भारत में राष्ट्रवाद – Class 10th Social Science ( सामाजिक विज्ञान ) Notes in Hindi

राष्ट्रवाद 

राष्ट्रवाद का अर्थ, राष्ट्रीय चेतना का उदय होता है | यूरोप में आधुनिक राष्ट्रवाद के साथ ही राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ | 1919 से 1947 तक का काल “गाँधी युग” के नाम से जाना जाता है | इसी युग में महात्मा गाँधी का उदय हुआ | उनके आंदोलनों में तीन प्रमुख आंदोलन थे | (i) असहयोग आंदोलन (ii) सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा (iii) भारत छोडो आंदोलन | ये आंदोलन 1920 से 1942 तक चला जिसके फलस्वरूप भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई | 

भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कारण 

  1. सामाजिक कारण 

  2. प्रजातीय भेदभाव 

  3. साम्राज्यवादी शासन से असंतोष 

  4. आर्थिक कारण 

  5. धर्मिक कारण 

  6. अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार 

  7. पाश्चात्य विचारधारा का प्रभाव 

  8. यातायात का विकास 

  9. राजनीतिक कारण 

  10. भारतीय साहित्य और समाचार पत्र 

  11. प्राचीन संस्कृति का ज्ञान 

गाँधी युग का आरंभ  

मोहनदास करमचंद गाँधी (महात्मा गाँधी) का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर में एक हिंदू परिवार में हुआ था | उनके पिता राजकोट रियासत के दीवार थे | 1888 ई० में शिक्षा ग्रहण करने वे इंगलैंड गये | लंदन में उन्होंने वकालत की डिग्री प्राप्त की | तत्पश्चात् 1891 ई० में वे भारत लौटे तथा बंबई के उच्च न्यायालय में वकालत आरंभ की | 1893 में एक मुकदमे के सिलसिले में वे दक्षिण अफ्रीका गये | गाँधीजी ने नस्लभेदी सरकार के खिलाफ संघर्ष आरंभ कर दिया | गाँधीजी ने ट्रांसवाल में मजदूरों का जुलूस निकाला तथा उसका नेतृत्व किया | गाँधीजी ने सत्याग्रह का सहारा लिया जिससे बाध्य होकर सरकार ने दक्षिण अफ्रीका में रहे भारतीयों को कई सारी सुविधाएँ प्रदान की | 

सत्याग्रह का विचार – जनवरी, 1915 में गाँधीजी भारत लौट आये | गाँधीजी का यह मानना था कि अहिंसा का धर्म अपनाने से सभी भारतीय एक सूत्र में बँध सकते हैं | गाँधीजी के अनुसार सत्याग्रह सबलों का हथियार है दुर्बलों का नहीं | 

प्रथम विश्वयुद्ध के कारण और परिणाम का भारत से अंतर्संबंध  

प्रथम विश्वयुद्ध विश्व के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना थी | 1914 में ये युद्ध प्रारंभ हुआ | यह युद्ध दो गुटों एक फ्रांस, ब्रिटेन, रूस (मित्रराष्ट्र) तथा 1917 के बाद उसका सहयोगी बना अमेरिका | 

रॉलेट एक्ट कानून 

1918 में सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक कमिटि गठित की गई | यह कमिटि यह जाँच करने के लिए नियुक्त की कि भारतिवर्ष में किस प्रकार और किस रॉलेट एक्ट मार्च 1919 में स्वीकृत हुआ तथा इसकी अवधि तीन वर्ष रखी गई | 

         भारतीयों ने इस कानून का विरोध कर इसे ‘काला कानून’ कहा | इस एक्ट के विरोध में यह नारा दिया गया कि “कोई वकील नहीं, कोई दलील नहीं तथा कोई अपील नहीं “| 21 मार्च, 1919 को रॉलेट कानून बन गया | रॉलेट एक्ट के विरोध करने के लिए गाँधीजी ने सत्य और अहिंसा को आधार बनाया | 9 अप्रैल रामनवमी के दिन अमृतसर में एक प्रदर्शन हुआ, जिसकी अध्यक्षता पंजाब के लोकप्रिय नेता डाॅ० किचालू और  डाॅ० सत्यपाल कर रहे थे | सरकार ने इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया | इसके विरोध में 10 अप्रैल को एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला गया | 

जलियाँवाला बाग हत्याकांड 

 जनरल डायर ने फौजी शासन लागू कर पंजाब में आतंक राज्य कायम कर दिया | जनता ने सरकार से विरोध जारी रखा | 13 अप्रैल, 1919 को शाम के करीब 4 बजे जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया | उस दिन वार्षिक वैसाखी का त्योहार था |  अनेक नेता और उनके अनुयायी भी इस बाग में इकट्टा थे | तभी सेना के कमांडर जनरल डायर की आज्ञा से इस संकरे रस्ते पर फौज लगाकर बाग को चारों ओर से घेर लिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के भीड़ पर धड़ाधड़ गोलियाँ चलाना आरंभ कर दिया | हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा | जिन लोगों ने पेड़ों पर चढ़ना चाहा उन्हें भी लोगी मार कर गिरा दिया गया | बहुतों ने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी | अनुमानानुसार 379 व्यक्ति मारे गये तथा 1200 घायल हुए | इस हत्याकांड के बाद संपूर्ण पंजाब में मार्शल लाॅ लगा दिया गया | इस घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया | जगह-जगह विरोध तथा हड़तालें होने लगीं | रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘सर’ का ख़िताब वापस कर दिया | गाँधीजी ने भी कैसर-ए-हिंद की उपाधि त्याग दी | सरकार ने घटना की जांच के लिए ‘हंटर समिति’ की स्थापना की गई | 

खिलाफत आंदोलन 

गाँधीजी एक बड़ा जनाधार आंदोलन चलाना चाहते थे | इसके लिए वे हिंदू-मुस्लिम एकता को आवश्यक मानते थे | ऑटोमन साम्राज्य की राजधानी तुर्की का खलीफा जो ऑटोमन साम्राज्य का सुल्तान था | संपूर्ण इस्लामी जगत का धर्मगुरु था | प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ तुर्की भी पराजित हुआ | मित्र राष्ट्रों ने खलीफा का अपमान किया | खिलिफा और ऑटोमन साम्राज्य के साथ किये गये व्यवहार से भारतीय मुसलमान में आक्रोश था | अत: भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के प्रति ब्रिटेन को अपनी नीति बदलने के लिए बाध्य करने हेतु जोरदार आंदोलन प्रारंभ किया | जिसे ‘खिलाफत आंदोलन’ कहा गया | 

             जुलाई 1920 में, गाँधीजी ने 1 अगस्त 1920 से असहयोग आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया | खिलाफत और असहयोग आंदोलन साथ-साथ चले | 1924 में तुर्की में मुस्तफा कमाल पाशा द्वारा खलीफा के पद को समाप्त कर देने से खिलाफत आंदोलन स्वत: समाप्त हो गया | 

असहयोग आंदोलन 

असहयोग आंदोलन महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जनवरी 1921 में शुरू किया गया प्रथम जन-आंदोलन था | इस आंदोलन से महात्मा गाँधी ने अहिंसा के सिद्धांत को विशेष महत्त्व दिया | गाँधीजी का यह मानना था कि भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना भारतीय सहयोग से हुई थी और वह शासन भी उन्हीं के सहयोग से चल रहा है | अत: यदि भारतीय अपना सहयोग न दे तो ब्रिटिश शासन समाप्त हो जायेगा और स्वतंत्रता प्राप्त हो जायेगी | पुलिस, विधायिकाओं और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया | शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई और विदेशी कपड़ों का आयात आधा हो गया तथा उसकी कीमत 102 करोड़ से घटाकर 57 करोड़ हो गई | जब बहिष्कार आंदोलन फैला और लोग आयातित कपड़े को छोड़कर केवल भारतीय कपड़े पहनने लगे तो भारतीय कपड़ा मीलों तथा हथकरघों का उत्पादन बढ़ गया | 

आंदोलन का आरंभ – आंदोलन का आरंभ गाँधीजी ने ‘कैसरए-हिन्द’ की उपाधि लौटाकर किया | हजारों वकीलों ने वकालत करना छोड़ दिया | गाँधीजी ने चौपाटी पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई | दिन प्रतिदिन स्थिति गंभीर होती गई | 

चौरी-चौरा कांड और असहयोग आंदोलन की समाप्ति – फरवरी 1922 को महात्मा गाँधी ने वायसराय को एक पत्र लिख कर सरकार की कठोर नीति की निंदा की और सरकार को चेतावनी दी कि यदि सरकार अपनी नीति में परिवर्तन नहीं करती तो वह सात दिनों के अंदर बारदोली में आंदोलन आरंभ कर देंगे | 

             इसी बीच उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में राजनीतिक जुलूस पर पुलिस द्वारा फायरिंग के विरोध में भीड़ ने थाना पर हमला करके आग लगा दी | 5 फरवरी, 1922 को यह घटना घटी | एक थानेदार तथा इक्कीस सिपाही की जान चली गई | इस घटना से गाँधीजी अत्यंत दुखी हो गये | फलत: 12 फरवरी, 1922 को गाँधीजी के निर्णयानुसार आंदोलन को स्थगित कर दिया गया | गाँधीजी को गिरफ्तार कर 6 वर्षों की सजा सुनाई गई | 

असहयोग आंदोलन के बाद  

असहयोग आंदोलन के अचानक बंद होने से सारा देश स्तब्ध रह गया | युवा कांग्रेस वर्ग इस निर्णय से हतोत्साहित हो गया | कांग्रेस के अंदर दो गुटों का जन्म हुआ | एक गुट ‘परिवर्तनवादी’ था जिसके नेता देशबंधु चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू थे | दूसरा गुट अपरिवर्तनवादियों का था | राजेन्द्र प्रसाद, बल्लभ भाई पटेल इस गुट में थे | वे गाँधीवाद में पूर्ण विश्वास रखते थे |  

            1924 में गाँधीजी कारावास से रिहा हो गये | जेल से छूटने के बाद उन्होंने समाज की ओर ज्यादा ध्यान दिया | 

साइमन कमीशन – 1919 के भारतीय शासन अधिनियम को पारित करते समय ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की थी कि 10 वर्षों के पश्चात् एक आयोग की नुयुक्ति की जायेगी जो पुन: इन सुधारों की समीक्षा करेगी ताकि यह पता चले कि अधिनियम व्यवहार में कितना सफल रहा | परंतु समय से दो वर्ष पूर्व ही नवंबर 1927 ई० में ही ब्रिटिश सरकार ने इंडियन स्टेट्यूटरी कमीशन का गठन किया | जिसे आमतौर पर साइमन कमीशन कहा जाता है | 

              20 जुलाई, 1927 को ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की घोषणा की | यह आयोग सात सदस्यीय था, जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे | ‘सर जॉन साइमन’ को इसका अध्यक्ष बनाया गया | आश्चर्य तथा आक्रोश वाली बात यह थी कि आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं थे | भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना भारतवासियों को मंजूर नहीं था | 

                        3 फरवरी, 1928 ई० को बंबई पहुँचने पर साइमन कमीशन का स्वागत वापस जाओ (Simon go Back) के नारे लगाए | लाला लाजपत राय ने लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ निकाले गये जुलूस का नेतृत्व किया | उनपर पुलिस द्वारा प्राणघातक हमला हुआ, जिससे उनकी कुछ सप्ताह बाद मृत्यु हो गई |   

      साइमन कमीशन के बहिष्कार के बावजूद मई 1930 में उसने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसकी कटु आलोचना हुई | 

नेहरू रिपोर्ट – भारत सचिव लार्ड बिरकन हैड ने भारतीयों को एक ऐसे संविधान के निर्माण की चुनौती दी जो सभी दलों एवं गुटों को मान्य हो | इस चुनौती का जवाब देने के लिए कांग्रेस ने फरवरी 1928 में दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मलेन का आयोजन किया | इस सम्मलेन में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति का गठन हुआ | कमिटि ने अगस्त 1928 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया | यह प्रतिवेदन ‘नेहरू रिपोर्ट’ के नाम से जाना गया | 

       पूर्ण स्वराज्य की माँग – सन् 1920 में लाहौर में कांग्रेस का अधवेशन हुआ | इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया | 

31 दिसंबर, 1929 की मध्य रात्रि को जवाहरलाल नेहरू ने नये स्वीकृत स्वाधीनता के तिरंगे झंडे को रावी नदी के किनारे, बड़े उत्तेजनामय वातारवरण के फहराया | अधिवेशन में यह भी निर्णय लिया गया कि हर वर्ष 26 जनवरी स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जायेगा | 

        26 जनवरी, 1930 को पूरे देश में पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाया गया | सवेरे प्रभात फेरी निकाली गई, सभाएँ हुई तथा राष्ट्रीय ध्वज फरराया गया | 

सविनय अवज्ञा आंदोलन  

ब्रिटिश शासन के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 में दूसरा जन-आंदोलन शुरू हुआ | ये आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन कहलाया | 11 फरवरी, 1930 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने गाँधीजी को सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने का अधिकार दिया | 

     12 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने अपनी ऐतिहासिक दांडी यात्रा आरंभ की | सावरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी से समुद्र तक यह पद यात्रा की | 24 दिनों तक 250 किमी० की पद यात्रा कर 5 अप्रैल को वे दांडी पहुँचे तथा 6 अप्रैल को समुद्र के पानी से नमक बनाया | 

समझौते का प्रयास – आंदोलन शुरू करने के पहले गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार से समझौते का प्रयास किया था | 31 जनवरी, 1930 को उन्होंने वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा था | इस पत्र में उन्होंने ग्यारह माँगें रखी थी | इन माँगों में कुछ माँगें सामान्य थी तो कुछ माँगें किसानों तथा उधोगपतियों के लिए थी | 

      गाँधीजी का यह पत्र एक अल्टीमेटम था उन्होंने यह भी कहा कि 11 मार्च तक उनकी माँगें नहीं मानी गई गो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन चलायेगा | 

बिहार में आंदोलन का प्रसार – विहार में समुद्र तट नहीं होने के कारण चौकीदारी कर के विरोध में आंदोलन हुआ | छपरा जेल के कैदियों ने आंदोलन के दौरान विदेशी वस्त्र पहनने से इनकार कर दिया तथा नंगे हड़ताल किये | 

आंदोलन में महिलाओं की भूमिका – गाँधीजी ने नमक सत्याग्रह के जलूस में औरतों ने भी हिस्सा लिया, नमक बनाया तथा शराब की दुकानों की पिकेटिंग की | बहुत सारी महिलायें जेल भी गई | गाँधीजी के आह्वान के बाद औरतों ने राष्ट्र की सेवा करना अपना फर्ज समझा | शहरों में ज्यादातर ऊँची जाती की महिलाएं तथा गाँवों में संपन्न किसानों के परिवार की महिलाओं ने आंदोलन में भाग लिया | 

सविनय अवज्ञा की सीमाएँ – कांग्रेस ने दलित वर्ग पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि कांग्रेस रुढ़िवादी स्वर्ण हिंदू सनातनपंथियों से डरते थे | परंतु गाँधीजी का यह मानना था कि ‘अछूतों’ का उद्धार किये बिना सौ साल तक स्वराज की स्थापना नहीं हो सकती | उन्होंने ‘अछूतों’ को हरिजन यानी ईश्वर की संतान बताया | 

          डाॅ० अंबेदकर ने 1930 में दलितों को दलित वर्ग एसोसिएशन (Depressed Classes Association) में संगठित किया | 

गाँधी-इरविन समझौता – जनवरी 1931 में महात्मा गाँधी और कांग्रेस कार्यकारिणी के सभी सदस्यों को जेल से बिना शर्त रिहा कर दिया गया | अगले ही महीने वायसराय के साथ उनकी लंबी बैठक हुई और 5 मार्च, 1931 को उस समझौते पर हस्ताक्षर हुए जिसे गाँधी-इरविन समझौता अथवा दिल्ली-पैक्ट कहते हैं |

  1. ऐसे सभी राजनीतक बंदियों को जिनके विरूद्ध हिंसा के आरोप नहीं थे रिहा कर दिया जाये | 

  2. भारतीय समुद्र के किनारे बिना नमक कर दिये नमक बना सके | 

  3. विदेशी कपड़ों और शराब आदि की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना देने का अधिकार हो | 

  4. सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने वालों को पुन: नौकरी में वापस लिया जाये | 

कांग्रेस की और से गाँधीजी ने निम्नालिल्हित बातों को स्वीकार किया | 

  1. सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया जायेगा | 

  2. कांग्रेस दूसरे गोलमेज सम्मलेन में भाग लेगी | 

  3. कांग्रेस ब्रिटिश सामान का बहिष्कार नहीं करेगी | 

  4. गाँधीजी पुलिस द्वारा की गयी ज्यादतियों के बारे में जाँच की माँग नहीं करेंगे | 

दूसरा गोलमेज सम्मेलन – दूसरा गोलमेज सम्मेलन लंदन में 7 सितंबर से 1 दिसंबर, 1931 तक हुआ | इसमें कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में गाँधीजी ने भाग लिया | दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की माँग डाॅ० अंबेदकर कर रहे थे | ब्रिटिश सरकार के अंबेदकर की माँग मान लेने पर गाँधीजी ने आमरण अनशन कर दिया | अंत में अंबेदकर ने गाँधीजी की बात मान ली तथा सितंबर 1932 में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर कर दिया | 

       1 दिसंबर, 1931 को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन बिना किसी नतीजा के ख़त्म हो गया | 28 दिसंबर को गाँधीजी खाली हाथ भारत लौट आये | द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के बाद सरकार गाँधी इरविन समझौते का उल्लंघन कर पुन: अपना दमनचक्र चलाना शुरू कर दिया | इसके विरोध में पुन: गाँधीजी ने जनवरी 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया | सरकार ने अपनी पूरी शक्ति द्वारा इस आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया |  

सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्त्व एवं परिणाम – ये आंदोलन भारत के स्वतंत्रता के लिए बढ़ाया गया एक और कदम था | इसके महत्त्वपूर्ण परिणाम हुये – 

  1. इस आंदोलन से राष्ट्रीय आंदोलन का सामाजिक विस्तार हुआ | 

  2. इस आंदोलन से समाज के विभिन्न वर्गों में राजनीतिक एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ | समाज में अंग्रेजी विरोधी भावनायें बढ़ी | 

  3. इस आंदोलन में महिलाओं की बगिदारी का विशेष महत्त्व है | 

  4. इस आंदोलन से ब्रिटिश राज को आर्थिक हानि हुई | भारत में ब्रिटिश वस्त्रों के आयात में गिरावट आई | 

  5. इस आंदोलन से राष्ट्रीयता की भावना बढ़ी | ‘प्रभात फेरी’ का आयोजन का भी भारतीयों पर व्यापक असर पड़ा | 

  6. सविनय अवज्ञा आंदोलन ने श्रमिक वर्ग तथा किसान आंदोलन को प्रभावित किया | 

  7. इस आंदोलन के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने 1935 ई० में भारत शासन का अधिनियम पारित किया | 

  8. पहली बार ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेश से समानता के आधार पर बातचीत किया | 

चंपारण आंदोलन (1917) – बिहार तथा बंगाल में नील का उत्पादन करने वाले किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी | 1916 ई० में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गाँधी को चंपारण आने का निमंत्रण दिया | 

         गाँधीजी ने पहली बार बिहार के किसानों की समस्याओं को समझा | गाँधीजी के दबाव में सरकार ने ‘चंपारण एग्रेरीयन कमिटी’ का गठन किया | जिससे निलहों पर अत्याचार बंद हो गया तथा तिनकठिया प्रणाली भी समाप्त कर दी गई | इस प्रकार चंपारण में गाँधीजी का सत्याग्रह आंदोलन सफल हो गया | गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी |  

बारडोली सत्याग्रह – बारदोली गुजरात के सूरत जिला में था | फरवरी 1928 में लगान बढ़ोतरी आंदोलन हुआ | यहाँ लगान में तीस प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई | किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया | सरकार द्वारा “बारदोली जाँच आयोग” गठित की गई | लगान के विरुद्ध हुए आंदोलन का नेतृत्व बल्लभ भाई पटेल ने किया | आंदोलन को सफलतापूर्वक तथा निष्ठा से चलाने के कारण उन्हें सरदार की उपाधि दी गई और वे सरदार बल्लभ भाई पटेल कहलाये | 

अल्लूरी सीताराम राजू का विद्रोह – आंध्रप्रदेश के गूडेम पहाड़ियों में एक उग्र गुरिल्ला आंदोलन फैल गया था | यहाँ के लोगों को बेगार करने पर मजबूर किया तो लोगों ने बगावत कर दी | उनका नेता अल्लूरी सीताराम राजू ने अंग्रेजों के विरिद्ध आंदोलन छोड़ दिया | यहाँ के लोगों का विश्वास था कि राजू ईश्वर का अवतार है | वह गाँधीजी के अहिंसा की नीति का विरोध करता था तथा यह दावा करता था कि भारत अहिंसा के बल पर नहीं बल्कि केवल शक्ति प्रयोग से ही आजाद हो सकता है | 1924 में विद्रोह का दमन कर दिया गया | राजू अपने लोगों के बीच लोकनायक बन गया | 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 

एक ब्रिटिश रिटायर्ड अधिकारी ऐलेन ऑक्ट्रोवियन ह्यूम भी इस प्रयास में लगे थे | बंबई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में 28 दिसंबर, 1885 को यह बैठक संपन्न हुआ | यहीं इस संगठन का नाम बदल कर “अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” कर दिया गया | कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने की थी | इस अधिवेशन में भारत के विभिन्न भागों से कुल 72 सदस्य शामिल हुए थे | 

ऑल इंडिया मुस्लिम लीग  

1 अक्टूबर, 1906 को शिमला में कुछ मुस्लिम नवाब और जमींदार, गर्वनर जनरल लार्ड मिंटो से मिले | उन्होंने मुसलमानों के ‘राजनीतिक हितों’ की रक्षा की माँग की | दिसंबर 1906 में आगा खान, नवाब सलीम उल्ला एवं वकार-उल-मुल्क जैसे संभ्रांत मुस्लिम नेताओं ने ‘अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’ की स्थापना की | 

स्वराज दल – फरवरी 1922 ई० में असहयोग आंदोलन के स्थगन के पश्चात् एक निराशा का वातावरण पैदा हो गया था | 1922 में हुए गया अधिवेशन के बाद जनवरी 1923 में चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, विट्ठल भाई पटेल, मदन मोहन मालवीय ने कांग्रेस में एक ‘स्वराज दल’ की स्थापना की | इन दोनों के अथक प्रयास के फलस्वरूप मार्च 1923 में स्वराज दल का प्रथम सम्मलेन इलाहबाद में हुआ | 

स्वराज दल का उद्देश्य – स्वराज दल का मुख्य उद्देश्य भी कांग्रेस पार्टी की तरह स्वराज्य प्राप्त करना ही था | परंतु इनके रस्ते थोड़े अलग थे | वे भारत में अंग्रेजों द्वारा चलाई परंपराओं का अंत करना चाहते थे | वे काउंसिल में प्रवेश करके असहयोग के कार्यक्रम को अपनाना और असहयोग को सफल बनाना चाहते थे | 

 

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