खनिज संसाधन – Class 10th Social Science Notes in Hindi

खनिज संसाधन

खनिज प्राकृतिक रासायनिक मिश्रण हैं | ये तत्त्वों के रासायनिक संयोग से बनते हैं |  भारत खनिज संसाधनों में संपन्न है | 

खनिजों के प्रकार –

खनिजों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है | भूवैज्ञानिक (Geologist) खनिजों का वर्गीकरण उसके रासायनिक और रवों की संरचना के आधार पर करते हैं | सामान्यत: खनिजों को दो वर्गों में बाँटा गया है – 

  1. धात्विक खनिज | 
  2. आधात्विक खनिज | 
  1. धात्विक खनिज (Metallic minerals) – वे खनिज जिनसे विभिन्न प्रकार की धातुएँ प्राप्त होती है | धात्विक खनिज प्रायः अयस्क (Ore) के रूप में पाए जाते हैं और उनमें कई धातुएँ एवं अशुद्ध पदार्थ मिले रहते हैं | 
  2. अधात्विक खनिज (Non-metallic minerals) – वे खनिज जिनमें धातुएँ नहीं होतीं तथा उन्हें खानों से निकालने के बाद साफ करने की आवश्यकता नहीं पड़ती; जैसे – अभ्रक, हिरा, कोयला, खनिज-तेल, चूना-पत्थर, गंधक इत्यादि | 

 धात्विक एवं अधात्विक खनिजों में अंतर 

धात्विक खनिज  अधात्विक खनिज 
(i) धात्विक खनिज में धातुएँ होती हैं |  (i) अधात्विक खनिज में धातुएँ नहीं होती हैं | 
(ii) इन्हें खानों से निकालने के बाद साफ करने की आवश्यकता होती है |  (ii) इन्हें साफ करने की आवश्यकता नहीं होती है | 
(iii)ये प्रायः अयस्क (ore) के रूप में पाए जाते हैं |  (iii) ये अयस्क के रूप में नहीं पाए जाते हैं | 
(iv) इनको गलाने पर धातु प्राप्त होता है |  (iv) इनको गलाने पर धातु प्राप्त नहीं हो सकता है | 
(v) ये कठोर और चमकीले होते हैं |  (v) इनकी अपनी चमक होती है | 
(vi)इन्हें पीटकर तार बनाया जा सकता है | ये पीटने पर टूटते नहीं हैं |  (vi) इन्हें पीटकर तार नहीं बनाया जा सकता | ये पीटने पर चूर-चूर हो जाते हैं | 
(vii) ये प्रायः आग्नेय चट्टानों में मिलते हैं |  (vii) ये प्रायः परतदार चट्टानों में मिलते हैं | 
  1. धात्विक खनिज (Metallic minerals) – धात्विक खनिजों को पुन: दो उपवर्गों में बाँटा गया है, जो इस प्रकार है – 
  1. लौह युक्त धात्विक खनिज – लौह-अयस्क, मैंगनीज अयस्क, क्रोमाइट, पाइराइट, टंगस्टन, निकिल और कोबाल्ट सामान्य लौह खनिज हैं | इनमें लोहे का अंश पाया जाता है | ये रवादार चट्टानों में पाये जाते हैं | 
  2. अलौह धात्विक खनिज – सोना, चाँदी, ताँबा, सीसा, बॉक्साइट, टिन और मैग्नीशियम अलौह खनिज हैं | इनमें लोहे का अंश न्यून या बिल्कुल नहीं होता है | ये सभी प्रकार की चट्टानों में मिल सकते हैं | 

2. अधात्विक खनिज – नाइट्रेट, पोटाश, अभ्रक, जिप्सम, कोयला और पेट्रोलियम अधात्विक खनिज हैं | 

       अधात्विक खनिज के भी दो उपवर्ग हैं – 

  1. कार्बनिक या ईंधन खनिज – ये पृथ्वी में दबे हुए प्राणी एवं पादप जीवों के परिवर्तित होने से बनते हैं | अत: इनमें जीवाश्म होते हैं | कोयला और पेट्रोलियम कार्बनिक खनिज के उदहारण हैं | 
  2. अकार्बनिक खनिज – इनमें जीवाश्म नहीं होते हैं, जैसे अभ्रक, ग्रेफाइट इत्यादि | 

 

 

खनिजों का वितरण 

भारत में खनिजों का वितरण असमान है | इसका कारण यह है कि देश की भौगर्भिक संरचना में प्रादेशिक भिन्नता पाई जाती है | भारत में पाये जाने वाले अधिकांश खनिज पाँच पेटियों में वितरित हैं जिसके कारण अन्य भागों में इनकी अनुपस्थिति के कारण अनेक आर्थिक विषमताएँ पाई जाती हैं | प्रमुख  पाँच पेटियाँ निम्नवत हैं – 

  1. छोटानागपुर पेटी – झारखण्ड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में फैली इस पेटी में अभ्रक, मैंगनीज, क्रोमाइट, इल्मेनाइट, बॉक्साइट, फास्फेट, लौह-अयस्क, ताँबा, चूना-पत्थर, केल्साइट आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है | 
  2. मध्यवर्ती पेटी – मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में फैली इस पेटी में अधिकांश मैंगनीज, बॉक्साइट, चूना-पत्थर, संगमरमर, लिग्नाइट, अभ्रक, जवाहरात, लौह-अयस्क, ताँबा, ग्रेफाइट आदि उपलब्ध हैं | 
  3. दक्षिणी पेटी – यह पेटी कर्नाटक और तमिलनाडु में विस्तृत है | यहाँ सोना, ताँबा, क्रोमाइट, मैंगनीज, लिग्नाइट, अभ्रक, बॉक्साइट, जिप्सम, चूना-पत्थर आदि का भंडार है | 
  4. पश्चिमी पेटी – राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में विस्तृत इस पेटी में ताँबा, जस्ता, यूरेनियम, अभ्रक, मैंगनीज, एस्बेस्टस, नमक, कीमती पत्थर, बॉक्साइट के भंडार हैं | 
  5. दक्षिणी-पश्चिमी पेटी – इसका विस्तार दक्षिणी कर्नाटक, गोवा और केरल में है | इस पेटी में इल्मेनाइट, जिरकन, मोनाजाइट, गार्नेट, चिकनी मिट्टी, लोहा चूना-पत्थर आदि के भंडार हैं | 

लौह-अयस्क 

लोहा आधुनिक सभ्यता का आधार है | इसकी सर्वव्यापी उपयोगिता है | सामान्यत: लौह-अयस्क चार प्रकार के होते हैं | 

  1. मेग्नेटाइट (72 प्रतिशत लौह अंश) सर्वोत्तम कोटि का अयस्क | 
  2. हैमाटाइट (60 से 70 प्रतिशत लौह अंश) | 
  3. लिमोनाइट (40 से 60 प्रतिशत लौह अंश) | 
  4. सिडेराइट (40 से 50 प्रतिशत लौह अंश) | 

वितरण – भारत में विश्व के लगभग 21 % लौह-अयस्क के संचित भंडार हैं | भारत में लौह-अयस्क का खनन मुख्यतः छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, गोवा और कर्नाटक राज्यों में होता है | गोवा के उत्तरी गोवा जिला तथा कर्नाटक के चिकमंगलूर (बाबा बुदन) और बेल्लारी (सेंदूर) जिलो में भी लौह-अयस्क निकाला जाता है | 

उत्पादन – भारत में लौह-अयस्क के उत्पादन में पिछले 60 वर्षों में काफी वृद्धि हुई है | 1951 ई० में कुल 30 लाख टन उत्पादन हुआ था, जो बढ़कर 2009 ई० में 2010 लाख टन हो गया | 

व्यापार – भारत में जितना लौह-अयस्क निकाला जाता है, उसका लगभग आधा भाग मुख्यत: जापान, यूरोपीय देशों और खाड़ी के देशों को निर्यात कर दिया जाता है | भारत अपने कुल लौह-अयस्क निर्यात का तीन-चौथाई भाग जापान को करता है | लौह-अयस्क विशाखापत्तनम, पारादीप, मुरमूगाँव और मंगलौर के पत्तनों से निर्यात किया जाता है | 

मैंगनीज अयस्क 

मैंगनीज अयस्क का उपयोग लोहा और इस्पात तथा मिस्राधातु बनाने में किया जाता है | इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशकों, रंग-रोगन और बैट्री बनाने में भी किया जाता है | 

वितरण – भारत में विश्व के लगभग 20 % मैंगनीज अयस्क का संचित भंडार पाया जाता है | 

उड़ीसा – उड़ीसा में भारत के 37 प्रतिशत मैंगनीज का उत्पादन होता है और यह इसके उत्पादन में भारत में अग्रणी है | मुख्य उत्पादन क्षेत्र क्योंझर, कालाहांडी (बोनाइगढ़), सुंदरगढ़ (गंपुर क्षेत्र), मयूरभंज और तालचर हैं | 

महाराष्ट्र – यह भारत के कुल मैंगनीज के लगभग 25 प्रतिशत का उत्पादन करता है | मुख्य उत्पादन करता है | 

मध्यप्रदेश – यह मैंगनीज का देश में तीसरा बड़ा उत्पादन है, और देश के कुल 21 प्रतिशत का उत्पादन करता है | इस प्रान्त के मुख्य उत्पादन क्षेत्र बालाघाट, छिन्दबाड़ा, जबलपुर और झाबुआ हैं | 

कर्नाटक – इस प्रदेश के चित्रदुर्ग, शिमोगा, चिकमंगलूर तुमकुर, बेल्लारी, बेलगाम, उत्तरी कन्नड़ तथा धारवाड़ इत्यादि में मैंगनीज का उत्पादन होता है | 

आंध्रप्रदेश – आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम और विशाखापत्तनम में देश के 6 प्रतिशत मैंगनीज अयस्क का उत्पादन होता है | कडप्पा, विजयनगर तथा गुंदूर अन्य उत्पादक जिले हैं | 

उत्पादन – भारत में 2005-06 में 19.06 लाख टन मैंगनीज का उत्पादन हुआ, जो बढ़कर 2006-07 में 21.43 लाख टन और 2007-08 में 25.12 लाख टन हो गया | 

व्यापार – 80 % मैंगनीज अयस्क की खपत देश में ही हो जाती है | शेष 20 % मैंगनीज अयस्क का निर्यात कर दिया जाता है |  

ताँबा  

ताँबा एक बहुत उपयोगी धातु है | यह बिजली का सुचालक है | अतः बिजली के तार, बल्ब, मोटर, इंजन, रेडियो, टेलीफोन, शक्तिवाहक तार इत्यादि में इसका उपयोग होता है |   

भंडार – भारत में ताँबा का कुल भंडार 125 करोड़ टन है | एक तो भंडार कम है, दूसरे ताँबा अयस्क में एक प्रतिशत से भी कम ताँबा का तत्त्व होता है | अतः उत्पाद खर्चीला है |

उत्पादन – भारत में 1951 ई० में 4 लाख टन ताँबा का उत्पादन हुआ | यह बढ़कर 1971 ई० में 7 लाख टन और 1991 ई० में 52 लाख टन पहुँच गया | 2000 ई० में यह घटाकर 31 लाख टन हो गया | 

वितरण – भारत में ताँबा के मुख्य उत्पादन राज्य झारखण्ड तथा राजस्थान हैं | आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश इत्यादि में भी कुछ ताँबा मिलता है | 

झारखण्ड – ताँबा के उत्पादन में झारखण्ड राज्य का प्रथम स्थान है | यहाँ का वार्षिक उत्पादन 13.2 लाख टन है | 

राजस्थान – राजस्थान देश का दूसरा बड़ा ताँबा उत्पादक राज्य है, जहाँ खेतरी तथा सिहाना के समीप ताँबा की खानें हैं | 

व्यापार – भारत में ताँबा का उत्पादन इसकी मंगा की तुलना में काफी कम है | इस उत्पादन से देश की लगभग 50 % आवश्यकता की पूर्ति होती है | शेष ताँबा का आयत संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कनाडा इत्यादि देशों से किया जाता है | 

अभ्रक (Mica) 

अभ्रक एक अधात्विक खनिज है जो चमकदार, लचकदार, पारदर्शक तथा ताप एवं विधुत निरोधक है | इस कारण इसका उपयोग बिजली उद्योग, वायुयान, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों इत्यादि में होता है | 

भंडार – भारत में अभ्रक का उत्पादन खुली खानों तथा गहरी खानों से किया जाता है | देश में अभ्रक के भंडार का अनुमान लगाना कठिन है, परंतु इसका ज्ञात क्षेत्र 6 हजार वर्ग की० मी० में है | देश में अभ्रक का विशाल भंडार झारखण्ड में कोडरमा, गिरिडीह, हजारीबाग, बिहार ने नवादा तथा जमुई जिले में, आंध्रप्रदेश के नेल्लूर में तथा राजस्थान के अरावली पर्वत क्षेत्र में है | 

उत्पादन – भारत विश्व का सबसे बड़ा अभ्रक उत्पादक देश है, जहाँ विश्व के कुल उत्पादन का 80 % अभ्रक होता है | 

व्यापार – भारत विश्व का सबसे बड़ा अभ्रक उत्पादक एवं निर्यातक देश है | विश्व के कुल अभ्रक निर्यात का 80 % भारत से प्राप्त होता है | भारत का अधिकतर अभ्रक निर्यात कर दिया जाता है | संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट-ब्रिटेन, चीन, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस और जापान भरातीय अभ्रक के मुख्य आयातक देश हैं | 

सीसा (Lead) 

सीसे का अयस्क गैलेना कहलाता है | सीसा मुलायम और भारी धातु होता है | यह ऊष्मा का कुचालक है | इसका उपयोग मिश्रधातु बनाने में होता है | उत्पादन का अधिकतम भाग राजस्थान, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु से प्राप्त होता है | भारत में अपनी आवश्यकता का केवल 25 % सीसे का उत्पादन होता है | शेष भाग आस्ट्रेलिया, कनाडा और म्यांमार से आयात किया जाता है | 

बॉक्साइट 

बॉक्साइट एक अयस्क है | इससे ऐलुयूनिनियम प्राप्त किया जाता है | ऐलुमिनियम एक हल्की धातु है | इसका उपयोग वायुयान, बर्तन, विधुत उपकरण, घरेलू साज-सज्जा के सामान, सफेद सीमेंट तथा रासायनिक वस्तुएँ बनाने में किया जाता है | 

भंडार – भारत में बॉक्साइट का विशाल भंडार है यू० एन० एफ० सी० के अनुसार, मई 2005 तक भारत में 3290 मिलियन टन बॉक्साइट का भंडार है | छत्तीसगढ़, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु में अवस्थित हैं | 

व्यापार – बॉक्साइट का विश्व व्यापार अत्यल्प होता है | इटली, यू० के०, जर्मनी, जापान, कनाडा आदि देशों को भारत से थोड़ा बॉक्साइट निर्यात किया जाता है | 

चूना- पत्थर 

चूना-पत्थर कैल्सियम कार्बोनेट्स अथवा कैल्सियम और मैग्नीशियम कार्बोनेट्स से बनता है | 

        देश के प्रायः सभी राज्यों में चूना-पत्थर पाया जाता है, परंतु देश के कुल उत्पादन का तीन-चौथाई चूना-पत्थर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में निकाला जाता है | 

खनिजों का आर्थिक महत्त्व 

किसी भी देश के औद्योगिक एवं आर्थिक विकास में खनिज संसाधनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | जो देश खनिज सम्पदा के मामले में सम्पन्न होता है, उस देश दी आर्थिक स्थिति भी उतनी ही समृद्ध होती है | भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश है | 

          भारत खनिज संसाधनों में सम्पन्न है | यहाँ लौह-अयस्क एवं अभ्रक के विपुल भंडार हैं | इसके अलावा यहाँ अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ पाये जाते हैं, जो भारत के औद्योगिक 

खनिजों का संरक्षण 

हम सभी जानते हैं कि खनिज अनवीकरणीय संसाधन हैं | इन्हें एक बार प्रयुक्त करने पर दोबारा बनाया नहीं जा सकता | हमें इन खनिजों का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए की भावी पीढ़ी के लिए ये खनिज पर्याप्त मात्रा में सुलभ बने रहे | 

         खनिजों को बचाने के लिए इसके स्थान पर अन्य वस्तुओं के उपयोग के बारे में हमें सोंचना चाहिए | जहाँ जैसे संभव हो धातुओं के चक्रीय उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए | 

 

 

 

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