लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में लोग ज्यादा संतुष्ट हैं | इस शासन का कोई दूसरा प्रतिद्वंद्वी नहीं है और न ही इस शासन व्यवस्था में कोई चुनौती है | लोकतंत्र में हमने देखा कि लोग थोड़े में ही संतुष्ट हैं, आगे की इच्छा नहीं रखते हैं | लोकतंत्र में जीतनी संभावनाएं हैं, दुनिया में कहीं भी उसका पूरा लाभ नहीं उठाया गया है |
लोकतांत्रिक सिद्धांत एवं व्यवहार में सामंजस्य
लोकतंत्र को जैसा हम जानते हैं, यह पूर्णतया प्राचीन पद्धति है | लोकतंत्र का प्रारंभिक स्वरूप वैसा नहीं था, जैसा कि आजकल हमलोग देखते हैं | लोकतंत्र को आधुनिक स्वरूप तक पहुँचने में काफी समय लगा | लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था के विकास के क्रम में सिद्धांतों का समावेश होता गया | लोकतांत्रिक व्यवस्था कुछ सिद्धांतों पर आधारित होती है | लोकतांत्रिक व्यवस्था उस राजनीतिक पद्धति में विद्यमान रह सकती है, जहाँ सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं | लोकतंत्र के स्वीकृत सिद्धांत निम्नलिखित हैं –
- विधि का शासन – पहले शासन का केंद्र राजा हुआ करता था | समस्त शक्तियाँ राजा में निहित थी, राजा की इच्छा से ही कानून बनाते थे | ऐसी शासन व्यवस्था को राजतंत्र कहा जाता है | धीरे-धीरे इस शासन-व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठने लगी, जो बाद में जन आंदोलन के रूप में बदल गया |
- प्रतिनिधि सरकार का सिद्धांत – प्रतिनिधि सरकार का सिद्धांत के अनुसार लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार का गठन प्रतिनिधित्व के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए | इस तरह की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता अपनी सरकार बनाने के लिए अपने प्रतिनिधि को चुनती है |
- उत्तरदायी सरकार का सिद्धांत – लोकतंत्र में उत्तरदायी सरकार का सिद्धांत भी 1688 में इंगलैंड के गौरवपूर्ण क्रांति के बाद ही अस्तित्व में आया | उत्तरदायी सरकार का अर्थ जनता की उस शक्ति से है, जिसके कारण जनता सरकार से पूछ सकती है कि जो कुछ उसने किया, वह क्यों किया और यदि वह सरकार की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है तो उसे आगामी निर्वाचन में अपदस्थ कर सकती है |
- प्रतियोगी राजनीति – प्रतियोगी राजनीति का सिद्धांत लोकतांत्रिक सिद्धांतों में आधुनिक सिद्धांत है | लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रतियोगी राजनीति के लिए आवश्यक है कि अनेक संगठन, राजनीतिक दल व समूह प्रतियोगी रूप में उस व्यवस्था में सक्रिय रहें |
- लोकप्रिय संप्रभुता का सिद्धांत – लोकतंत्र के इस सिद्धांत के अनुसार लोकतंत्र की अंतिम शक्ति जनता में निहित होती है |
- नागरिक अधिकारों का सिद्धांत – लोकतंत्र के इस सिद्धांत के अनुसार नागरिकों को बुनियादी अधिकार जैसे स्वतंत्रता एवं समानता का अधिकार, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, राजनीतिक अधिकार, एवं सामाजिक न्याय के अधिकार प्रदान किये जाते हैं | लोकतंत्र का मूल सिद्धांत समानता पर आधारिक है अर्थात् किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो | लोकतंत्र प्रतिनिधित्व एवं उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर भी आधारित है | भारत में सभी नागरिकों को सार्वजनिक मताधिकार प्रदान कर इस सिद्धांत को व्यवहारिक रूप प्रदान किया गया है |
लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था की चुनौतियाँ
आज विश्व के लगभग एक चौथाई देश ऐसे हैं जहाँ लोकतंत्र स्थापित नही हो सका है | परंतु जहाँ इसकी स्थापना हो चुकी है, उसे चुनौती देने वाली कोई दूसरी व्यवस्था नहीं है | लोकतंत्र के विकास के मार्ग में कई पड़ाव आये | प्रत्येक पड़ाव पर दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सामने गंभीर चुनौतियाँ हैं | ये चुनौतियाँ अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रकृति की हैं | जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था नहीं है, उन देशों में लोकतांत्रिक सरकार गठन करने की चुनौती | लोकतंत्र के विस्तार की चनौती | लोकतंत्र को मजबूत करना लोकतंत्र की तीसरी प्रमुख चुनौती है |
लोकतंत्र की बुनियादी चुनौती
- लोकतांत्रिक सरकार गठन की चुनैती |
- लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती |
- लोकतंत्र को मजबूत बनाने की चुनौती |
भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रमुख चुनौतियाँ
- सरकार के तीनों अंगों के बीच टकराव |
- संकीर्ण दलीय राजनीति |
- संघ एवं इकाइयों के बीच टकराव |
- दलों द्वारा उम्मीदवारों के टिकट वितरण में प्रदर्शिता का अभाव |
- राजनीतिक दलों द्वारा अपराधियों को ज्यादा महत्त्व दिया जाना |
- गठबंधन के राजनीति की मजबूरी |
- क्षेत्रीय असंतुलन |
- सामाजिक भेदभाव |
लोकतंत्र की चुनौतियों के समाधान के लिए सझाव
- शिक्षा एवं जागरूकता,
- बेरोजगारी की सम्पति,
- मूलभूत बातों पर सहमति,
- स्थानीय स्वशासन की मजबूती,
- समानता की स्थापना,
- नागरिकों के अधिकार एवं स्वतंत्रता की बहाली,
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव,
- जनसंपर्क माध्यमों की स्वतंत्रता,
- सुधारात्मक कानूनों का निर्माण,
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका |
बिहार में लोकतंत्र की जड़े कितनी गहरी हैं ?
बिहार से लोकतंत्र का पुराना रिश्ता है | लोकतंत्र की शुरुआत बिहार के वैशाली के लिच्छवी से हुआ | तब से लेकर आज तक लोकतंत्र परिपक्व होता गया और इसका विस्तार होता गया | बिहार भारतीय संघ का एक राज्य है | यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि बिहार में लोकतंत्र की जड़े काफी गहरी हैं |