लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी – Bihar Board Class 10th Social Science Subjective Question-answer 2023

लघु उत्तरीय प्रश्न 

1. सामाजिक विभेद से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – जन्म, भाषा, जाति तथा धर्म के आधार पर प्रत्येक समाज के लोगों में विभेद होना स्वाभाविक है | इन आधारों पर जब लोग अलग-अलग समुदायों में बँट जाते हैं तब उसे हम सामाजिक विभेद कहते हैं | 

2. सामाजिक विभेद का एक अच्छा परिणाम बताएँ |

उत्तर – सामाजिक विभेद बने रहने से सामाजिक विभेदों की राजनीति चलती है और वह लोकतंत्र को सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होती है | 

3. बँधुआ मजदूर किसे कहते हैं ? 

उत्तर – जो मजदूर अपना श्रम किसी खास व्यक्ति ( संस्था ) को उसी के शर्त पर बेचने के लिए बाध्य हो, बँधुआ मजदूर कहलाता है | 

4. लैंगिक विभेद से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – लिंग के आधार पर पुरुषों और महिलाओं में विभेद करना | 

5. रंगभेद क्या है ? 

उत्तर – मनुष्यों में गोरे और काले रंग के आधार पर विभेद करना और काले रंगवालों को गोरे रंगवालों की अपेक्षा कई अधिकारों से वंचित रखना | 

6. सांप्रदायिकता क्या है ? 

उत्तर – अपने धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रहित का बलिदान कर देना सांप्रदायिकता है | 

7. महिला सशक्तीकरण से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – महिला सशक्तीकरण आर्थिक एवं राजनीतिक अवसरों तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की सहभागिता की ओर ध्यान आकृष्ट करता है | 

8. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी क्या महत्त्व रखती है ? 

उत्तर – सत्ता में जनता की साझदारी लोकतंत्र का आधार है | जब जनता को राज्य के काम-काज में भागीदारी मिलती है तो जनता राज्य के मामले में अधिक रूचि लेती है | इससे राजनीतिक सत्ता को जनसमर्थन और सहयोग प्राप्त होता है | राजनीतिक व्यवस्था अधिक स्थिर होती है और उसका स्थायित्व बढ़ जाता है | इससे क्रांति, विरोध और संशय की जगह जनासंतुष्टि, सहयोग और विश्वास बढ़ता है | इससे राष्ट्र को एकजुटता प्राप्त होती है | 

9. सामाजिक विभेदों में तालमेल किस प्रकार स्थापित किया जाता है ? 

उत्तर – सामाजिक विभेदों में तालमेल स्थापित कर ही राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखा जा सकता है | सामाजिक विभेदों में तालमेल बनाए रखने के लिए भारत में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया गया है | इस सिद्धांत से यह धारणा विकसित होती है की उनके धर्म अलग-अलग अवश्य हैं, परंतु उनका राष्ट्र तो एक ही है | दूसरी बात यह भी है कि आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य में सत्ता के बँटवारे में अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक दोनों का खयाल रखा जाता है ताकि सामाजिक विभेदों में तालमेल स्थापित किया जा सके | 

10. परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करते हैं ? 

उत्तर – बिहार की राजनीति में जातिवाद और परिवारवाद एक स्थापित तथ्य बन गया है | 20वीं सदी के सातवें दशक में जातियाँ राजनीति की धुरी बनकर सामने आई | जातियों को गोलबंद कर जातीय भावाना फैलाई जाती है | इस भावना का इस्तेमाल कर राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति की कोशिश की जाती है जाति के आधार पर चुनाव में प्रत्याशी चुने जाते हैं | मंत्रिमंडल के गठन में जाति का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है | फलत: बिहार की राजनीति जातियों के इर्द-गिर्द घुमती है | 

     परिवार के लोगों को आगे लाने की कोशिश में जाति का तत्व सहायक होता है | यह प्रकृति राजनीति की छवि और लोकतंत्र की पारदर्शिता को प्रभावित करती है | 

11. लैंगिक असमानता क्या है ? 

उत्तर – लिंग के आधार पर पुरुषों और स्त्रियों में भेद करना, स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में दोयम दर्जे का और हीन समझने की भावना लैंगिक असमानता है | लड़कियों को लड़कों की तुलना में कम महत्त्व दिया जाना, शिक्षा, खान-पान, पालन-पोषण में अंतर करना, लड़की को घर की चहारदीवारी में कैद रखना और घर के काम-काज तक सीमित रखना, स्त्रियों पर पुरुषों का नियंत्रण आदि लैंगिक असमानता के उदहारण हैं | 

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

1. ‘महिला आरक्षण विधेयक’ क्या है ? आपके अनुसार, यह विधेयक विधान ( कानून ) क्यों नहीं बन पा रहा है ? 

उत्तर – जनता की प्रतिनिधिक संस्थाओं में सत्ता की साझेदारी में महिलाओं को अधिक स्थान देने के उद्देश्य से कई कदम उठाए जा चुके हैं | भारतीय संविधान के 73वें और 74वें संशोधन द्वारा देशभर में ग्रामीण एवं नगरीय स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित कर दिया गया है | बिहार में पंचायती एवं नगरीय संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है | लोकसभा और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने के लिए संसद में विधेयक उपस्थित किया जा चुका है | इसे ही ‘महिला आरक्षण विधेयक’ कहते हैं | 

            इस विधेयक के विधान बनने के रस्ते में अनेक बाधाएँ हैं | कई पुरुष राजनीतिज्ञों को अपनी सीट से वंचित होने की आशंका है, अतः ऐसे पुरुष राजनीतिज्ञ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से इसका विरोध कर रहे हैं | कुछ राजनीतिज्ञों ने इस विधेयक के विधान बनने के रस्ते में यह अडंग लगा दिया है की दलित, पिछड़ी और अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था की जाए | इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसे लोग ‘आरक्षण के अंदर आरक्षण’ के पक्ष में हैं | 

2. सांप्रदायिकता क्या है ? इसके प्रमुख तत्त्व कौन-कौन-से हैं ? 

उत्तर – अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊँचा मानना और अपने धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रहित का भी बलिदान कर देना सांप्रदायिकता है | यह धर्म के नाम पर घृणा फैलती है और मानव को मानव से घृणा करना सिखाती है | इसके चलते एक धर्म के अनुयायी दुसरे धर्म के अनुयायियों के दुश्मन हो जाते हैं | अतः सांप्रदायिकता एक संकीर्ण विचारधारा है जो एक विशेष समुदाय को अन्य समुदायों के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार करने का निर्देश देती है | सांप्रदायिकता के प्रमुख तीन तत्त्व निम्नांकित हैं | 

  1. एक धर्म के अनुयायियों के हित एकसमान होते हैं | 
  2. एक धर्म के अनुयायियों के हित दूसरे धर्म के अनुयायियों से भिन्न होते हैं | 
  3. उनके हित एक-दुसरे से भिन्न ही नहीं, बल्कि परस्परविरोधी भी होते हैं |  

3. राष्ट्रीय प्रगति में महिलाओं का क्या योगदान है ? 

उत्तर – राष्ट्र का जीवन महिला और पुरुष दोनों के योगदान पर टिका होता है | आधी आबादी की मानवीय और बौद्धिक शक्ति के बिना कोई राष्ट्र विकास और प्रगति में दूसरे राष्ट्र की तुलना में पिछड़ जाता है | विकसित राष्ट्र इसलिए विकसित हैं कि वे अपने मानव संसाधन का शत-प्रतिशत उपयोग करने में सक्षम हैं | 

          पुरुष-प्र्धनातावाले विकासशील समाजों में भी महिलाएँ प्रगति और विकास के केंद्र में हैं | अंतर कवल यह है की यहाँ महिलाओं के श्रम की कोई कीमत नहीं दी जाती है और उनके कार्य को महत्त्व नहीं दिया जाता है | घरेलू काम-काज में अपनी संपूर्ण क्षमता से दिनभर श्रम करनेवाली महिलाओं के बिना पुरुष न तो स्वतंत्र उपार्जन कर सकेंगे, न ही संतति की परवरिश | कृषि, पशुपालन, कुटीर-उद्योग के क्षेत्रों में महिलाएँ आगे बढ़कर योगदान कर रही हैं | आज महिलाएँ ओलंपिक प्रतिस्पर्द्धा में हैं | ये वकील, चिकित्सक, इंजीनियर, प्रबंधक, वैज्ञानिक हैं एवं संचार, कंप्यूटर के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दे रही हैं | 

4. जातिवाद के किन्हीं चार कुप्रभावों का उल्लेख करें | 

उत्तर – जातिवाद के निम्नांकित चार कुप्रभाव हैं | 

  1. समाज में रूढ़ीवाद और सामाजिक कुरीतियों का विकास | 
  2. विभिन्न जातियों के लोगों द्वारा एक-दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखने के कारण लोगों के बीच असमानता एवं फूट की भावना में वृद्धि |
  3. जातिवाद के कारण राष्ट्र का अनेक समूहों और टुकरों में बँट जाने के कारण राष्ट्रीय एकता पर कुठाराघात | 
  4. लोगों के व्यक्तित्व का स्वतंत्र रूप से विकास नहीं होने के कारण राष्ट्र की आर्थिक प्रगति में रूकावट | 

 

 

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