शक्ति संसाधन – Class 10th Social Science Notes in Hindi

शक्ति संसाधन

       भारत में शक्ति विविध रूपों में उपलब्ध है, जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बिजली (ताप विधुत एवं जलविधुत दोनों) | इन्हें उर्जा के परम्परागत स्रोत कहते हैं | 

शक्ति संसाधन के प्रकार 

शक्ति संसाधन के वर्गीकरण के विविध आधार हैं, जो इस प्रकार हैं – 

  1. उपयोगिता के आधार पर – उपयोगिता के आधार पर ऊर्जा को दो भागों में बाँटा जा सकता है – 
  1. प्राथमिक ऊर्जा ( कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस ) | 
  2. गौण ऊर्जा ( विधुत जो प्राथमिक ऊर्जा से प्राप्त किया जाता है ) | 

2.  स्रोत की स्थिति के आधार पर – स्रोत की स्थिति के आधार पर ऊर्जा को पुनः दो उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है – 

  1. क्षयशील शक्ति संसाधन ( कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस एवं परमाणु खनिज ) | इन्हें समापनीय शक्ति कहते हैं | 
  2. अक्षयशील शक्ति संसाधन ( पवन, प्रवाही जल, सौर शक्ति, समुद्री लहरें ) | इन्हें सतत् शक्ति भी कहते हैं | 

3. संरचनात्मक गुणों के आधार पर – इस आधार पर भी शक्ति के साधनों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – 

  1. जैविक ऊर्जा स्रोत ( मानव एवं प्राणी शक्ति ) | 
  2. अजैविक ऊर्जा स्रोत ( जलशक्ति, पवन शक्ति, सौर ऊर्जा तथा खनिज ऊर्जा ) |

4 . समय के आधार पर – समय के आधार पर शक्ति संसाधन दो प्रकार के हैं | 

  1. पारम्परिक ऊर्जा – कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस | 
  2. गैर-पारम्परिक ऊर्जा – सूर्य, पवन, ज्वार परमाणु | 

ऊर्जा ( शक्ति ) के परम्परागत स्रोत  

वर्तमान औद्योगिक विकास में शक्ति के परम्परागत  स्रोतों की अति महत्त्वपूर्ण भूमिका है | परम्परागत  ऊर्जा के स्रोत के अंतर्गत कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस एवं विधुत शामिल हैं | 

कोयला 

यह भारत में ऊर्जा का मुख्य स्रोत है | देश की लगभग 70 % ऊर्जा की आपूर्ति कोयले से होती है | यह लोहा एवं इस्पात उद्योग का प्रमुख कच्चा माल है | इसका उपयोग कच्चे माल के रूप में मुख्यतः रसायन उद्योग में होता है | इसी उपयोगिता के कारण यह “काला हिरा”   कहलाता है | 

वर्गीकरण – रामान्यत: कोयला चार प्रकार के होते हैं – ऐंथ्रासाइट , बिटुमिनस, लिग्नाइट और पीट | ऐंथ्रासाइट सबसे उत्तम कोटि का कोयला होता है और पीट सबसे निम्न कोटि का कोयला है | ऐंथ्रासाइट कोयले में कार्बन की मात्रा 80 % से अधिक होती है | बिटुमिनस कोयले का सबसे अधिक उपयोग होता है | लिग्नाइट कोयले में कार्बन की मात्रा लगभग 50 % से 60 % पाई जाती है | पीट कोयले में कार्बन का मात्रा 50 % से भी कम होती है | यह लकड़ी की तरह जलता है | यह धुआँ अधिक और ताप कम देता है | 

भारत में कुल कोयला अत्पदन का दो-तिहाई (2/3) कोयला झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा राज्यों से उत्पादित होता है | शेष एक-तिहाई (1/3) कोयला आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, प० बंगाल और उत्तर प्रदेश से प्राप्त होता है | 

वितरण  

भारत में कोयला का उत्पादन मुख्यतः दो क्षेत्रों में होता है – गौंडवाना क्षेत्र एवं टर्सियरी क्षेत्र | 

उत्पादन 

भारत में कोयला उत्पादन राज्यों में झारखंड का स्थान प्रथम है, जहाँ देश के कुल कोयला का लगभग 23 % उत्पादित होता है | छत्तीसगढ़ ( 16 % ), प० बंगाल ( 11 % ) और आंध्रप्रदेश ( 7 % ) अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं | 

पेट्रोलियम  

खनिज तेल का महत्त्व शक्ति के साधनों में बहुत अधिक है | आधुनिक सभ्यता के विकास में इसका बहुत बड़ा योगदान है | वास्तव में यह आधुनिक सभ्यता की रीढ़ है | तेल का पहला कुआँ   1933 ई० में नहरकटीया क्षेत्र में खोदा गया, जिसकी गहराई 10 हजार फीट थी | स्वतंत्रता प्राप्ति तक भारत में खनिज-तेल का एक मात्र उत्पादक राज्य असम था | 

वितरण – भारत में खनिज तेल के तीन क्षेत्र हैं उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र एवं मुम्बई हाई | 

  1. उत्तर पूर्वी क्षेत्र – यह भारत का सबसे पुराना एवं सबसे मुख्य तेल क्षेत्र है | यह असम तथा मेघालय राज्यों में 1300 कि० मी० लम्बी पेटी में फैला हुआ है | 
  2. पश्चिमी तेल क्षेत्र – यह क्षेत्र गुजरात राज्य में स्थित है | यह असम के बाद भारत का दूसरा बड़ा तेल-क्षेत्र है | यहाँ तीन क्षेत्रों से तेल निकाला जाता है | 
  3. मुम्बई हाई तेल-क्षेत्र – यह तेल-क्षेत्र मुम्बई समुद्र तट से 115 कि० मी० की दूरी पर अरब सागर में स्थित है | समुद्र पर सागर सम्रार नामक जल मंच बनाकर कई कुएँ खोदे गए हैं | 1901में पहला तेल शोधन केंद्र डिगबोई में स्थापित हुआ | अभी देश में 18 तेलशोधक केंद्र स्थापित हो चुके हैं, जिनमें मथुरा, विशाखापतम, चेन्नई, हल्दिया, पानीपत और कोचीन भी सम्मिलित हैं | 

उत्पादन – 

                  विश्व के तेल उत्पादक देशों में भारत को कोइ महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं है | इससे देश की आवश्यकता तक पूरी नहीं हो पाती | सरकार ने खनिज तेल की खोज करने और उत्पादक बढ़ाने के लिए खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ( ONGC ) तथा ऑयल इंडिया लिमिटेड ( OIL ) की स्थापना की है | 

व्यापार – 

      2001 ई० में देश में कुल 319 लाख टन कच्चा तेल का उत्पादन हुआ, किन्तु तेल की खपत 1000 लाख टन थी | स्पष्टत: आवश्यकता से कम ( 33 % ) उत्पादन होने के कारण भारत को खनिज तेल का आयत करना पड़ता है |  

प्राकृतिक गैस 

  प्राकृतिक गैस व्यापारिक ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत बन कर सामने आ रही है | यह पेट्रोलियम के साथ ही पाई जाती है | भारत में लगभग 2350 करोड़ घन मीटर प्राकृतिक गैस की खपत है | भारत में 70,150 करोड़ घन मीटर प्राकृतिक गैस के ज्ञात भंडार हैं | 

                भारत में प्रतिवर्ष 2800 करोड़ घन मीटर गैस निकाली जाती है | इसका तीन-चौथाई ( 3/4 ) से भी अधिक उत्पादन मुम्बई हाई में होता है | भारत में प्राकृतिक गैस के परिवहन, संसाधन प्रक्रिया और बाजार में आपूर्ति का दायित्व भारत गैस प्राधिकरण लिमिटेड ( GAIL ) का है | यह 5340 कि० मी० लम्बी पाइप लाइनों द्वारा परिसंचालन करती है | इस कंपनी के पास 7 एल० पी० जी० आपूर्ति संयंत्र हैं | इनमें से दो मध्यप्रदेश, दो गुजरात, एक-एक असम, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश है | 

विधुत  

व्यक्तिगत तथा राष्ट्र की प्रगति और सम्पन्नता के लिए विधुत बहुत महत्त्वपूर्ण है | भारत में विधुत की कुल उत्पादन क्षमता 1,05,000 मेगावॉट है | देश में विधुत की प्रति व्यक्ति खपत 380 किलोवॉट/घंटे हैं | चीन में विधुत की प्रति व्यक्ति खपत 745 किलोवॉट/घंटे तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में यह 12000 किलोवॉट / घंटे हैं |  विधुत का उत्पादन तीन तरीकों से किया जाता है – पहला ताप विधुत के रूप में, दूसरा जल विधुत के रूप में तथा तीसरा नाभिकीय विधुत के रूप में | 

ताप विधुत 

ताप विधुत कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से तैयार की जाती है | भारत में 315 से अधिक ताप विधुत केंद्र हैं | असम, झारखंड, गुजरात, मध्यप्रदेस, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश और प० बंगाल प्रमुख ताप विधुत उत्पादक राज्य हैं | 

        2004 में ताप विधुत का उत्पादन 785 हजार मेगा वाट हुआ, जो 467 बिलियन यूनिट के बराबर है | ताप विधुत का उत्पादन का कार्य राष्ट्रीय ताप विधुत निगम करता है | 

जल विधुत 

महत्त्व एवं उपयोग – आधुनिक युग में जलविधुत शक्ति का महत्त्व काफी अधिक है | अन्य साधनों की अपेक्षा यह शक्ति का सबसे सस्ता साधन है | जलविधुत शक्ति का भंडार अक्षय ( Enexhaustible ) होता है, जबकि अन्य साधनों का भंडार नष्ट होने वाला है | 

          जलविधुत का महत्त्व भारत में निम्नलिखित कारणों से अधिक है – 

  1. देश के दक्षिणी भाग में कोयले के कारण जलविधुत का विकास नितांत आवश्यक है | 
  2. उत्तम कोयले का भंडार सिमित है, जिसके संरक्षण की आवश्यकता है | अत: समाप्त न होने वाला जलविधुत का विकास महत्त्वपूर्ण है | 
  3. भारत में पेट्रोलियम का पर्याप्त उत्पादन नहीं होता है और यह महंगा पड़ता है | 
  4. यहाँ जल संसाधन अपरिमित है, जिसका उपयोग जल विधुत उत्पादन के बाद सिंचाई तथा अन्य कामों में किया जा सकता है | 
  5. जलविधुत कोयला से सस्ती होती है तथा इसका संचालन भी सस्ता होता है | 
  6. जलविधुत के उत्पादन तथा वितरण में अपेक्षाकृत कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है | 
  7. जलविधुत की सहायता से लघु तथा कुटीर उद्योगों की स्थापना की जा सकती है तथा उद्योगों का विकेंद्रीकरण किया जा सकता है | 
  8. जिन उद्योगों में सस्ती और बिजली चाहिए उनके लिए जलविधुत विशेष महत्त्वपूर्ण है ; जैसे रसायन और अल्यूमिनियम उद्योग | 

भौगोलिक दशाएँ – जलविधुत उत्पादन के लिए विशेष भौगोलिक दशाओं का होना आवश्यक है | ये अनुकूल भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं – 

  1. पर्याप्त वर्षा का होना, जिससे नदियों में सालों भर पानी बहता रहे | 
  2. ऊँची-नीची भूमि जिससे पानी तेजी से ऊपर से नीचे गिर सके, जैसे पहाड़ी भूमि या जलप्रपात | 
  3. प्राकृतिक तथा बांध द्वारा बनाई गई झीलों से निकालने वाली जल-धाराओं का सतत प्रवाह | 
  4. विधुत की मांग का व्यापक क्षेत्र | 
  5. तकनीक एवं पूँजी | 

नाभिकीय विधुत   

यह यूरेनियम, वैनेडियम, एंटीमनी, ग्रेफाइट, मोनाजाइट, ( थोरियम ) जैसे परमाणु खनिज से बनाया जाता है | भारत में थोरियम का विशाल भंडार (विश्व का लगभग 50 % ) है | भारत में परमाणु ऊर्जा केन्द्रों से सकल ऊर्जा केन्द्रों से सकल ऊर्जा उत्पादन का का क्षमता 2750 मेगावॉट प्रतिवर्ष है जो कुल विधुत उत्पादन का 4 % है | 

         भारत सरकार ने परमाणु-विधुत गृहों की स्थापना इन स्थानों पर की है – 

  1. तारापुर – मुम्बई के निकट तारापुर में भारत का पहला आणविक रिएक्टर 1955 में स्थापित किया गया | यह एशिया का सबसे बड़ा परमाणु विधुतगृह है | इसमें थोरियम से प्लुटोनियम बनाकर विधुत उत्पन्न किया जाता है, क्योंकि भारत में विश्व का 50 % थोरियम पाया जाता है | यहाँ 200 मेगावाट की दो इकाइयाँ हैं | 
  2. रावतभाटा ( राणा प्रताप सागर ) – यह राजस्थान के कोटा नगर में चंबल नदी के किनारे स्थित है | इसकी वर्त्तमान क्षमता 100 मेगावाट है | इसके साथ-साथ 235 मेगावाट की दो इकाइयों का निर्माण हो रहा है | यह कनाडा के सहयोग से बना है | 
  3. कलपक्कम – यह संयंत्र तमिलनाडु के कलपक्कम में स्थित है | यह पूर्णत: स्वदेशी तकनीक से बना है | यहाँ 235 मेगावाट की दो रिएक्टर क्रमशः 1983 और 1985 से चल रही है | 
  4. नरोरा – यह उत्तरप्रदेश में बुलंदशहर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है | इसमें भी 235 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टर हैं | 
  5. काकरापड़ा – यह गुजरात के समुद्र तट पर बना है और 1992 से विधुत उत्पादन कर रहा है | 
  6. कैंगा – यह कर्नाटक के कारवार में स्थित है | 
  7. कुडन कूलम – रूस के सहयोग से यह तमिलनाडु के तूतीकोरिन तट पर बन रहा है | 

ऊर्जा ( शक्ति ) के गैर-परंपरागत स्रोत  

हाल के वर्षों में ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों की महत्ता बढ़ रही है | इनमें सौर, पवन, ज्वार तथा बायोगैस से प्राप्त ऊर्जा उल्लेखनीय हैं |  

ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा – समुद्री ज्वार तथा तरंग के गतिशील जल में अपार ऊर्जा रहती है | भारत के समुद्र तटीय क्षेत्र में इस ऊर्जा के उत्पादन की संभावना प्रबल है | राष्ट्रीय हाइड्रोपावर कॉरपोरेशन ने कच्छ की खाड़ी में 900 मेगावॉट का ज्वारीय विधुत ऊर्जा का संयंत्र स्थापित किया है | 

सौर ऊर्जा – भारत एक ऊष्ण कटिबंधीय देश है | इसलिए यहाँ सौर ऊर्जा की उत्पादन क्षमता और उपयोगिता की अधिक संभावना है | यह लगभग 20 मेगावॉट प्रति वर्ग कि० मी० प्रति वर्ष है | 

        थार मरुस्थल देश में सौर शक्ति का सबसे बड़ा केंद्र बन सकता है | देश में कई स्थानों पर सौर संयंत्रों की स्थापना की गई है | भारत में सबसे बड़ा सौर संयंत्र भुज ( गुजरात ) के पास माधोपुर में स्थापित किया गया है | 

पवन ऊर्जा – ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों में सौर ऊर्जा के बाद पवन ऊर्जा का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है | भारत में लगभग 23,000 मेगावॉट पवन ऊर्जा की उत्पादन क्षमता है | देश में लगभग 90 स्थानों की पहचान पवन ऊर्जा केंद्र के रूप में की जा चुकी है, जिसकी उत्पादन क्षमता लगभग 50,000 मेगावॉट है |  

        गुजरात में कच्छ स्थित लाम्बा पवन ऊर्जा संयंत्र अपने तरह का एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र है | भारत में मार्च, 2006 तक 5340 मेगावॉट विधुत का उत्पादन हो चुका है | 

बायो गैस – वर्तमान समय में बायो गैस भी गैर-परम्परागत ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बन गया है | ग्रामीण क्षेत्रो में घरेलू उपभोग के लिए झाड़-झंखाड़ो, कृषि अवशिष्टों, जीव-जन्तुओं और मानव मल-मूत्र के उपयोग से बायो गैस पैदा की जाती है | जैव पदार्थों के अपघटन से गैस बनती है | इस गैस की तापीय क्षमता मिट्टी के तेल तथा कोयले एवं लकड़ी की तापीय क्षमता से अधिक होती है | 

भूतापीय ऊर्जा – गीजर कूपों से निकालने वाले गर्म जल तथा गर्म झरनों से भी ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है | हिमाचल प्रदेश के मनीकरण, लद्दाख की दुर्गाघाटी तथा मध्यप्रदेश के तातापनी में भूतापीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित हैं | तातापानी में तो इस ऊर्जा का उपयोग भी होने लगा है | 

ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण  

भारत ,मे ऊर्जा के संसाधनों के संरक्षण के लिए ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 बनाया गया है | यह मार्च, 2002 से प्रभावी है | इसमें ऊर्जा के कुशल उपयोग तथा इसके संरक्षण के उपाय सुझाए गए हैं | ऊर्जा संरक्षण हेतु निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष जोर देने की आवश्यता है – 

  1. सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का अधिक से अधिक और निजी वाहनों का कम-से-कम उपयोग करना चाहिए | 
  2. आवश्यकता नहीं होने पर बिजली के स्विच बंद कर देने चाहिए | 
  3. शक्ति बचाने के लिए युक्तियाँ अपनानी चाहिए | 
  4. अपने बिजली के उपकरणों को नयमित रूप से जाँच करते रहना चाहिए | 
  5. ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों के उपयोग पर अधिक से अधिक बल देना चाहिए | 
  6. ऊर्जा के नवीन क्षेत्रों की खोज की जानी चाहिए | अरब सागर, कृष्णा-गोदावरी क्षेत्र, राजस्थान आदि में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस के भंडार मिले हैं | 
  7. ऊर्जा संकट वैश्विक संकट है | अत: इससे निपटने के लिए अन्तराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है | 

 

 

 

 

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