बिहार : मानवकृत संसाधन – Class 10th Social Science Notes in Hindi

कृषि संसाधन 

बिहार एक कृषि-प्रधान राज्य है, जिसकी 75% कार्यकारी आबादी कृषि-कार्य में संलग्न है | कृषि ही राज्य के लोगों की आबादी का मुख्य आधार है | कृषि पर जनसंख्या का अधिक बोझ, प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की कमी, खेतों के छोटे आकार एवं बिखरा प्रारूप तथा अधिकांश किसानों की निर्धनता के कारण छोटे किसानों की दशा अच्छी नहीं है | 

        बिहार की कृषि गहन निर्वाहक प्रकार की है, जिसके अंतर्गत वर्ष में चार फसलें बोयी या काटी जाती है; यथा – 

  1. भदई फसलें – ये फसलें मई-जून में बोयी जाती हैं और अगस्त-सितंबर में काट ली जाती हैं | धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, जूट, ऊरद, सनई, मडुआ इत्यादि इस मौसम की मुख्य फसलें हैं | 
  2. अगहनी फसलें – इनकी बोआई जुलाई-अगस्त में होती है और नवम्बर-दिसम्बर में ये तैयार हो जाती हैं | चावल, कुलथी, तिल, आलू तेलहन, सब्जी, मकई, कपास, गन्ना, तम्बाकू, पटसन इत्यादि इसकी मुख्य फसलें हैं | 
  3. रबी फसलें – ये वसंत ॠतु की फसल हैं, जिनकी बोआई अक्टूबर-नवम्बर में होती है तथा ये फसलें मार्च-अप्रैल तक तैयार हो जाती है | 
  4. गरमा फसलें – ये ग्रीष्मकालीन फसलें हैं, जिनकी खेती उन क्षेत्रों में होती है जहाँ नियमित सिंचाई की व्यवस्था है | 

 बिहार की मुख्य फसलें 

बिहार में फसलों की विविधता है | फसलों की उनकी प्रकृति के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जाता है – 

  1. खाद्य फसलें ( Food Crops ) – धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार-बाजरा, चना, जौ, दलहन, तेलहन इत्यादि | 
  2. व्यावसायिक या नगदी फसलें ( Commercial or Cash Crops ) – इनमें वे सभी फसलें आती हैं, जिन्हें बेचकर किसान नगद राशि प्राप्त करता है | इसके अंतर्गत गन्ना, पटसन, कपास, तम्बाकू, आलू, तेलहन तथा दलहन, लाल मिर्च, मसलें इत्यादि आते हैं | 
  3. रेशेदार फसलें ( Fibrous crops ) – कपास, जूट, रेशम इत्यादि | 
  4. फल ( Fruits ) – आम, केला, लीची, अमरूद, आदि | 
  5. मसलें ( Spices ) – लालमिर्च, लहसून, हल्दी, धनिया, मेथी इत्यादि | 

चावल या धान ( Rice or paddy ) – चावल बिहार की सर्वप्रमुख फसल है | 2006-07 में बिहार की 33.54 लाख हेक्टेयर भूमि में चावल की खेती हुई थी | बिहार में धान की तीन फसलें उपजायी जाती हैं | इन्हें गरमा, भदई और अगहनी कहते हैं | इनमें अगहनी धान सर्वप्रमुख है | 

               अनुकूल परिस्थितियों और भोजन में चावल की प्रधानता के कारण अगहनी धान की खेती बिहार के सभी भागों में तथा सर्वाधिक क्षेत्रों में होती है |  

गेहुँ ( Wheat ) – गेहूँ बिहार का दूसरा प्रमुख खाद्यन्न है | 2006-07 में बिहार के 20.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूँ की खेती हुई थी | वस्तुतः यह रबी फसलों में सर्वप्रमुख है | इसकी बोआई नवम्बर-दिसम्बर में होती है तथा यह फसल मार्च-अप्रैल में काट ली जाती है | 

          गेहूँ की खेती का अधिक विस्तार मैदानी भागों में हुआ है, जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है | उत्पादन की दर में क्षेत्रीय भिन्नता कम मिलती है | पूरे प्रान्त में सबसे अधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2.93 टन है तो सबसे कम 1.02 टन | 

मकई ( Maize ) – मकई या मक्का बिहार के खाद्यान्नों में चावल और गेहूँ के बाद तीसरे स्थान पर है | 2006-07 में इसकी खेती 3.48 लाख हेक्टेयर भूमि में की गयी थी | पहले इसकी केवल एक फसल भदई में उपजायी जाती थी, किन्तु, अब इसकी दो या तीन फसलें उपजायी जाती हैं | 

चना ( Gram ) – चना एक महत्त्वपूर्ण दलहन है, किन्तु यह एक बहुउपयोगी आनाज है | चना एक रबी फसल है, जिसकी खेती नवम्बर-दिसम्बर से मार्च-अप्रैल के बीच की जाती है | 

जूट या पटसन ( Jute ) – जूट छाल वाली रेशेदार फसलों में सर्वप्रथम है | इससे रस्सी, टाट, बोरा, गलीचा इत्यादि वस्तुएँ बनायी जाती हैं | बिहार का उत्तरी-पूर्वी भाग जूट की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है | यहाँ प्रान्त के सभी भागों से अधिक वर्षा होती है तथा तापमान भी अधिक रहता है |  

गन्ना ( Sugarcane ) – गन्ना बिहार की बहुत महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक और औद्योगिक फसल है, जिस पर राज्य का चीनी-उद्योग आश्रित है | 

अन्य फसलें ( Other Crops ) – बिहार के अन्य खाद्यान्नों में मूंग, अडु·आ , मसूर तथा अरहर; तेलहनों में राई तथा सरसों तीसी, रेड़ी तथा सूर्यमुखी; सब्जियों में आलू, मसालों में मिर्च, प्याज, लहसून, अदरख, धनिया और हल्दी; फलों के केला तथा व्यापारिक फसलों में तम्बाकू, मेस्टा और सनई मुख्य हैं | 

कृषि की समस्याएँ 

बिहार की कृषि से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण समस्यायाँ निम्नलिखित है | 

  1. प्राकृतिक समस्याएँ – इनके अन्तर्गत प्राकृतिक आपदा, जल-जमाव क्षेत्र एवं परती तथा कृषियोग्य बंजर भूमि की स्थिति, मिट्टी अपरदन तथा मिट्टी के अत्यधिक उपयोग से सम्बन्धित समस्याएँ आती हैं | 
  2. आर्थिक समस्याएँ – बिहार के किसानों की आर्थिक दशा दयनीय है | इसका बुरा प्रभाव कृषि पर पड़ता है | ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं – 
  1. भूमि पर आधिपत्य में असमानता – बिहार के कुछ किसानों के पास बहुत अधिक भूमि है और अधिकतर किसानों के पास बहुत कम भूमि है | 
  2. निर्धन किसान – अधिकतर किसान निर्धन हैं और ग्रामीण ॠण का अभाव है | धन के अभाव में वे आधुनिक यंत्र, रासायनिक खाद, अधिक उपज देनेवाले बीज तथा सिंचाई के साधनों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं | 
  3. अधिक उत्पादन-लागत – हरित-क्रांति के बाद खेती का कार्य महँगा हो गया है | अधिक उपज के लिए खाद और सिंचाई आवश्यक है | 
  4. फसल उत्पाद का कम मूल्य – देश में महँगाई तेजी से बढ़ी है | लगभग सभी पदार्थों की कीमत काफी बढ़ गयी है | 

3. सामाजिक समस्याएँ – 

  1. कृषि-भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता बोझ – जनसंख्या की तीव्र वृद्धि और रोजगार के अन्य अवसर के अभाव में कृषि-भूमि पर जनसंख्या का बोझ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है | इससे खेतों का आकर काफी  छोटा हो गया है और यह अनार्थिक होता जा रहा है | इसके अतिरिक्त किसानों के खेत बिखरे हुए भी हैं | इस कारण, इसमें मशीनों से खेती करना काफी कठिन है | 
  2. भूमि-सुधर कार्यक्रमों का अप्रभावशाली कार्यान्वयन – सरकार ने कृषि-भूमि के संतुलित बाँटवारे का प्रयास किया है | किन्तु, राजनैतिक इच्छा-शक्ति के अभाव में यह पूरा नहीं हो सका है | 

4. संरचनात्मक समस्याएँ – 

बिहार में कृषि से सम्बन्धित अधिसंरचना ( Infrastructure ) की कमी है | अधिक उत्पादन के लिए सिंचाई के साधन का बहुत कमी है | अधिक उत्पादन के लिए सिंचाई के साधन का बहुत अधिक विकास हुआ है, किन्तु अभी भी इसमें सुधार की आवश्यकता है | 

निराकरण के उपाय 

प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं | 

  1. सिंचाई की व्यवस्था, बाढ़ और सूखा से सुरक्षा | 
  2. उर्वरक का प्रयोग | 
  3. कीट एवं रोग-नाशक दवाएँ और पौधा-संरक्षण | 
  4. उन्नत संकर बीज का प्रयोग | 
  5. मिट्टी सर्वेक्षण, उर्वरीकरण तथा संरक्षण | 

उद्योग 

बिहार में औद्योगिक विकास की प्रबल संभावनाएँ विद्यमान हैं | उपजाऊ मिट्टी का यह कृषिप्रधान क्षेत्र अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करता है | बहुउद्देशीय नदी-घाटी योजनाओं से जलाविधुत् तथा तापविधुत् केन्द्रों ( Thermal Power Stations ) से तापविधुत् का उत्पादन होता है | 

         बिहार में रेल-मार्ग, सड़क-मार्ग तथा जल-मार्ग के अतिरिक्त टेलीफोन, टेलेक्स, इंटरनेट इत्यादि संचार के संधानों की भी सुविधा है | 

औद्योगिक पिछड़ेपन के कारण ( Causes of Industrial Backwardness ) – बिहार के औद्योगिक रूप से पिछड़े रहने के अनेक कारण हैं | इनमें निम्नलिखित कारण महत्त्वपूर्ण हैं – 

  1. कृषि को प्राथमिकता और औद्योगिक वातावरण की कमी | 
  2. कच्चा माल उत्पादन पर कम ध्यान | 
  3. खनिज संसाधन की कमी | 
  4. लघु उद्योगों के विकास पर कम ध्यान | 
  5. कुप्रबंध – बिहार के अधिकतर उद्योग कुप्रबंध के शिकार हैं | 
  6. पुरानी मशीन एवं तकनीक | 
  7. पूँजी की कमी | 
  8. बाजार के विस्तार की कमी | 
  9. आधारभूत संरचना की कमी | 
  10. औद्योगिक नीति का अभाव | 

बिहार में औद्योगिक पिछड़ेपन को कम करने के कई उपाय किए जा सकते हैं – 

  1. कच्चा माल के उत्पादन पर अधिक ध्यान | 
  2. लघु उद्योगों के विकास पर ध्यान | 
  3. आधारभूत संरचना का विकास | 
  4. नई मशीन एवं तकनीक का उपयोग | 
  5. पूँजी की व्यवस्था – बिहार में पूँजी निवेश का वातावरण बनाने की आवश्यकता है | 

बिहार के प्रमुख उद्योग ( Main Industries of Bihar )  

1. कृषि पर आधारित उद्योग ( Agro-based Industries ) – 

  1. चीनी-उद्योग ( Sugar Industry ) – चीनी-उद्योग बिहार का सबसे पुराना और कृषि पर आधारित उद्योगों में सबसे महत्त्वपूर्ण है | भारत की कुल 56 चीनी मीलों में से 33 मिलें बिहार में ही स्थापित थीं, जिससे इस प्रांत को “चीनी का कटोरा” ( Sugar Bowl ) की संज्ञा दी जाने लगी | देश में चीनी उत्पादन में बिहार का स्थान सातवाँ है | नयी राष्ट्रीय चीनी नीति के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है | 
  2. जूट-उद्योग ( Jute Industry ) – बिहार के उत्तरी-पूर्वी भागों में जूट-उद्योग के विकास के लिए आवश्यक दशाएँ  उपलब्ध हैं | इस क्षेत्र में अधिक वर्षा, उच्च आर्द्रता, अधिक तापमान, उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी और बाढ़ग्रस्त खादर का मैदान जूट की खेती के लिए आदर्श भौगोलिक दशा उत्पन्न करते हैं | इनमें कटिहार की नेशनल जूट मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन और कटिहार जूट मिल्स लिमिटेड, दरभंगा की गोपाल जूट इंडस्ट्रीज प्रा० लि० , समस्तीपुर की रामेश्वर जूट मिल्स और नालन्दा की मौर्य जूट इंडस्ट्रीज प्रा० लि० विशेष उल्लेखनीय हैं | 
  3. वस्त्रोद्योग ( Textiles Industry ) – वस्त्रोद्योग बिहार का परम्परागत उद्योग है | यहाँ सूती और रेशमी दोनों प्रकार के वस्त्र बनाये जाते हैं | सूती-वस्त्रोद्योग के लिए यहाँ कपास का अभाव है, फिर भी सस्ते श्रमिक और बाजार की उपलबध्ता के कारण फुलवारीशरीफ, गया, बक्सर, डुमराँव, मोकामा इत्यादि स्थानों पर सूती-वस्त्र के कारखाने स्थापित हैं | 
  4. तम्बाकू-उद्योग ( Tobacco Industry ) – त्मबकू-उद्योग के अंतर्गत सिगरेट एवं बीडी उद्योग आते हैं | सिगरेट तथा बीड़ी के तम्बाकू पैदा करने में बिहार देश का एक महत्त्वपूर्ण राज्य है | यहाँ बेगूसराय तथा समस्तीपुर जिले में उच्चकोटि का वर्जिनिया तम्बाकू उत्पन्न होता है | 
  5. चावल, दाल और आटा उद्योग ( Rice, Pulse and Flour Industry ) – धान से चावल बनाने, दाल छाँटने तथा गेहूँ से आटा तैयार करने का कार्य घरेलू उद्योग के रूप में लगभग हर जगह होता है | किन्तु, शहरी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अनेक बड़े और छोटे कारखाने लगाये गये हैं | 

2. वन पर आधारित उद्योग ( Forest based Industries ) – 

  1. लकड़ी-उद्योग ( Wood based Industry ) – इस उद्योग के अंतर्गत लकड़ी चीरने, फर्नीचर बनाने तथा प्लाइउड बनाने के कारखाने समिलित हैं | 
  2. कागज और लुग्दी उद्योग ( Paper and Pulp Industry ) – वनों से प्राप्त बाँस, सवाई घास और मुलायम लकड़ी तथा चीनी-मीलों से प्राप्त गन्ना की खोई और धान की भूसी से कागज और लुग्दी बनायी जाती है | 
  3. लाह-उद्योग ( Lac and Shellac Industry ) – लाह एक लसीला पदार्थ है, जो कुछ विशेष वृक्षों के कीड़ों से प्राप्त होता है | पलास, बैर और कुसुम के पेड़ों पर लाह के कीड़े होते हैं | इन पर आधारित लाह-उद्योग की स्थापना गया तथा पूर्णिया में हुई है | 
  4. पर्यटन उद्योग ( Tourism Industry ) – बिहार में पर्यटन उद्योग के विकास की अपार संभावनाएँ हैं | यहाँ अनगिनत धार्मिक स्थल, सांस्कृतिक और प्राकृतिक सौन्दर्य के केंद्र स्थित हैं | 

3. खनिज पर आधारित उद्योग ( Mineral based Industries ) – 

  1. सीमेंट-उद्योग ( Cement Industry ) – सीमेंट आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण निर्माण-सामग्री है | इससे गृह, सड़क, पुल, बाँध इत्यादि बनाये जाते हैं |   
  2. इंजीनियरिंग-उद्योग ( Engineering Industry ) – इस उद्योग में इस्पात तथा ऐलुमिनियम से रेलवे, मोटरगाड़ी तथा विभिन्न उद्योगों में लगनेवाली मशीन तथा औजार बनाये जाते हैं | 
  3. रसायन-उद्योग ( Chemical Industry ) – इसके अंतर्गत उर्वरक, रंग, वार्निश, तेल, साबुन, दवा इत्यादि बनाने के कारखाने शामिल हैं | बिहार का सबसे बड़ा रासायनिक खाद का कारखाना बरौनी में “हिंदुस्तान फर्टिलाइजर्स कॉरपोरेशन लिमिटेड” के नाम से विख्यात है | 
  4. तेल-शोधन-उद्योग ( Oil Refining Industry ) – बरौनी में रूस की सहायता से 1966 ई० में तेल-शोधक कारखाना स्थापित किया गया | 

परिवहन 

     बिहार में यातायात के सभी साधनों का विकास हुआ है क्योंकि इसका अधिकांश भाग मैदानी है | 

सड़क मार्ग ( Road ways ) – 

सड़कें प्राचीनकाल से ही यातायात का एक महत्त्वपूर्ण साधन रही हैं | बिहार में सड़कों का निर्माण प्राचीनकाल में हुआ था, किन्तु इसका महत्त्वपूर्ण विकास मुग़ल शासनकाल में ही हुआ | 

  1. राष्ट्रीय उच्चपथ ( National Highways ) – राष्ट्रीय उच्चपथ राज्य को देश के विभिन्न भागों से मिलाता है | इसके विकास और देख-रेख की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है | 
  2. राज्यकीय उच्चपथ ( State Highways ) – जो सड़कें विभिन्न राष्ट्रीय उच्च पथों को एक-दुसरे से तथा राष्ट्रीय उच्चपथ से प्रांत के विभिन्न स्थानों को मिलाती हैं, उन्हें प्रांतीय उच्चपथ कहते हैं | इनकी देख-रेख राज्य सरकार द्वारा की जाती है | बिहार में प्रांतीय राजमार्ग या राज्यकीय उच्चपथ लगभग सभी जिला प्रान्तीय राजमार्ग या राज्यकीय उच्चपथ लगभग सभी जिला मुख्यालयों तथा मुख्य जगहों से गुजराती है | 
  3. जिला-स्तरीय पथ ( District Level Roads ) – जिला स्तरीय पथ तीन प्रकार के होते हैं – (i) वृहत् जिला पथ, (ii) अन्य जिला पथ और (iii) जिला परिषद् पथ | बिहार मिनकी कुल्लाम्बी 10835 कि० मी० है | 
  4. ग्रामीण पथ ( Village Roads ) – एक गाँव को दूसरे गाँव से जोड़नेवाली सड़कें ग्रामीण सड़क कहलाती हैं | इनका प्रबंध ग्रामपंचायत या प्रखंड विकास कार्यालय द्वारा किया जाता है | बिहार में ग्रामीण पथों की कुल लम्बाई 63262 कि० मी० है जो कुल सडकों का 77 प्रतिशत है | 

रेल-मार्ग ( Railways ) – रेल-मार्गों के द्वारा बिहार न केवल देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है, बल्कि राज्य के विभिन्न क्षेत्र भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं | प्रशासनिक दृष्टि से पूरे भारत को 16 रेलवे क्षेत्रों ( Railway Zones ) में बाँटा गया है | बिहार में पड़नेवाले रेल-पथ का प्रबंध इनमें से दो क्षेत्रों के द्वारा किया जाता है | इन रेलवे क्षेत्र एवं उनके मुख्यालय के नाम निम्न तालिका में दिये गये हैं | 

जल-मार्ग ( Watar ways ) – जल-परिवहन का बिहार में प्राचीनकाल से ही महत्त्व रहा है | इस प्रांत में 19वीं शताब्दी के अंत तक अंतर-राज्य एवं आन्तरिक व्यापार का मुख्य साधन जल-मार्ग ही था |

        बिहार एक भू-आवेशित ( land-locked ) राज्य है | अत: इसे समुद्री मार्ग की सुविधा उपलब्ध नहीं है | बिहार के जल-मार्ग के अंतर्गत नदियों और नहरों को सम्मिलित किया जाता है | इस राज्य में नदियों का जल बिछा हुआ है | गंगा इसकी सर्वप्रमुख नदी है |

वायुमार्ग ( Airways ) – बिहार में पटना ( जय प्रकाश अंतर्राष्ट्रीय हवाई पत्तन ) और बोधगया में अंतर्राष्ट्रीय-स्तर के हवाई अड्डे हैं | काठमांडु के निकट और कोलकाता-दिल्ली वायु-मार्ग पर स्थित होने के कारण पटना राज्य का प्रमुख हवाई अड्डा बन गया है | 

रज्जुमार्ग ( Ropeway ) – राजगीर में गृद्ध-कुट पर्वत पर बौद्ध शान्ति स्तूप पर पहुँचने  के लिए जापान सरकार ने रज्जू-मार्ग बनाया है और इसे बिहार राज्य पर्यटन विकास प्राधिकरण ( Bihar State Tourism Development Corporation ) को सौंप दिया है | 

जनसंख्या एवं नगरीकरण  

बिहार प्राचीनकाल से ही मानव-संसाधन में धनी रहा है मौनसूनी जलवायु समतल उपजाऊ मैदान तथा जीवन-निर्वाह की सुविधाओं के कारण यहाँ जनसंख्या अधिक रही है | 

जनसंख्या का वितरण ( Distribution of Population ) – बिहार में जनसंख्या का भरी जमाव पटना, पू० चम्पारण, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, गया, समस्तीपुर, दरभंगा और सरण में है | 2001 की जनगणना के अनुसार इन आठ जिलों में राज्य की एक-तिहाई से अधिक ( 35.44 प्रतिशत ) जनसंख्या पायी जाती है | 

           उत्तरी बिहार में अपेक्षाकृत अधिक जनसंख्या पायी जाती है, जहाँ प्रान्त के 43.80 प्रतिशत क्षेत्र पर 63.42 प्रतिशत व्यक्ति रहते हैं | 

जनसंख्या का घनत्व ( Density of Population ) – बिहार के विभिन्न भागों के घरातल के स्वरूप, मिट्टी की उर्वरता, सिंचाई तथा आवागमन के साधन के विकास में पर्याप्त अंतर है | 

  1. अत्यधिक घनत्व वाले क्षेत्र ( Areas of Very High Density ) – इन क्षेत्रों में वे जिले शामिल हैं, जिनकी जनसंख्या का घनत्व 1250 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी० से अधिक है | 
  2. अध्यम घनत्व वाले क्षेत्र ( Areas of High Density ) – इसके अंतर्गत वैसे जिले आते हैं, जिनकी जनसंख्या का घनत्व 1050 से 1250 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० है | 
  3. मध्यम घनत्व वाले क्षेत्र ( Areas of Moderate Density ) – इस वर्ग में उन जिलों को शामिल किया जाता है, जहाँ जनसंख्या का घनत्व 850 से 1050 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० है | 
  4. न्यून घनत्व वाले क्षेत्र ( Areas of Low Density ) – जिन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 650 से 850 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० पाया जाता है | 
  5. अतिन्यून घनत्व वाले क्षेत्र ( Areas of Very Low Density ) – इसमें वैसे जिले शामिल हैं, जिनकी जनसंख्या का घनत्व 650 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० से भी कम है | 

नगरों का विकास 

नगरीकरण किसी भी क्षेत्र के विकास एवं समृद्धि का सूचक है | आधुनिक सभ्यता में उत्पादन एवं वितरण में केन्द्रीयकरण के द्वारा अधिक संवर्धन प्राप्त किया जाता है | बिहार में नगरों का विकास काफी धीमी गति से हुआ है | इस प्रांत में प्रचीनकाल, मध्यकाल एवं आधुनिक काल में विभिन्न कारणों से नगरों का विकास हुआ | प्राचीन काल में नगरों का विकास शैक्षणिक, धार्मिक, प्रशासनिक एवं व्यापारिक कारणों से हुआ | 

           विगत सौ वर्षों में बिहार में नगरीकरण की प्रवृत्ति बहुत मन्द रही है | इसका मुख्य कारण कृषि की महत्ता और गैर-कृषि-कार्यों की मन्द वृद्धि है | बिहार की नगरीय जनसंख्या 1901 ई० में 9.79 लाख थी, जो 1951 में दुगुनी ( 18.66 लाख ) और 2001 में लगभग नौगुनी ( 86.82 लाख ) और 2011 में दस गुनी से अधिक ( 1,17,58,016 ) हो गयी | बिहार के 38 जिलों में से केवल 11 जिलों में प्रान्तीय औसत ( 11.3 प्रतिशत ) से अधिक नगरीकरण हुआ है | 

          3 जिलों में नगरीकरण का स्तर 4 प्रतिशत से भी कम है | ये जिले हैं – मधुबनी ( 3.6 प्रतिशत ), बांका ( 3.5 प्रतिशत ) और समस्तीपुर ( 3.5 प्रतिशत ) |  

 

 

 

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