प्राकृतिक संसाधन ( Natural resource ) – Class 10th Chemistry Notes

संसाधन – मानव  जीवन के लिए उपयोगी वस्तुएँ जो प्रकृति में मौजूद है, संसाधन कहालती है | 

  • संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता – प्रकृति में विद्यमान वे वायु, जल, पेड़ – पौधें हमारे संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है क्योंकि हमारे संसाधनों सिमित है जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण सभी संसाधनों की मॉग तेजी से बढ़ती जा रही है अत: प्राकृतिक संसदाह्नों की मॉग तेजी से बढती जा रही है अत: प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते समय दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना होगा हमें संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा जिससे न केवल हमारी तात्कालिक आवश्यकताएँ पूरी हो बल्कि वे भावी पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध हो यह भी सुनिश्चित करना होगा कि संसाधनों का वितरण सभी वर्गों में समान रूप से हो | 

              संसाधनों का उपयोग इस प्रकार होना चाहिए जिससे संसाधनों के संपोषण के साथ – साथ पर्यावरण का संरक्षण भी हो सके संपोषित विकास हेतु संसाधनों का नियंत्रित और विवेकपूर्ण उपयोग ही संसाधन प्रबंधन का मूल मंत्र है | 

अपशिष्टो का निपटान – घरों, कारखानों, अस्पतालों आदि के अपशिष्ट पदार्थ फैलाते हैं अत: उनका निपटान आवश्यक है इसके लिए चार – R है | ( Four R ) काफी प्रचलित है | चार – R है | – Refuse ( मना करना ), Reduce ( उपयोग में कमी ), Recycle ( पुन: चक्रण ) और Reuse ( पुन: उपोपाग ) | 

        मना करना ( Refuse ) – प्लास्टिक की बनी थैलियों या सामान का अधिक उपयोग करना हमारे लिए हानिकारक है अत: प्लास्टिक का उपयोग करने के लिए सभी को मना Refuse करना चाहिए तथा ऐसी जागरूकता हेतु अभियान चलाना चाहिए | 

      उपयोग में कमी ( Reduce ) – जैसा नाम से ही स्पष्ट है, हम संसाधनों के उपयोग में कमीलाकर पर्यावरण पर पड़नेवाले कुप्रभाव को कम कर सकते हैं अत: व्यर्थ चलते हुए पंखे या जलते हुए बल्ब को ऑफ कर बिजली बचाई जा सकती है इसी प्रकार नल से व्यर्थ पानी नहीं बहाना, सुखाने के लिए ड्रायर ( Dryer ) की जगह धुप का उपयोग करना आदि संसाधनों के कम उपयोग के दृष्टांत है | 

    पुन: चक्रण ( Recycle ) – इसका अर्थ है उपयोग में ले आने के बाद व्यर्थ बची वस्तुओं से पुन: उपयोगी वस्तुएँ बनाना | प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु आदि की बेकार वस्तुओं का पुन: चक्रण के लिए भेजा जा सकता है | 

    पुन: उपयोग ( Reuse ) – एक का वस्तु का बार – बार उपयोग करना पुन: उपयोग कहलाता है यो तो हम वस्तुओं का बार – बार उपयोग करते ही है यू तो हम वस्तुओं का बार – बार उपयोग करते ही है किंतु कुछ वस्तुएँ उपयोग के बाद फ़ेंक दी जाती है | इससे संसाधन का ह्रास हो होता ही है, पर्यावण भी प्रदूषित होता है | अत: हमें यथासंभव इन वस्तुओं का पुन: उपयोग करना चाहिए | 

वैकल्पिक संसाधनों का उपयोग – पेड़ – पौधें और जानवरों के अपशिष्टों से अनेक उपयोगी पदार्थ प्राप्त किये जा सकते है पेड़ – पौधें के अवशेष जलावन के काम आते है इसमें सेलुलोज होता है जिससे किण्वन से उपयोगी रसायन बनाये जा सकते हैं कचड़े, मानवीय मूलामूत्र, गोबर आदि का उपयोग कर बायोगैस बनाये जा सकते हैं | इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है | और वैकल्पिक उत्पाद के रूप में कंपोस्ट प्राप्त होता है | 

कोयला और पेट्रोलियम – ऊर्जा के महत्वपूण साधनों में जीवाश्म ईंधन अर्थात् कोयला और पेट्रोलियम का विशिष्ट स्थान है ये भू – पर्पटी में पाये जाती है सुलभ और उपयोगी होने के कारण ये दुनिया भर में में ऊर्जा के मुख्य स्त्रोत है | भारत में कोयले का विशाल भंडार है हमारी 65% ऊर्जा की आवश्यकता कोयले से पूरी होती है प्रतिवर्ष लगभग 2.5 करोड़ टन कोयले का खनन होता है इस गति से खपत होने पर हमारे कोयले के भंडार 200 वर्षों में समाप्त हो जायेगें | ऊर्जा की मॉग लगातार बढ़ती जा रही है जबकि इनका स्त्रोत प्रकृति में सिमित है अत: ऊर्जा संकट की समस्या उत्पन्न हो सकती है | 

                 कोयले और पेट्रोलियम के संरक्षण के लिए निम्नलिखित विकल्प अपनाये जा सकता है  – 

  1. स्कूटर की जगह साइकिल का प्रयोग करना या पैदल चलना | 
  2. प्राइवेट कार की जगह पब्लिक बस से यात्रा करना | 
  3. उर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों, जैसे – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि को विकसित करना | 
  4. ऐसी प्रोद्योगिकी को अपनाना जिससे ईंधन की खपत और प्रदूषण कम हो, किंतु ऊर्जा अधिक प्राप्त हो  उदाहरणार्थ, बल्ब की जगह CFL प्रयोग करने से हमारी ऊर्जा की खटप घट जाती है | 
  5. दैनिक जीवन में ऊर्जा के उपयोग में कमी लाना, जैसे लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का प्रयोग करना, हीटर या आग जलाने के बदले गर्म कपड़े पहनना, व्यर्थ जल रही बतियों को बुझा देना आदि | 

ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोत – कोयला और पेट्रोलियम सिमित मात्रा में उपलब्ध है उनके उपयोग से प्रदूषण होता है अत: ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोंतों की ओर ध्यान आकृष्ट करना आवश्यक है | विगत कुछ वर्षों में भारत में विभिन्न वैकल्पिक स्त्रोंतों से विधुत उत्पादन की क्षमता विकसित हुई है | किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक ऊर्जा की मुख्य स्त्रोत बायों गैस है | 

  1. बायों गैस ( Bio Gas ) – गोबर, फसलों के काटने के बाद बचे अवशेष, घरेलू कचरे आदि के हवा की अनुपस्थिति में अपघटित होने से बायों गैस कहलाती है ग्रामीण क्षेत्रों में इस गैस के निर्माण के लिए प्रारंभ में गोंबर का प्रयोग किया जाता है | अत: इस बायों गैस का प्रचलित नाम गोबर गैस है | 

                   बायों गैस एक अच्छा ईंधन है इसमें 75% तक मीथेन होता है इसका उपयोग स्टोव जलने या प्रकाश उतपन्न करने के लिए किया जा सकता है | संयंत्र में शेष बचे पदार्थ में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस होते हैं अत: यह एक उतम खाद है | बायों गैस एक वरदान है इससे ऊर्जा और खाद तो प्राप्त होती ही है अपशिष्ट पदार्थों का निपटान भी हो जाता है यह ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्त्रात है | 

2. पवन ऊर्जा – परंपरागत रूप सी पवन ऊर्जा का उपयोग नाव चलाने और कृषि कार्यों में होता रहा है | अब पवन चक्कियों का उपयोग विधुत उत्पादन के लिए हो रहा है तटीय क्षेत्रों में तेज हवायें चलती है इन क्षेत्रों में पवन चक्कियों को जेनरेटर से जोड़ कर विधुत का उत्पादन किया जा रहा है इसके लिए पवन की चाल कम – से – कम 15 किमी / घंटा होनी चाहिए | 

3. जल विधुत – बहते हुए जल की शक्ति के उपयोग से विधुत का उत्पादन ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोंतों में प्रमुख है तेज बहती नदी के जल को एक ऊॅचे बाँध ( डैम ) में एकत्र कर लिया जाता है | डैम की दूसरी तरफ कई मीटर नीचे टरबाईन होता है जो जेनरेटर से जुड़ा होता है बाँध के गेट से बहते हुए जल में शक्ति होती है जिससे टरबाइन चलता है और विधुत का उत्पादन होता है | 

4. महासागरीय ऊर्जा – समुद्र की लहरों और ज्वार में अत्यधिक गतिज ऊर्जा होती है इस ऊर्जा का उपयोग विधुत उत्पादन के लिए किया जा सकता है | 

5. महासागरीय ताप विधुत – महासागरों के सतह और गहराई वाले क्षेत्र में बीच तापक्रम 20° तक का अंतर होता है इस अंतर का उपयोग विधुत उत्पादन के लिए किया जा सकता है | 

6. भू – तापीय ऊर्जा – पृथ्वी के गर्भ m ऊर्जा ( ताप ) का असीम भंडार है यही गर्म जल के झरणों और गीजर के रूप में सतह पर प्रगट होता है | झरणों के नीचे अति तप्त जल का एक बड़ा क्षेत्र होता है, जिसे वोर – वेल द्वारा बाहर निकाल कर विधुत उत्पादन के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है | 

7. सौर ऊर्जा – सूर्य ऊर्जा का अनवरत स्त्रोत है पृथ्वी पर होने वाली प्राकृतिक गतिविधियों और जीवो के कार्यकलाप मूलतः सौर ऊर्जा से ही संचालित होते हैं | 

    सूर्य के प्रकाश और ताप को वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में उपयोग में लाने के लिए अनेक प्रकार के उपकरण ( device ) विकसित किये गये है इनमें से कुछ निम्नलिखित है – 

  1. सोलर कुकर – भोजन पकाने के लिए |
  2. सोलर हीटर – कमरों को गर्म करने के लिए |
  3. सोलर वाटर हीटर – गर्म जल प्राप्त करने के लिए|
  4. सोलर लालटेन – दिन में चार्ज कर, रात में रोशनी प्राप्त करने के लिए | 
  5. सोलर पंप – सौर ऊर्जा के उपयोग से भूमिगत जल को खींचने का उपकरण | 

8. नाभिकीय ऊर्जा – कुछ भारी तत्वों, जैसे यूरेनियम के नाभिक को न्यूट्रॉन द्वारा विखंडित करने पर अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होती है इसे नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं | इस ऊर्जा के उपयोग से भारी मात्रा में भाप बनाई जाती है | 

वन एवं वन्य जीवन – वन और वन्य जीवन हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है वनों से हमें इमारती लकड़ी, बॉस , फल, नट्स तथा औषधीय पौधें प्राप्त होते है भारत में लगभग 60 मिलियन हेक्टेयर जमीन वनों से आच्छादित है यह देश के क्षेत्रफल का लगभग 20% है हमारे वनों में अनेक प्रकार के वन्यजीव पाये जाते है | वन जन्तुओं और पौधों के संग्रह मात्र नहीं है इनकी एक जटिल और जीवंत व्यवस्था है जिससे हमें अनेक प्रकार के प्राकृतिक संसाधन प्राप्त होते रहते हैं वन एक नवीकरणीय संसाधन है | 

  • वन का महत्व – 
  1. वन हमारी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं | 
  2. वायुमंडल में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प आदि का संतुलन बनाये रखने में वनों का महत्वपूर्ण योगदान है | 
  3. वन बाढ़ और भूमि अपरदन ( Soil erosion ) को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं | 

वनों का संरंक्षण – बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगिकीरण और विकाश – परियोजनाओं ने सदियों से चले आ रहें वनों के संतुलन को बिगाड़ दिया | लोगों को खेती और मकान के लिए जगह की जरुरत हुई, जिसे जंगल साफ कर पूरा किया गया | उद्योगों को लकड़ी और वनों के अन्य उत्पादों की जरुरत हुई, जिसके लिए पेड़ काटे गएँ औद्योगिक परिसर, खनन, बाँधों, के निर्माण आदि में भी वनों को काफी नुकसान पहुँचाया गया | 

वन्यजीवों संरक्षण – भारत में 92 राष्ट्रीय उद्यान और 500 वनविहार ( Wild Life Sanctuaries ) है जहाँ बाघ, हाथी, गैंडा ( Rhinoceros ) जैसे 500 प्रकार के स्तनधारी ( Mammals ) जीव पायें जाते हैं ये संरक्षित क्षेत्र है यहाँ शिकार करने या वन्य जीवों को अन्य प्रकार से क्षति पहुँचाने पर कड़ा प्रतिबंध है बाघों की घटती हुई संख्या को रोकने के लिए WWF और भारत सरकार के सयुक्त प्रयास से बाघ परियोजना ( Tiger Project ) बनाई गई |  

                       भारत में पक्षियों की 2000 प्रजातियाँ पाई जाती है इन्हें विलुप्त होने के बचाने के लिए अनेक पक्षी बिहार ( Bird Sanctuary ) बनाये गये राजस्थान के भरतपुर और संभार लेक, हरियाणा के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और मध्यप्रदेश के करेरा नेशनल पार्क आदि में पक्षी बिहार बनाये गये है | 

वन एवं वन्य जीव – प्राकृतिक संसाधनों में वन का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है ये हमारे आर्थिक विकास के साधन के मात्र ही नहीं है बल्कि प्राणियों के अस्तित्व बनाए रखने में भी इनकी महत्वपुर्ण भूमिका है वन नवीकरणीय संसाधन है अर्थात् नष्ट होने के बाद वनस्पतियों को उगाकर इन्हें पुन: स्थापित किया जा सकता है | 

वन का महत्व –

1 वन पर्यावरण की सुरक्षा के साथ – साथ मनुष्यों की मूल आवश्यकताओं, जैसे आवास निर्माण सामग्री ईंधन, जल तथा भोजन का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आपूर्ति करता है |  

2. पेड़ – पौधे की जड़े मिट्टी के कणों को बाँधकर रखती है | जिससे तेज वर्षा तथा वायु के झोको से होनेवाला भूमि अपरदन रुकता है | वह मिट्टी कटाव को रोकने में सहायक होता है | 

3. जल चक्र के पूर्ण होने में वनों का महत्वपूर्ण योगदान है | 

4. वनों द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि होती है |

5. वनों द्वारा वातावरण के ताप में कमी आती है | 

6. वातावरण में CO2  और ऑक्सीजन के संतुलन को कायम रखने में पेड़ – पौधें सहायक होती है | वन कटाई से हरें पतों द्वारा COआवशोषण ( प्रकाश संस्लेषण के लिए ) की क्षमता घट जाती है प्रकाश संश्लेषण की दर घटने से पर्यावरण में O2 की कमी हो जाती है | 

7. वनों के ह्रास से कई प्रकार की जैव प्रजातियाँ लुप्त हो जाती  है \ 

8. वनों से हमें दुर्लभ औषधीयपौधें रेजिन, रबर, तेल, ऐल्केल्वायड्स ( alkaloids ) आदि मिलते हैं | 

9. वनों से पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता है | 

10. वनों में पेड़ों से गिरनेवाले पत्ते मिट्टी में सड़कर ह्रूमस उत्पन्न करते हैं जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है |

चिपकों आंदोलन – 1970 के दशक में, गढ़वाल ( उतराखंड ) के पहाड़ों पर स्थित रेनी ग्रास में इमारती लकड़ी के ठेकेदारों के हाथों वनों का विनाश रोकने के लिए स्थानीय स्त्रियों ने पेड़ों से चिपक्कर एक जन आंदोलन किया था | तीन सदी पूर्व राजस्थान के खेजरी ग्राम में पेड़ों से चिपकाकर स्त्रियों के जान देने की घटना की याद में लोगों ने इस आंदोलन को चिपकों आंदोलन नाम दिया | 

जल प्रबंधन – जल एक नवीकरणीय संसाधन है यह जीवन के  लिए आवश्यकता है यो तो पृथ्वी का तीन चौथाई भाग जल से भरा है किंतु यह खारा जल है | हमें मृदु जल की आवश्यकता है जो भूमिगत जल, वर्षा जल तथा झीलों, नदियाँ आदि के जल के रूप में उपलब्ध है भूमिगत जल का दोहन तीव्र गति से हो  रहा है इसकी आपूर्ति वर्षा जल से होती है किंतु यह दोहन की तीव्र गति के कारण अपर्याप्त है अत: हमें वर्षा जल के संग्रहण की आवश्यकता है | 

बाँध – नदियाँ उत्कृष्ट जल संसाधन है इनसे सिंचाई और विधुत निर्माण होता है इसके लिए बड़े  बाँध ( डैम )और नहरों का निर्माण करना होता है बाँधों से अनेक समस्याएँ भी पैदा होती है | अत: जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन की आवश्यकता है | बाँध जल के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया एक व्यवधान है किससे एक जलाशय बनता है | इस जलाशय का उपयोग विधुत निर्माण और सिंचाई के लिए किया जा सकता है | बाँध बनाने के लाभ – 

  1. बड़े बाँध में पर्याप्त मात्रा में जल संग्रहण किया जा सकता है | इसका उपयोग विधुत निर्माण और सिचाई के लिए किया जा सकता है | 
  2. इससे निकालने वाली नहरें जल की बड़ी मात्रा की दूरस्थ स्थानों तक सुविधाजनक ढंग से ले जाती है इससे बड़े क्षेत्र में हरियाली आ जाती है | 
  3. जल संग्रहण की क्षमता होने के के कारण बाँध नदियाँ में आने वाली बाढ़ को नियंत्रित करते हैं | 
  4. कृषि क्षेत्र के विकास के लिए दो मुख्य आवश्यकताएँ है – 

           बिजली और सिचाई की व्यवस्था | अत: बाँधों के निर्माण से उस क्षेत्र का सर्वागीण विकास होता है | 

वर्षा जल का संग्रहण – भारत में वर्षा मुख्यत: मॉनसून पर निर्भर करती है वर्षा जल वर्ष के कुछ महीनों तक ही उपलब्ध होता है और इनमें क्षेत्रीय विषमता होती है | देश के उतरी – पश्चिमी भाग में बहुत कम वर्षा ( < 50 cm ) होती है अत: वर्षा जल का संग्रहण आवश्यक है | इससे निम्न लाभ होते हैं | 

  1. संग्रहित वर्षा जल का उपयोग सिंचाई और घरेलू कार्यों के लिए किया जा सकता है | 
  2. इससे शहरी क्षेत्रों में जल जमाव की समस्या दूर होती है | 
  3. संग्राहक में जमा किया गया वर्षा जल धीरे – धीरे मृदा को पार कर नीचे भूमिगत जल में मिलने लगता है इससे भौम जल स्तर में सुधार होता है | 

पर्यावरण संरक्षण – संसाधनों के अविवकपूर्ण उपयोग से पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा होती है इनमें अनेक वैश्विक समस्याएँ है इनके समाधान के लिए अंतराष्ट्रीय प्रयास हुए है | हमारे देश में भी पर्यावरण संबंधी कानून है अनेक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संगठन भी पर्यावरण सरक्षण हेतु कार्यरत है | 

पर्यावरण संबंधी कानून – 

Environment ( Protection ) Act, 1986 – पर्यावरण संरक्षण संबंधी नियम, परिनियम और मानक निर्धारण |  Forest Act – आरक्षित और संरक्षित वनों का निर्धारण, पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक | 

वाहन उत्सर्जन संबंधी मानक – मोटरगाड़ियों से उत्सर्जित धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा अन्य हानिकारक पदार्थ होता है अनेक देशों में उत्सर्जन संबंधी मानक होते हैं | उत्सर्जन में प्रदूषक की अधिकतम मात्रा को निर्धारित करते हैं | यूरापियन युनियन ने 1988 में यूरों – 0 मानक लागू किया जो मोटरगाड़ियों के वायु उत्सर्जन के कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड, कार्बन के महीन कणों ( Soot ) आदि की मात्रा को नियंत्रित करता था | 

बाद के वर्षों में यूरों – 1, यूरों – 2, यूरों – 3, यूरों – 4 आदि मानक जो क्रमश: अधिक कड़े मानदंड थें लागू किये गायें | 

  • गंगा सफाई योजना – गंगा भारत की सबसे लंबी नदी है यह हिमालय से निकल कर उतरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है इसके किनारों पर अनेक छोटे – बड़े शहर बेस है | गंगा का जल स्वच्छ और पवित्र माना जाता रहा है शहरों के नालों और करखानों के दूषित जल के अनियंत्रित प्रवाह से गंगा जल की गुणवता बहुत कम हो गई सन 1985 में भारत सरकार ने गंगा कार्यान्वयन परियोजना ( Ganga Action Plan ) प्रारंभ की इसकी मुख्य उद्देश्य गंगा के प्रदूषण को कम करना था | 
  • अंतराष्ट्रीय प्रयास – सन 1948 में सूनेस्कों द्वारा ( IUCN International Union for Conservation of Nature ) की स्थापना की गई इस संस्था का मुख्य उद्देश्य प्रकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित नियमों को कड़ाई से लागू करना था | 
  •   क्योटो प्रोटोकॉल – 1997 में क्योओं ( जापान ) में वैश्विक ऊष्मीकरण को नियंत्रिक करने के उद्देश्य से एक अंतराष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन किया गया | इसका मुख्य उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को नियंत्रित करना था | सम्मलेन में 144 देशों के प्रतिनधियों ने भाग लिया | 2006 तक 164 देश इसमें शामिल हो चुके थें | भारत इसमें 2002 में सम्मिलित हुआ |   

 

 

 

Learn More Chapters          Download PDF

Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *