राज्य एवं राष्ट्र की आय – Bihar Board Class 10th Social Science Question-answer 2023

लघु उत्तरीय प्रश्न 

  1. आय से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – किसी भी देश या राज्य के निवासी अपनी उत्पादक क्रियाओं द्वारा जो धन आर्जित करते है, वह उनकी आय होती है | दुसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति को उसके शारिरीक अथवा मानसिक कार्य के लिए जो पारिश्रमिक मिलता है, वह उस व्यक्ति की आय है | 

2. भारत के किन राज्यों की प्रतिव्यक्ति आय अपेक्षाकृत आधिक है ? 

उत्तर – पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात आदि भारत के विकसित राज्य हैं तथा इनकी प्रतिव्यक्ति आय अपेक्षाकृत अधिक है | 

3. कुल राष्ट्रीय उत्पाद से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – किसी देश में एक लेखावर्ष के अंदर जिन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन तथा विनिमय होता है, उनके बाजार मूल्यों को हम कुल राष्ट्रीय उत्पाद ( GNP ) कहते हैं | यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए की मूल्यों को हम कुल राष्ट्रीय उत्पाद में केवल वे ही वस्तुएँ सम्मिलित हैं , जो उपभोक्ताओं द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अंतिम रूप में उपभोग की जाती आहें | उदहारण के लिए, कपड़ा अंतिम वस्तु है जिसका उपभोग के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है, किंतु कपास या सूत अंतिम वस्तु नहीं है | इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय उत्पाद की जानकारी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं की गणना केवल एक ही बार होनी चाहिए | दूसरी ध्यान देने की बात यह है की कुल राष्ट्रीय उत्पाद में केवल चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य ही शामिल रहता है | 

4. राज्य घरेलू उत्पाद क्या है ? 

उत्तर – राज्य घरेलू उत्पाद किसी राज्य में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक या बाजार मूल्य है | दुसरे शब्दों में, यह राज्य की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखावर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य होता है | इसमें प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक तीनों ही क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है | राज्य के इन विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादन में वृद्धि होने से राज्य की आय में भी वृद्धि होती है | हमारे देश के जीन राज्यों का सकल अथवा कुल राज्य घरेलू उत्पाद अधिक है उन्हें विकसित राज्यों की संज्ञा दी जाती है | 

5. राष्ट्रीय आय की गणना में होनेवाली कठिनाइयों का वर्णन करें | 

उत्तर – राष्ट्रीय आय की गणन करने में प्रायः कई प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं | इनमें पहली कठिनाई पर्याप्त एवं विश्वसनीय आँकड़ो की कमी है | भारत जैसे अर्द्धविकसित एवं पिछड़े हुए देशों में यह कठिनाई और अधिक होती है | राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कई बार एक ही आय को दुबारा गिन लिया जाता है | देश में उत्पादित बहुत-सी वस्तुओं का मुद्रा के द्वारा विनिमय नहीं होता है | अतएव, राष्ट्रीय आय को मापने में इस कारण भी कठिनाई होतीद है कि इस प्रकार की वस्तुओं का मूल्यांकन कैसे किया जाए | 

6. प्रतिव्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में अंतर स्पष्ट करें | अथवा, पतिव्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में क्या संबंध है

उत्तर – प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के नागरिकों की औसत आय है | कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं | इस प्रकार, प्रतिव्यक्ति आय की धारणा राष्ट्रीय आय से जुडी हुई है | राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से ही प्रतिव्यक्ति आय में भी वृद्धि नहीं होती हैं | लेकिन, केवल राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से ही प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि नहीं होगी | यदि आय में होनेवाली वृद्धि के साथ ही किसी देश की जनसंख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है तो प्रतिव्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी और लोगों के जीवन -स्तर में कोई सुधार नहीं होगा | इसी प्रकार, यदि राष्ट्रीय आय की तुलना में जनसंख्या की वृद्धि-दर आधिक है तो प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी | 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न  

  1. राष्ट्रीय आय की परिभाषा दें | इसकी गणना की प्रमुख विधि कौन-कौन-सी हैं ? 

उत्तर – राष्ट्रीय आय की मुख्यत: तीन परिभाषाएँ दी जाती हैं | प्रो० मार्शल के अनुसार, “किसी देश का श्रम और पूँजी उसके प्राकृतिक साधनों पर क्रियाशील होकर प्रतिवर्ष वस्तुओं का एक शुद्ध समूह उतपन्न करते हैं, जिसमें भौतिक तथा अभौतिक पदार्थ तथा सभी प्रकार की सेवाएँ सम्मिलित रहती हैं | यह देश की विशुद्ध वार्षिक आय या राष्ट्रीय लाभांश है”

      प्रो० पीगू के अनुसार, “राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की वास्तविक आय का वह भाग है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित है, जिसे मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है |” मार्शल और पीगू के ठीक विपरीत प्रो० फिशर ने उत्पादन की अपेक्षा उपभोग को राष्ट्रीय आय का आधार माना है | इनके अनुसार, “वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग है जिसका उस वर्ष में प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है |” 

        राष्ट्रीय आय की धारणा पर उत्पादन, आय एवं व्यय तीन दृष्टियों से विचार किया जाता है | इन्हीं विचारों के अनुरूप राष्ट्रीय आय की माप या गणना करने की भी निम्नलिखित तीन मुख्य पद्धतियाँ हैं | 

  1. उत्पत्ति गणन पद्धति – उत्पत्ति या उत्पादन-गणना पद्धति के अंतर्गत देश की अर्थव्यवस्था को कृषि, उद्योग, व्यापार आदि विभिन्न क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है | इसके पश्चात इन सभी क्षेत्रों द्वारा एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य शुद्ध निर्यात को जोड़कर कुल उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय का पता लगाया जाता  है | 
  2. आय-गणना पद्धति – इसके अनुसार, देश के सभी नागरिकों और व्यवसायिक संस्थाओं की आय की गणना की जाती है तथा उनकी शुद्ध आय के योगदान को राष्ट्रीय आय कहा जाता है | 
  3. व्यय-गणना पद्धति – इस पद्धति के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं पर किए गए अंतिम व्यय को मापने का प्रयास किया जाता है | इसमें निजी उपभोग व्यय, सरकारी व्यय, निजी घरेलू निवेश तथा शुद्ध निर्यात को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है | 

 

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