सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली – Class 10th Social Science ( सामाजिक विज्ञान ) Notes in Hindi

  बड़े लोकतांत्रिक देशों में शासन का सफल संचालन और शासन में सभी व्यक्तियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सत्ता का विभाजन संविधान द्वारा कर दिया गया है | सत्ता के विभाजन का अर्थ है – शासन के केंद्र का विभाजन | जब शासन का विभाजन केंद्र और उसके विभिन्न इकाइयों के बीच कर दिया जाता है तो सत्ता का विभाजन कहा जाता है | सत्ता के ऐसे विभाजन को संघवाद भी कहा जाता है | एक स्तर की सरकार पूरे देश के लिए होती है, जिसके जिम्मे राष्ट्रीय हितों से संबंधित विषय होते हैं, जिसे केंद्रीय सरकार कहते हैं | दूसरे स्तर की सरकार इकाइयों की होती है जो राज्य के हितों से संबंधित विषयों को देखती है, जिसे प्रांतीय या राज्य सरकार कहते हैं | दोनों स्तरों की सरकारें स्वतंत्र रूप से अपने-अपने हितों  के लिए काम करती हैं | दोनों स्तर की सरकारें अलग-अलग रूप से जनता के प्रति उत्तरदायी हैं |  

        यदि दोनों  सरकारों के बीच विवाद उत्पन्न होता है तो उन विवादों के निपटारा के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका होती है | संघात्मक व्यवस्था में सरकार दो स्तरों की होती है, वहीँ एकात्मक व्यवस्था में एक ही स्तर की सरकार होती है | संघवाद के निर्माण के लिए कुछ आवश्यक दशाएँ होती हैं, जिसके आधार पर ही संघवादी राज्य का निर्माण होता है | इसीलिए संघवाद में निम्नलिखित दशाओं का होना अनिवार्य है – 

  1. कई छोटे या बड़े राज्य हों जिनके विभिन्न क्षेत्रों को संघ-इकाइयों में बदला जाए | 
  2. संघवादी राज्य में सम्मिलित होने वाले राज्यों के बीच संस्कृति, सभ्यता, धर्म आदि में अधिक असमानता तथा भेद न हो | 
  3. संघ में सम्मिलित होने वाले राज्यों का इतिहास एक होना चाहिए | 
  4. भौगोलिक दृष्टि से राज्यों के विभिन्न क्षेत्र आपस में मिला होना चाहिए, ऐसा नहीं होना चाहिए कि संघ में सम्मिलित होने वाला एक राज्य हिंद महासागर में और दूसरा अटलांटिक महासागर में स्थित हो | 
  5. इन राज्यों की आर्थिक एवं राजनैतिक हित परस्पर विरोधी न हों | 

Note – संघीय व्यवस्था की स्थापना के दो तरीके हैं 

प्रथम – कई स्वतंत्र राज्य मिलाकर एक बड़ा राज्य बना लेते हैं | 

दूसरा – एकात्मक सरकार को संघात्मक सरकार में परिवर्तन कर |  

संघीय व्यवस्था या संघवाद की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, जो निम्नलिखित हैं – 

  1. लिखित संविधान – संघीय व्यवस्था में एक लिखित संविधान होना चाहिए | यह संविधान निश्चित और स्पष्ट होना चाहिए | 
  2. संविधान संशोधन की कठोर प्रक्रिया – संविधान के मौलिक प्रावधान कठोर (Rigid) होने चाहिए | ऐसा नहीं होने पर इकाइयों की सरकारों को हमेशा डर बना रहेगा कि कभी भी उनकी शक्ति छिन सकती है | 
  3. शक्तियों का विभाजन – संघात्मक सरकार में संविधान की प्रधानता होती है | केंद्रीय सरकार एवं इकाइयों की सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन संविधान के द्वारा ही होता है | 
  4. स्वतंत्र-न्यायपालिका – संघात्मक सरकार में एक स्वतंत्र न्यायपालिका होती है | न्यायपालिका ही संविधान की संरक्षक होती है | केंद्र एवं इकाइयों के बीच विवाद होने पर संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर न्यायपालिका ही विवादों का समाधान करती है | 
  5. दो स्तारों की सरकार – संघात्मक सरकार की प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें सरकार दो स्तरों की होती है | एक केंद्र की सरकार और दूसरी राज्यों या इकाइयों की सरकार | 
  6. क्षेत्रीय विविधता को बनाए रखना – संघात्मक सरकार का प्रमुख उद्देश्य है देश की एकता को बढ़ाना और उसको सुरक्षा प्रदान करना एवं क्षेत्रीय विविधता को बनाये रखना |

भारत में संघीय व्यवस्था का स्वरूप 

संविधान ने भारत को राज्यों का संघ (Union of States) घोषित किया है अर्थात् भारत को राज्यों का संघ कहा गया है | संविधान में केंद्र एवं इकाइयों की सरकरों के बीच विधायनी शक्तियों को तीन भागों में बाँटा गया है | ये तीनों सूचियाँ निम्नलिखित हैं – 

  1. संघ सूची – संघ सूची में राष्ट्रीय हित के विषय होते हैं | संघ सूची में 97 विषय आते हैं, जैसे – देश की रक्षा, विदेशी मामले, बैकिंग, अणुश्क्ति, संचार व्यवस्था, युद्ध एवं शांति, मुद्रा, रेलवे आदि | 
  2. राज्य सूची – राज्य सूची में वैसे विषय सम्मिलित होते हैं जो केवल राज्य हित के मामले से संबंधित हैं और ऐसे विषयों पर केवल राज्य सरकार अर्थात् इकाइयों को ही कानून बनाने एवं कोई निर्णय लेने का अधिकार है | राज्य सूची में 66 विषय आते हैं | राज्य सूची में पुलिस, व्यापार और वाणिज्य, कृषि, सिंचाई जेल, सड़क आदि विषय आते हैं | 
  3. समवर्ती सूची – इस सूची में ऐसे विषय रखे गये हैं जिनका महत्त्व क्षेत्रीय और संघीय दोनों ही दृष्टियों से है | समवर्ती सूची में 47 विषय आते हैं | समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, ट्रेड युनियन, विवाह, तलाक, गोद लेना, उत्तराधिकार, सामाजिक सुरक्षा एवं सामाजिक बिमा, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन आदि विषय आते हैं | जो विषय इन तीनों सूचियों में नहीं आते हैं या कुछ ऐसे विषय हैं जो संविधान बनने के बाद उत्पन्न हुए हैं तो ऐसे विषय अवशिष्ट शक्तियों के अंतर्गत आते हैं | भारतीय संघ में कुछ ऐसी भी इकाइयाँ हैं जो जनसंख्या और क्षेत्र में बहुत छोटे हैं, जिन्हें दूसरे राज्य में विलय भी नहीं किया जा सकता है | इसीलिए ऐसे इकाई को केंद्र शासित प्रदेश कहा जाता है | दिल्ली, लक्षदीप, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, दमन दिऊ, पुडुचेरी, दादरा और नगर हवेली ऐसे ही प्रदेश हैं | इसमें दिल्ली तथा पुडुचेरी को आंशिक राज्य का दर्जा दे दिय गया है |

Note – भारत में संघवादी व्यवस्था को अपनाये जाने के पीछे तर्क 

  1. राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े नेताओं का विचार | 
  2. विभिन्न क्षेत्रों की पहचान एवं विविधता को बचाये रखने के लिए | 
  3. संविधान सभा के निर्णय के अनुसार | 
  4. संविधान की कठोरता के कारण | 
  5. भारत एक बड़ा राष्ट्र होने के कारण | 

Note – भारतीय संधात्मक व्यवस्था में राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने वाले तत्त्व 

• भाषायी एकता  

• केंद्र-राज्य संबंध 

• क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय 

• भाषा के आधार पर विविधता 

• विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति 

Note – लोकतंत्र द्वारा सामाजिक समूहों के बीच समन्वय स्थापित करने के साधन 

• सामाजिक समूहों के बीच शक्ति विभाजन कर, 

• सामाजिक समूहों के हितों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति कर, 

• सामाजिक समूहों के बीच सामाजिक संतुलन के बनाकर, 

• सामाजिक समूहों को स्वतंत्रता प्रदान करना | 

 

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