | 

वर्षा का होना और संघनन ( Rain and condensation ) – दिन के समय नदी, तलाब, झील एवं समुद्री का जल सूर्य की गर्मी से वाष्प बनता है सूर्य की गर्मी से वायु भी गर्म हो जाती है | गर्म  वायु अपने साथ जलवाष्प को लेकर ऊपर की ओर जाती है | जैसे ही वायु ऊपर ओर जाती है, यह फैलती है तथा ठंडी हो जाती है | ठंडा होने से वायु में उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर जल की बूँदे बनाती है | जब ये बूँदे बड़ी और भारी हो जाती है तब ये वर्षा के रूप में नीचे की ओर गिरती है | 

ओसांक ( Dew point ) – जिस ताप पर वायुमंडल के पर्याप्त जलवाष्प संतृप्त होकर संघनित होते हैं, उसे ओसांक कहते हैं | 

हिमी वर्षा ( Sleet ) – वर्षा और हिम ( Snow ) के मिश्रण का हिमी वर्षा कहते हैं | 

कोहरा ( Fog )– कोहरा का बनना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है | इसमें जल के सूक्ष्म कण वायु में उपस्थित धूल कण पर निलंबित रहते हैं | 

धूम कोहरा ( Smog ) – कोहरा और धुँआ के मिश्रण को धूम कोहरा कहते हैं | 

मानसून ( Monsoon ) – मानसून एक ॠतु पवन है | यह खारा ॠतु में निश्चित दिशा में प्रवाहित होती है | मानसून का मुख्य कारण स्थल तथा समुद्र के बीच के ताप के अंतर का होना बताया जाता है | गर्मी के दिनों में भारतीय उपमहाद्वीप के भीतरी भाग काफी गर्मी के दिनों में भारतीय उपमहाद्वीप के भीतरी भाग काफी गर्म हो जाते हैं  |अत: वहाँ निम्नदाब का क्षेत्र की ओर प्रवाहित होने लगती है, फलत: तेज वर्षा होने लगती है | इसे दक्षिण-पश्चिम मानसून कहते हैं |     

चक्रवात या बवंडर ( Cyclone ) – चक्रवात अत्यधिक तेज वायु की लहर है | चक्रवात के मध्य में स्थित वायु का ताप बढ़ने से वायु ऊपर उठने लगती है , जिससे वहाँ वायु का दाब कम हो जाता है | निम्न दाब के वायु के चारों ओर उच्च दाब वाले वायु केन्द्रीय क्षेत्र की विरलता ( या वायु के कणों को दूर-दूर होना ) के कारण उसकी ओर तेजी से प्रवाहित होने लगती है , जिसे चक्रवात बनता है |

वायु प्रदुषण ( Air Polution ) – वायुमंडल में पाई जानेवाली गैसे एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होती है | वायुमंडलीय गैसों की निश्चित मात्रा एवं अनुपात में वृद्धि या कमी हो जाने पर वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है | 

वाहन से उत्पन्न वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय – 

  1. पेट्रोल वाहनों में ईंधन के रूप में सीसारहित पेट्रोल ( Unleaded Petrol ) का इस्तेमाल करना चाहिए | 
  2. संपीडित प्राकृतिक गैस या कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस ( Compressed natural gas CNG ) का कार , बस तथा अन्य वाहनों में इस्तेमाल करना चाहिए | 
  3. वन-विनाश रोकना तथा नगरों को हरा-भरा बनाना चाहिए | 

अम्ल वर्षा ( Acid rain ) – जब अम्ल , वर्षा के जल के साथ जमीन पर गिरता है तो उसे अम्ल वर्षा कहते हैं |

वायुमंडल में अम्लों का बनना –

 (i) वायु में उपस्थित ऑक्सीजन , सल्फर अभिक्रिया करके सल्फर डाइऑक्साइड बनते है |

                                   S   +   O2    →   SO2

 (ii) अब सल्फर डाइऑक्साइड , ऑक्सीजन से अभिक्रिया करके सल्फर ट्राइऑक्साइड बनता है |

                                  2SO2  +   O2  →  2SO3

(iii) अब ,सल्फर ट्राइऑक्साइड वायुमंडल के जलवाष्प से अभिक्रिया कर सल्फ्यूरिक अम्ल बनता है |

                                 SO3    +   H2O    →   H2SO4

अम्ल वर्षा के प्रभाव – 

  1. अम्ल वर्षा से जल प्रदूषण बढ़ता है जिससे जल में रहनेवाले जीव जंतु प्रायः नष्ट होने लगते हैं | 
  2. अम्ल वर्षा से मिट्टी में अम्लीयता बढ़ जाती है | अधिक अम्लीयता के कारण मिट्टी में स्थित खनिज एवं पोषण तत्व नष्ट हो जाते हैं | फलस्वरूप फसलों का उत्पादन दुष्प्रभावित होता है | 
  3. अम्ल वर्षा के कारण भवनों और स्मारकों की क्षति होती है | 

अम्लीय वर्षा की रोकथाम के उपाय – 

  1. अपरंपरागत ( सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि ) का अधिक प्रयोग किया जाना चाहिए | 
  2. यदि झीलों एवं जलाशयों के जल में अम्लीयता बढ़ गई हो तो उसमे चूना डालना चाहिए, क्योंकि चूना जल की अम्लीयता को नष्ट कर देता है, जिससे जीव-जंतु नष्ट होने से बच जाते हैं | 
  3. कारखानों की चिमनियों के मुँह पर विशेष फिल्टर ( वैग फिल्टर ) लगने चाहिए | 
  4. जहाँ धुएँ की चिमनी हो वहाँ कोलॉइडल टैंक बनाए जाने चाहिए | 

ओजोन परत ( Ozone layer ) – ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बना ओजोन ( O3 ) का स्तर वायुमंडल में 15 km से लेकर लगभग 50 km ऊँचाई वाले क्षेत्र के बीच पाया जाता है जो पृथ्वी पर रहनेवाले जीवधारियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है | यह सूर्य के प्रकाश में उपस्थित हानिकारक पराबैगनी किरणों ( ultraviolet rays ) का अवशोषण कर लेता है जो मनुष्य में त्वचा-कैसर, मोतियाबिंद तथा अनेक प्रकार के उत्परिवर्तन ( mutation ) को जन्म देती है | 

ओजोन परत का अवक्षय-

फ्लोरोकार्बन ( FC ) एवं क्लोरोफ्लोरोकार्बन ( CFC ), ओजोन ( O3 ) से अभिक्रिया कर, आण्विक ( O2 ) तथा परमाण्विक ( O ) ऑक्सीजन में विखंडित कर ओजोन स्तर का अवक्षय ( depletion ) कर रहें हैं | कुछ सुगंधियाँ ( सेट ), झागदार शेविंग क्रीम, कीटनाशी, गंधहारक ( deodorant ) आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं इन्हें ऐरोसॉल कहते हैं | इनके उपयोग से वाष्पशील CFC वायुमंडल में पहुँचकर ओजोन स्तर को नष्ट करते हैं |

Cl  +   O3 →  ClO  + O2

ClO    +   O  →   Cl   + O2 

जल ( Water ) – पृथ्वीतल का करीब 72% भाग जल से ढँका हुआ है | जब समुद्रों, नदियों, झीलों, तालाबों आदि में विद्यमान रहता है | पृथ्वीतल पर उपस्थित जलीय भाग को जलमंडल ( Hydrosphere ) कहते है | इसके अतिरिक्त, पृथ्वीतल के नीचे भी जल विद्यमान रहता है, जिसे भूमिगत जल ( Underground ) कहते हैं | 

             समस्त जल संसाधन का 97% भाग खारे या कठोर जल का है 2% भाग बर्फ के रूप में दोनों ध्रुवों पर और बर्फ से ढँके पहाड़ो पर पाया जाता है | 1% भाग ही मीठे जल या मृदु जल के रूप में उपलब्ध है यही जीवन, विकास और पर्यावरण को कायम रखे हुए है | 

जल का महत्त्व – 

  1. जंतुओं और पोधों की कोशिकाओं को जीवित रखने के लिए  
  2. मानव जीवन के लिए 
  3. पौधों के लिए 

जल प्रदूषण ( Air Polution ) – प्राकृतिक या मानव-जनित कारणों से जल की गुणवता में गिरावट को जल प्रदूषण कहा जाता है | 

जल प्रदूषण के कारण –

  1. जल का प्रदूषण कृषि-क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से होता है | वर्षा जल इन रसायनों को अपने में घुलाकर समीप में स्थित झीलों, तलाबों तथा नदियों में पहुँचा देता है, जिससे इनका जल भी प्रदूषण हो जाता है | 
  2. नगरीय क्षेत्रों से सीवेज, भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा, नगरों में अवस्थित कारखानों गंदे जल की नलियों से, जल का प्रदूषण होता है | 
  3. विभिन्न कारखानों से निकलनेवाले रासायनिक प्रदूषण तथा कई प्रकार के धात्विक पदार्थ, जैसे सीमा ( Pb ) और मरकरी ( Hg ) आदि नदियों, झीलों एवं तटीय सागर के जल से प्रदूषित करते है | 
  4. समुद्र में खनिज तेल के उत्पादन से खुदाई से एवं अन्य विभिन्न दुर्घटनाओं से जल में तेल का फैलाव बढ़ता जा रहा है तथा समुद्री जल प्रदूषित होता जा रहा है, जिससे अधिकांश समुद्री जल प्रदूषित होता जा रहा है, जिससे अधिकांश समुद्री जीव मर जाते हैं | 
  5. आणविक एवं नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग से रेडियोसक्रिय पदार्थ जल को प्रदूषित कर देते हैं | 

जल प्रदूषण का नियंत्रण – जल जीवनदायी है, लेकिन धीरे-धीरे प्रदूषण के कारण यह मृत्यु का कारण बनता जा रहा है | अत: हमें इसे दूषित होने से बचाना है, जिसके लिए निम्नांकित उपाय अपेक्षित है | 

  1. हर व्यक्ति के घरों से निकलनेवाले कचरे को निर्धारित स्थानों पर फेकना चाहिए | 
  2. कारखानों से निकलनेवाले गंदे जल को बिना शोधित किए नदियों, झीलों या तलाबों में विसर्जित नहीं करना चाहिए | 
  3. सरकार को जल प्रदूषण के नियंत्रण से संबंधित उपयोगी एवं कारगर नियम-कानून बनाने होगें | 
  4. इस समस्या से बचने के लिए हमें आमलोगों को जल प्रदूषण एवं उसके दुष्प्रभावों से अवगत कराना होगा | 

मिट्टी ( Soil ) – पृथ्वीतल की ऊपरी सतह, जिसमें पेड़-पौधे उगाए जाते हैं, मिट्टी कहलाती है | मिट्टी एक प्राकृतिक संसाधन है, जो अनेक अवयवों का एक जटिल मिश्रण होता है | 

मिट्टी के प्रमुख अवयव – 

  1. जल – मिट्टी के कणों के बीच रिक्त स्थानों में और उनकी बाहरी सतह पर जल उपस्थित रहता है | 
  2. वायु – मिट्टी के कणों के बीच स्थित रिक्त स्थान रंध्र ( Pores ) कहलाते हैं, जिसमें जल के साथ-साथ वायु भी भारी रहती है | 
  3. कार्बनिक पदार्थ – मृत जीवों ( जैसे पेड़-पौधे, जीव-जंतु और जीवाणु ) के सड़ने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ आ जाते है, जिन्हें ह्यूमस कहा जाता है | 
  4. आकर्बनिक पदार्थ – जिन पत्थरों से मिट्टी का निर्माण होता है, उसमें उपस्थित अकार्बनिक पदार्थ भी मिट्टी में मिश्रित हो जाते हैं | रासायनिक खाद एवं उर्वरक के प्रयोग से भी मिट्टी में अकार्बनिक पौष्ट्रिक तत्व आ जाते हैं | 
  5. खनिज – मिट्टी में उपस्थित खनिज पदार्थ पौष्ट्रिक तत्व ( Nutrients ) कहलाते हैं, जो पौधों की वृद्धि और विकास में सहायक होते हैं | इनमें हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम और लोहा, ताँबा, जस्ता आदि प्रमुख है | 

मिट्टी का निर्माण ( Formation of Soil )– पत्थर के अपक्षयन ( Weathering of rocks ) से मिट्टी का निर्माण होता है |

पत्थर के अपक्षयन के निम्नांकित कारण है – 

  1. सूर्य के ताप का प्रभाव – दिन में सूर्य पत्थर को गर्म करता है, जिनमें वे प्रसारित हो जाते हैं | रात के समय पत्थर ठंडा हो जाने से संकुचित हो जाते हैं | पत्थर का प्रत्येक भाग आसमान रूप से प्रसारित तथा संकुचित होता है, जिससे पत्थर में दरारें आ जाती है और ये बड़े पत्थर छोटे-छोटे कणों में विभाजित हो जाते हैं | 
  2. जल का प्रभाव – जल दो प्रकार से मिट्टी का निर्माण करता है | 
  1. सूर्य के ताप से बने पत्थरों की दरारों में जल समा जाता है और ठंडा होने के पश्चात् यह जल पत्थर की दरारों में जम जाता है | जल के जमने से आयतन में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप दरार और अधिक चौड़ा हो जाता है और भूस्खलन ( Landslide ) होता है | 
  2. तेज गति से बहता हुआ जल अपने साथ बड़े और छोटे पत्थरों को बहाकर ले जाता है | ये पत्थर दूसरें पत्थरों के साथ टकराकर छोटे-छोटे कणों में टूट जाते हैं | इन कणों को जल अपने साथ बहा ले जाते हैं और दूसरें स्थान पर छोड़ देता है | 

       3. वायु का प्रभाव – वायु भी जल की तरह पत्थर के सूक्ष्मकणों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है, जिससे मिट्टी का निर्माण होता है | 

मिट्टी के प्रकार ( Types of Soil ) – मिट्टी के कई प्रकार होते हैं जिनका निर्णय उनमें पाए जानेवाले कणों के औसत आकार द्वारा निर्धारित होता है | रेत पाए जानेवाले कणों के औसत आकार द्वारा निर्धारित होता है | रेत ( Sand ) में पाए जानेवाले कणों का आकार बड़ा होता है और कीचड़ ( Clay ) में पाए जानेवाले कण सबसे छोटे होते हैं | गाद ( Sailt ) में पाए जानेवाले कणों का आकार रेत एवं कीचड़ के बीच का होता है | पेड़ पौधों की उपज के लिए उपयुक्त मिट्टी दुम्मट ( Loam ) कहलाती है | यह मिट्टी बालू, गाद और कीचड़ का मिश्रण होती है, जिसमें ह्यूमस और सूक्ष्मजीव भी पाए जाते हैं, जिनसे मिट्टी की उर्वरता बरकरार रहती हैं | 

  • जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) या दोमट और कछार मिट्टी – नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी कहते हैं
  • काली मिट्टी (Black Soil) या लावा मिट्टी- यह काले रंग की मिट्टी होती है | यह मिट्टी नमी को अधिक समय तक बनाये रखती है | इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइड एंव जीवांश(Humus) की उपस्थिति के कारण होता है ।
  • लाल मिट्टी (Red Soil) – यह चट्टानों की कटी हुई मिट्टी है, यह मिट्टी अधिकतर दक्षिणी भारत में मिलती है |
  • लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)- लैटेराइट मिट्टी का निर्माण ऐसे भागों में हुआ है, जहाँ शुष्क व तर मौसम बार-बारी से होता है। यह लेटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।
  • रेतीली मिट्टी (Desert Soil)  – इस प्रकार की मिट्टी मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाती है राजस्थान में इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान में 38% तक पाया जाता है इस मिट्टी को एरिडिसोल्स भी कहा जाता है |

मिट्टी के कार्य – 

  1. मिट्टी पौधों को यांत्रिक संरक्षण प्रदान करती है | 
  2. पौधों की जड़े मिट्टी से ऑक्सीजन प्राप्त करती है | इसके लिए मिट्टी को समय-समय पर कोड़कर ढीली कर दी जाती है | 
  3. पौधे अपनी वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्व मिट्टी से ही प्राप्त करते हैं | 

मृदा प्रदूषण  ( Soil Polution ) – मिट्टी से उपयोगी घटकों का हटना और दूसरों हानिकारक पदार्थों का मिट्टी से मिलना, जिससे मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो, उसे भूमि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण कहते हैं | 

मानव पर दुष्प्रभाव – 

  1. कूड़े-कचरे भूमि प्रदूषण के अतिरिक्त जल एवं वायु प्रदूषण में भी वृद्धि करते हैं | 
  2. कूड़ा-कचरे के सड़ने-गलने से अनेक प्रकार की विषैली गैसें एवं दुर्गंध निकलती है जिससे क्षेत्रीय वातावरण दूषित हो जाता है | 
  3. कूड़े-कचरें, जिनमें मल-जल एवं डिटर्जेंट मिश्रित होते हैं, जब नालीयों से बहकर जल-स्त्रोतों में पहुँच जाते हैं तब जल प्रदूषण होता है | 

नियंत्रण – 

  1. कूड़े-कचरों को नष्ट करना 
  2. कूड़े-कचरों से कंपोस्ट बनाना 
  3. कचरों का पुनर्चक्रण 

मिट्टी का अपरदन (Soil erosion)  – वायु और वर्षा के अत्यधिक प्रहार से धीरे-धीरे मिट्टी की ऊपरी सहत कट जाती है | इसे मिट्टी का अपरदन कहते हैं | 

मिट्टी का अपरदन रोकने के उपाय – 

  1. मिट्टी को अपरदन से बचाने के लिए मिट्टी की सतह पर अधिक-से-अधिक पौधे उगने चाहिए | पौधों की जड़े मिट्टी को मजबूती से रखती है | 
  2. जोते हुए खेत को काफी दिनों तक बिना फसल लगाए छोड़ने पर हवा और जल से मिट्टी का अपरदन होता है | 

मिट्टी की उर्वरता का संरक्षण  – निम्नलिखित विधियों द्वारा मिट्टी की उर्वरता कायम रखी जा सकती है | 

  1. फसल-चक्रण ( Crop Ratation ) – किसी विशेष फसल के लिए कुछ विशेष पोषक-तत्व आवश्यक होते हैं | यदि एक ही फसल को बार-बार एक ही मिट्टी में बोया जाए तो उस मिट्टी में उन पोषक-तत्वों की कम हो जाती है | इस स्थिति से बचने के लिए फसल-चक्रण प्रणाली को अपनाया जाता है | इस प्रणाली में एक ही कृषि-भूमि पर बदल-बदलकर विभिन्न फसलों को बारी-बारी से बोया जाता है | 
  2. भूमि को परती छोड़कर (Leaving the ground fallow) – भूमि को एक दो साल परत छोड़ देना चाहिए | मिट्टी को परती छोड़ने की स्थिली में उसमें आवरण फसलें ( Cover Crop ) लगाई जानी चाहिए | इससे मिट्टी को जैव पदार्थ तथा हरा खाद की प्राप्ति होती रहती है | 
  3. कार्बनिक उर्वरक का उपयोग (Use of organic fertilizers) – कृषि भूमि की उर्वरा-शक्ति कायम रहे इसके लिए कार्बनिक उर्वरक का उपयोग होना चाहिए | 
  4. ह्यूमस का उपयोग (Use of humus) – मिट्टी में समय-समय पर ह्यूमस ( Humus ) या जीवांश डालना चाहिए, ताकि मिट्टी की जलग्रहण क्षमता कायम रहें | 

जैव रासायनिक चक्र (Biochemical cycle) – सूर्य की उपस्थिति में जीवमंडल में जैविक घटक से अजैविक घटक और फिर अजैविक घटक से जैविक घटक के बीच परस्पर बदलाव का चक्र चलता रहता है, जिसे हम जैव रासायनिक चक्र कहते हैं | इस तरह के हमारे जीवमंडल में कई चक्र है, जिनमें निम्नांकित मुख्य है | 

1. जल चक्र     2. ऑक्सीजन चक्र     3. कार्बन चक्र      4. नाइट्रोजन चक्र 

  1. जल चक्र (Water Cycle) –  सूर्य की गर्मी से नदी, तालाब एवं समुद्र के जल से जलवाष्प बनता है | जलवाष्प ऊपर उठता है और संघनित होकर बादल का निर्माण करता है | बादल में स्थित जल की बड़ी बूँद वर्षा के रूप में धरती पर गिरती है |  फिर , वर्षा जल बह कर नदियों से होते हुए समुन्द्र में गिरता है  | प्रकृति में यह चक्र चलता है रहता है, जिसे जल चक्र ( Water Cycle या hydrologic cycle )  कहते हैं |
  2. ऑक्सीजन चक्र (Oxygen Cycle) – वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग 21% है, जो हमेशा संतुलित रहती है | 
  1. श्वसन क्रिया में हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड का त्याग करते हैं, जिसे पेड़-पौधे ग्रहण करते हैं | सूर्य की रोशनी में पेड़-पौधे क्लोराफिल की उपस्थिति में अपना भोजन ( ग्लूकोस ) बनाते हैं और ऑक्सीजन वायुमंडल में लौट जाता है | 
  2. दहन क्रिया में – वायुमंडल के ऑक्सीजन का उपयोग दहन प्रकिया के लिए भी किया जाता है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड को पेड़-पौधे ग्रहण करते हैं | ऑक्सीजन का उपयोग वायुमंडल में स्थिर नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनाने में भी होता है | 3. कार्बन चक्र ( Carbon Cycle ) – सभी जीव कार्बन आधारित कार्बनिक यौगिकों, जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा विटामिन और न्यूक्लीक ( Nucleic ) अम्ल पर आधारित होता है | वायुमंडल में कार्बन, मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड जल में भी घुला पाया जाता है | ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड जल में भी घुला पाया जाता है | ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड जैविक जलत में प्रकाशसंश्लेषण द्वारा प्रवेश करता है | प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया द्वारा पेड़-पौधे क्लोरोफिल की उपस्थिति में COको ग्लूकोस में बदल देता है | ग्लूकोस का उपयोग जीवित प्राणियों में भोजन के रूप में अथवा ऊर्जा प्रदान करने प्रकिया में होता है | समुद्री जल में घुले कार्बन डाइऑक्साइड के द्वारा चूना-पत्थर ( कैल्सियम कार्बोनेट ) से बने चट्टान का निर्माण होता है | समुद्री जीव-जंतुओं के बाहरी और भीतरी कंकाल भी कैल्सियम कार्बोनेट लवण के बने होते हैं | कई विधियों द्वारा CO2 वायुमंडल में पुन: लौटता है | कार्बन चक्र ( Carbon Cycle )

    4. नाइट्रोजन चक्र ( Nitrogen Cycle ) –  वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन गैस विद्यमान है | वायुमंडल में नाइट्रोजन के इस रूप को जीव-जंतु श्वसन क्रिया द्वारा नहीं ग्रहण कर पाते हैं | पेड़-पौधे भी अपने पतों द्वारा इस नाइट्रोजन गैस को नहीं ग्रहण कर पाते है | विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा वायुमंडल का नाइट्रोजन गैस को नहीं ग्रहण कर पाते है | विभिन्न प्रकियाओं द्वारा वायुमंडल का नाइट्रोजन नाइट्रेट, नाइट्राइट या अमोनिया में परिणत हो जाता है, जिसे पेड़-पौधे प्राप्त कर दूसरे आवश्यक अणुओं में बदल देते हैं | कुछ फलीदार पौधों की जड़ों में पाए जानेवाले एक खास किस्म के नाइट्रीकारी जीवाणु ( Bitrifying Bacteria ) वायुमंडल के नाइट्रोजन के नाइट्रेट और नाइट्राइट में परिणत कर देते हैं आकाश में बिजली के चमकने से वायुमंडल का नाइट्रोजन के ऑक्साइड में बदल जाता है | नाइट्रोजन डाइऑक्साइड वर्षा-जल में घुलकर नाइट्रीक तथा नाइट्रस अम्ल बनाकर भूमि की सतह पर गिरते हैं |  पेड़-पौधे नाइट्रेट और नाइट्राइट को मिट्टी से प्राप्त कर उन्हें ऐमीनी अम्ल में बदल देते हैं, जिनका उपयोग प्लांट-प्रोटीन बनाने में होता है |

   

 

 

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