बिहार : प्राकृतिक संसाधन – Class 10th Social Science Notes in Hindi

बिहार भारत का एक महत्त्वपूर्ण प्रांत है | यह प्राकृतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एक विशिष्ट प्रान्त है | 

स्थिति एवं विस्तार – बिहार भारत का एक भू-आवेशित ( Land Locked ) प्रांत है, जिसके उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखण्ड, पूर्व में पश्चिम बंगाल और और पश्चिम में उत्तर प्रदेश स्थित हैं | 

प्रशासनिक संगठन – 15 नवम्बर, 2000 ई० को बिहार-विभाजन के फलस्वरूप जिस नवीन बिहार का प्रारूप सामने आया, उसमें 9 प्रमंडल ( कमिश्नरी ), 38 मंडल ( जिले ), 101 अनुमंडल ( सबडिवीजन ), 533 सामुदायिक विकास प्रखंड, 130 शहर और 45,103 राजस्व गाँव सम्मिलित हैं | 

संरचना 

बिहार की भौगर्भिक संरचना का अध्ययन विभिन्न युगों में निर्मित चट्टानों के आधार पर किया जा सकता है | इसके निर्मित चट्टानों के आधार पर किया जा सकता है | इसके अंतर्गत प्राचीनतम भौगर्भिककाल में निर्मित भू-भाग से लेकर नवीनतम भौगर्भिककाल में निर्मित भू-भाग तक सम्मिलित हैं | 

प्राकृतिक रूप 

धरातल की बनावट के दृष्टिकोण से बिहार में विभिन्नताएँ मिलाती हैं | इसके एक ओर हिमालय की बाह्यश्रेणी या शिवालिकश्रेणी स्थित है, तो दूसरी ओर प्रायद्वीपीय पठार का भू-भाग | इन दोनों के बीच गंगा का मध्यवर्ती मैदान स्थित है, जिसके बीच से गंगा नदी बहती है | इसे बिहार का मैदान भी कहा जाता है | 

बाढ़ 

बाढ़ बिहार राज्य की एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिससे प्रत्येक वर्ष फसलें बर्बाद होती हैं, गाँव-के- गाँव उजड़ जाते हैं, बाढ़ का संबंध जलवायु और अपवाह-तंत्र से है | जब नदियों के जलग्रहण-क्षेत्र में भारी वर्षा होती है और नदियों में अधिक पानी पहुँचता है, तब यह तट को पार करके दोनों ओर के स्थलखण्डों पर फैल जाता है | 

                   उत्तरी बिहार का मैदान बाढ़ से अधिक प्रभीवित है | उत्तर बिहार में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में सरण, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, दरभंगा, सहरसा, खगड़िया इत्यादि मुख्य हैं | इन क्षेत्रों में मुख्यतः घाघरा, गंडक, कमला, बागमती और कोसी नदियों से बाढ़ आती है | 

               पिछले 200 वर्षों में कोसी की धारा 150 कि० मी० पश्चिम खिसक गयी है | गंडक नदी के मार्ग-परिवर्तन करने के कारण इसकी पुरानी धारा बूढ़ी गंडक कहलाती है | 

               कभी-कभी बाढ़ के समय जब स्वयं गंगा नदी का जल-स्तर ऊँचा हो जाता है, तो इसकी सहायक नदियों का जल संगम पर रुक जाता है, और बाढ़ उत्पन्न हो जाती है | 

जलवायु 

विशेताएँ – किसी प्रदेश के आर्थिक विकास और सांस्कृतिक समृद्धि में जलवायु की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है | अपवाह-तंत्र प्राकृतिक वनस्पति और मिट्टी का विकास जलवायु पर निर्भर करता है | 

          बिहार की जलवायु उष्ण मानसूनी है | इसकी स्थिति पूर्व के सामुद्रिक प्रभाव वाले आर्द्रक्षेत्र तथा पश्चिम के महादेशीय प्रभाव वाले शुष्क क्षेत्र के बीच में है | अत: इसकी जलवायु न तो पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के तटीय क्षेत्र की तरह आर्द्र है और न पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के समान शुष्क है | 

ॠतुएँ – तापमान, वर्षा, वायुदाब और वायु की दिशा के आधार पर बिहार की जलवायु को तीन मुख्य ॠतुयों में विभाजित किया जा सकता है – 

  1. ग्रीष्म ॠतु – मध्य मार्च से मध्य जून तक | 
  2. वर्षा ॠतु – मध्य जून से मध्य अक्टूबर तक | 
  3. शीत ॠतु – मध्य अक्टूबर से मध्य मार्च तक | 

A. ग्रीष्म ॠतु ( summer Season ) – बिहार में 15 मार्च से ग्रीष्म ॠतु प्रारंभ होती है, जो मध्य जून तक चलती है | मार्च के बाद ज्यों-ज्यों सूर्य उत्तर की और बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों बिहार में तापमान निरंतर बढ़ता जाता है | 

B. वर्षा ॠतु ( Rainy Season ) – वर्षा ॠतु मध्य जून से आरंभ होती है और मध्य अक्टूबर तक चलती है | इस समय पूरे बिहार में वर्षा होती है | 

C. शीत ॠतु ( Winter Season ) – बिहार में मध्य अक्टूबर से मध्य मार्च तक शीत ॠतु अनुभव की जाती है | खुला आसमान, सहनीय सूर्य की स्वच्छ किरणें, मंद पछुआ पवन तथा शांत रात्रि और सुहावनी सुबह आदि इस ॠतु विशेषताएँ हैं | 

सुखा या सुखाड़ ( Drought ) 

बाढ़ के समान सूखा या सुखाड़ भी एक प्राकृतिक प्रकोप है, जिसका संबंध बिहार की जलवायु से है | सूखा या सुखाड़ का अर्थ जल की कमी है और इस शब्द का प्रयोग कृषि के संदर्भ में किया जाता है | भारतीय मौसम विभाग के अनुसार किसी क्षेत्र में सूखा की स्थिति उस  उप्तन्न होती है, जब उस क्षेत्र में सामान्य से 75 % से भी कम वर्षा हो | 

             सुखाड़ से न केवल फसल की हानि होती है, बल्कि खाद्यान्न की आपूर्ति भी कठिन हो जाती है | मवेशी के लिए चारा की कमी हो जाती है | 

सिंचाई की आवश्यकता ( Necessity of Irrigation ) – कृषि के लिए मिट्टी में नमी आवश्यक है | मिट्टी को नमी जल से प्राप्त होती है | 

  1. वर्षा की अनिश्चितता ( Uncertainty of Rainfall ) – अनिश्चितता मानसूनी वर्षा की सर्वप्रमुख विशेषता है | भारत के अन्य भागों के समान बिहार में वर्षा अनिश्चित होती है तथा विभिन्न क्षेत्रों में उसकी मात्राएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं | 
  2. वर्षा का असमान वितरण ( Unequal distribution of Rainfall ) – बिहार में वर्षा का औसत 112 सेमी० है, किन्तु इसका वितरण असमान है | 
  3. वर्षा का मौसमी स्वरूप ( Seasonal nature of Rainfall ) – बिहार में अधिकांश वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून द्वारा मध्य जून से मध्य सितंबर के बीच होती है | 
  4. मिट्टी की प्रकृति ( Naturee of Soil ) – बिहार के अधिकांश भाग में दोमट मिट्टी पायी जाती है, जिसमें अधिक समय तक जल रोकने की क्षमता नहीं पायी जाती है | 

सिंचाई की सुविधाएँ ( Facilities for Irrigation ) – बिहार में सिंचाई की विशेष सुविधाएँ पायी जाती हैं | ये सुविधाएँ इस प्रकार हैं – 

  1. उत्तरी बिहार के मैदानों में हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से निकलने वाली सदावाहिनी नदियाँ बहती हैं | 
  2. बिहार का मैदानी भाग सामतल है | इन भागों भूमि की ढाल इतनी धीमी है कि नदियों के ऊपरी भागों से निकली हुई नहरों का जल सरलता से सारे मैदान में फैल जाता है | 

सिंचाई के साधन ( Means of Irrigation ) – बिहार में कुल सिंचित क्षेत्र 45, 50, 244 हेक्टेयर है, जो कुल कृषि क्षेत्र का 48.33 प्रतिशत है | वर्तमान समय में बिहार में सिंचाई के मुख्य साधन नहर, तालाब, नलकूप तथा कुआँ हैं | 

  1. नलकूप ( Tubewell ) – बिहार में नलकूप सिंचाई का दूसरा सर्वप्रमुख साधन है | कुल सिंचित भूमि का 38.77% नलकूपों द्वारा सिंची जाती है | 
  2. नहर ( Canal ) – बिहार में नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधाएँ पर्याप्त हैं | यहाँ अनेक सदावाहिनी नदियाँ बहती हैं, जिनसे नहरें निकालकर सिंचाई की जा सकती है | बिहार में नहरों द्वारा सिंचाई में भी प्रादेशिक भिन्नताएँ मिलाती हैं | इस दृष्टिकोण से रोहतास जिला अग्रणी है | दूसरे स्थान पर प० चम्पारण, तीसरे स्थान पर औरंगाबाद और चौथे स्थान पर कैमूर जिले आते हैं | 
  3. तालाब ( Tank ) – बिहार में सिंचाई का तीसरा प्रमुख साधन तालाब है | स्वामित्व के दृष्टिकोण से तालाब दो प्रकार के होते हैं – सरकारी एवं निजी | सरकारी तालाब की तुलना में निजी तालाब द्वारा अधिक क्षेत्रों में सिंचाई होती है | निजी क्षेत्र के अधिकतर तालाब कृत्रिम हैं, जिन्हें बड़े किसानों द्वारा मुख्यतः मैदानी भागों में बनाया गया है | 
  4. कुआँ ( Wells ) – कुआँ बिहार में सिंचाई का बहुत पुराना साधन है | इसके अंतर्गत किसान कच्चा और पक्का कुआँ खोदकर मानव तथा पशु-श्रम से पानी खींचता है | 
  5. अन्य साधन ( Other Means ) – बिहार में सिंचाई के अन्य छोटे-छोटे साधन भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं | इनमें पाईन, आहर, सोता, जलमग्न गड्ढ़े इत्यादि आते हैं | इनसे लाठा, करीन इत्यादि से पानी खींचकर खेतों में पहुँचाया जाता है | 

जल-संसाधन ( Watar Resources )

 जल मानव-जीवन की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है | प्राणों की रक्षा के लिए वायु के बाद दूसरा स्थान जल का ही है | इसका उपयोग पेय, सिंचाई, सफाई, पशुपालन, मछली-पालन, उद्योग, जलाविधुत् तथा परिवहन के लिए किया जाता है | कृषिप्रधान क्षेत्रों में जल की महत्ता बढ़ जाती है | 

  1. धरातलीय जल-संसाधन ( Surface water resources ) – नदी एवं तलाब धरातलीय जल-संसाधन के मुख्य स्रोत हैं | बिहार में गंगा और उसकी सहायक नदियों में अपार जल-भंडार रहता है | 
  2. भूमिगत जल-संसाधन ( Underground water resources ) – भूमिगत जल-संसाधन की संरचना तथा सतही जल की उपस्थिति पर निर्भर करता है | बिहार के मैदानी भागों में सैकड़ों मीटर मोटी जलोढ़ मिट्टी की परते हैं | इस मुलायम मिट्टी में जल आसानी से भूमिगत हो जाता है | 

बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ ( Multipurpose River Valley Projects ) – बहुद्देशीय, बहुमुखी या बहुधंधी योजना का अर्थ उस योजना से है, जिससे सिर्फ एक उद्देश्य की पूर्ति न होकर अनेक उद्देश्यों की पूर्ति होती है | ऐसी योजना का उद्देश्य नदियों पर बाँध बनाकर जलविधुत् उत्पन्न करना, उनसे नहरें निकालकर सिंचाई करना एवं यातायात की सुविधा बढ़ाना, बाढ़-नियंत्रण, मछली पालन, मिट्टी-अपरदन को रोकना, पशुपालन को बढ़ावा देना तथा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाना है | 

  1. कोसी-परियोजना ( The Kosi Project ) – कोसी-परियोजना एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जो उत्तरी बिहार की कोसी नदी पर बनायी गयी है | कोसी नदी अपने मार्ग-परिवर्तन तथा विनाशकारी बाढ़ों के लिए कुख्यात कही जाती है | अनुमान है कि जब साधारण रूप से कोसी में बाढ़ आती है | 
  1. हनुमाननगर अवरोधक बाँध एवं जलाशय ( Hanuman Nagar barrage and reservoir ) – यह बाँध कोसी नदी के आर-पार नेपाल में हनुमाननगर से लगभग 5 कि० मी० ऊपर बनाया गया है | यह बाँध 1.2 कि० मी० लम्बा तथा 72 मीटर ऊँचा है | 
  2. कोसी तटबंध ( Kosi Emabankment ) – बाढ़-जल के फैलाव को रोकने के लिए कोसी नदी की दोनों ओर 240 कि० मी० लम्बा तटबंध बनाया गया है | 

2. गंडक-परियोजना ( The Gandak Projaect ) – यह भारत सरकार की मदद से बिहार और उत्तरप्रदेश की संयुक्त परियोजना है जिसमें नेपाल का भी सहयोग लिया गया है | इससे उत्तरी-पश्चिमी बिहार के अतिरिक्त उत्तरी-पूर्वी उत्तरप्रदेश और नेपाल का तराई-क्षेत्र लाभान्वित होता है |

       इसके अंतर्गत पश्चिमी चम्पारण जिला की सोमेश्वर पहाड़ी स्थित बाल्मीकिनगर में भैंसालोटन नामक स्थान पर गंडक नदी के आर-पार 743 मीटर लम्बा अवरोधक-बाँध बनाया गया है और नेपाल की सीमा में बाल्मीकि जलाशय का निर्माण किया गया है | 

3. सोन-परियोजना ( The Sone Project ) – यह बिहार की पहली सिंचाई परियोजना थी, जिसे अब बहुउद्देशीय परियोजना में बदल दिया गया है | यह बिहार के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में स्थित है | यह बिहार का सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र है, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा केवल 1100  मि० मी० है | 

          इस परियोजना के अंतर्गत जलाविधुत् उत्पादन के लिए दो शक्ति-गृहों की स्थापना की गयी है | पहला शक्ति-गृह पश्चिमी ऊँचे जल-स्तर की नहर पर डेहरी के समीप बनाया गया है, जिसकी उत्पादन-क्षमता 6.6 मेगावाट है | दूसरा शक्ति-गृह पूर्वी ऊँचे जल-स्तर की नहर पर वारुण में बनाया गया है, जिसकी उत्पादन-क्षमता 3.3 मेगावाट है | 

4. दुर्गावती जलाशय परियोजना ( Durgawati Reservoir Project ) – यह परियोजना कैमूर और रोहतास जिले के सूखाग्रस्त क्षेत्र में स्थित है | इस परियोजना का उद्देश्य दुर्गावती नदी की घाटी में सिंचाई की सुविधा प्रदान करना और बाढ़-नियंत्रण है | 

5. ऊपरी किऊल जलाशय परियोजना ( Upper Kiul Reservoir Project ) – यह एक बहुउद्देशीय नदी-घाटी परियोजना है | इसके अंतर्गत किऊल नदी पर गरही गाँव में एक बाँध बनाना शामिल है, ताकि इस नदी के सक्रिय मानसून के समय का जल एकत्र किया जा सके | 

6. बागमती-परियोजना ( Bagamati Project ) – यह एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य सिंचाई, बाढ़-नियंत्रण और जल-निकास है | इस परियोजना के अंतर्गत सीतामढ़ी जिला में ढांग रेलवे स्टेशन से नदी के निचले भाग में स्थित रामनगर में एक बाँध बनाया गया है | 

7. बरनार जलाशय परियोजना ( Barnar Reservoir Project ) – यह जमुई जिला के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में स्थित एक सिंचाई परियोजना है | इसके अंतर्गत सोनो प्रखंड में कटहारा के निकट बरनार नदी पर एक पक्का बाँध बनाने की योजना है | इसके दोनों और नहर निकालने के भी प्रावधान है | 

वन-संसाधन  

वन न केवल किसी देश की अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, बल्कि इससे कई प्रकार के परोक्ष लाभ भी हैं | बिहार एक मानसून प्रदेश है, जहाँ प्राकृतिक वनास्पत्ति को निर्धारित करने में वर्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है | इस प्रदेश में वर्ष के तीन-चार महीनों की अवधि में 80% से अधिक वर्षा हो जाती है | शेष महीने अपेक्षाकृत वर्षारहित रहते हैं | ऐसी जलवायु के प्रभाव से यहाँ मानसूनी या पतझड़ या पर्णपाती वनों की अधिकता है | 

              सम्पूर्ण बिहार में तापमान पर्याप्त रहता है, किन्तु यहाँ वर्षा के वितरण में प्रादेशिक विषमता पायी जाती है | वर्षा का मात्रा के आधार पर बिहार के  पर्णपाती वनों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – आर्द्र पर्णपाती वन और शुष्क पर्णपाती वन | 120 सेमी० की समवृष्टि रेखा प्रदेश में आर्द्र पर्णपाती वन और शुष्क पर्णपाती वन के बीच सीमा निर्धारित करती है | 

  1. आर्द्र पर्णपाती वन ( Moist Deciduous Forest ) – आर्द्र पर्णपाती वन ऐसे क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहाँ 120 सेमी० से अधिक वर्षा होती है | इसके अंतर्गत नेपाल की सीमा से लगे क्षेत्र आते हैं, जिनमें पश्चिमी चम्पारण के उप-हिमालय क्षेत्र तथा सुपौल, अररिया और किशनगंज के तराई क्षेत्र सम्मिलित हैं | 
  2. शुष्क पर्णपाती ( Dry Deciduous Forest ) – शुष्क पर्णपाती वन उस क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहाँ 120 सेमी० से कम वर्षा होती है | ऐसे क्षेत्रों में शुष्कता के कारण पेड़-पौधे का कम विकास होता है | अत: इनमें झाड़ी, घास तथा छोटे-छोटे पेड़ों की प्रधानता होती है | 

वनों का वितरण ( Distribution of Forest ) – वन-संसाधन प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से मनुष्य की रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता की पूर्ति करता है | विभाजन के बाद वन-संसाधन में निर्धन हो गया | इस प्रदेश के 6,21,635 हेक्टेयर या 6216 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही जंगल फैले हुए थे, जो प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का केवल 6.60 प्रतिशत है | 

वन-संरक्षण ( Conservation of Forest ) – वनों की उपयोगिता की पृष्ठभूमि में वनों के ह्रास को रोकने के लिए वन-संरक्षण आवश्यक है | इस सन्दर्भ में भारत सरकार ने 1952 ई० में राष्ट्रीय वन-नीति अपनायी | 

सामाजिक वानिकी ( Social Forestry ) – सामाजिक वानिकी से तात्पर्य वैसी सभी भूमि पर वृक्षारोपण से है, जो परती या बंजर हैं या वनों के कट जाने के कारण बेकार पड़ी हुई हैं | 

  1. जलावन की लकड़ी की बढ़ती माँग को पूरा करना | 
  2. भवन निर्माण तथा रेलवे स्लीपर के लिए उपयुक्त पेड़ों को लगाना | 
  3. पर्यावरण को संतुलित बनाये रखना | 
  4. वन्य प्राणियों की सुरक्षा करना | 

सामाजिक वानिकी के कार्यक्रम में तीन मुख्य उपाय शामिल हैं – 

  1. ऊपर भूमि पर मिश्रित वृक्षारोपण | 
  2. जिन क्षेत्रों में वनों का ह्रास हुआ है, वहाँ पुन: वन लगाना | 
  3. आश्रय पट्टी का विकास | 

वन्य जीवन एवं उनका संरक्षण – वृक्षों की अंधाधुंध कटाई और वन-पशुओं के शिकार के कारण पशुओं के अस्तित्व का खतरा बढ़ गया है | अत: इनकी सुरक्षा आवश्यक है | वन्य पशुओं का संरक्षण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है – 

  1. पशुओं के अनियंत्रित शिकार पर रोक लगाना | 
  2. वन्य पशुओं की सुरक्षा के लिए वनों को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर उनमें राष्ट्रीय उद्यान ( National Park ) बनाया जाना | 
  3. वन्य पशुओं को बचाने के लिए अभयारण्य या शरण-स्थल ( Sanctuary ) बनाना | 
  4. वन्य पशुओं के चारे-पानी तथा आवास की समुचित व्यवस्था करना | 

खनिज एवं ऊर्जा संसाधन 

खनिज संसाधन किसी प्रदेश का सर्वप्रमुख प्राकृतिक संसाधन होता है | बिहार-विभाजन का सबसे बुरा असर बिहार की खनिज-सम्पदा पर पड़ा है | इसका कारण यह है कि इस राज्य का अधिकांश खनिज छोटानागपुर के पठार में स्थित था, जो झारखण्ड में चला गया | अब बिहार में केवल छिटपुट रूप से कुछ खनिज दक्षिणी संकीर्ण पठारी भागों में पाये जाते हैं | 

     वर्त्तमान में बिहार राज्य में उपलब्ध खनिजों तथा उत्खनित करने योग्य प्रमुख खनिजों के भंडार की स्थिति कम है – 

बिहार में उपलब्ध खनिजों को मुख्यतः तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है 

  1. धात्विक खनिज ( Metallic Minerals ) – धात्विक खनिज प्राय: अयस्क के रूप में पाये जाते हैं और इनसे विभिन्न प्रकार की धातुएँ प्राप्त होती हैं | 
  2. अधात्विक खनिज ( Non-Metallic Minerals ) – इनमें धातुएँ नहीं होती हैं तथा इन्हें खानों से निकालने के बाद साफ करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है | 
  3. आणविक खनिज ( Atomic Minerals ) – ये ऊर्जा-खनिज हैं, जिनमें यूरेनियम सर्वप्रमुख हैं | 

शक्ति के साधन 

ऊर्जा अथवा शक्ति के साधनों में बिहार एक पिछड़ा राज्य है | अत: इस क्षेत्र में इसे दूसरे राज्यों से सहयोग लेना पड़ता है | 

       शक्ति के साधनों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है – 

  1. परम्परागत ऊर्जा के स्रोत – इसके अंतर्गत तापीय विधुत और जल विधुत सम्मिलित हैं | 
  1. तापीय विधुत – परम्परागत शक्ति का प्रधान स्रोत कोयला है | इस पर आधारित कई तापीय केन्द्रों की स्थापना बिहार में की गई है | 
  2. जल विधुत – बिहार में जल से भी विधुत का उत्पादन होता है | जल विधुत प्राप्त करने के लिए बिहार में 1982 ई० में बिहार राज्य जल विधुत निगम ( बी० एच० पी० सी० ) की स्थापना की गई | 
  3. गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्रोत – परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों की कमी के कारण बिहार में गैर-परम्परागत और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है | 

 

 

 

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