हमारी वित्तीय संस्थाएँ – Bihar Board Class 10th Social Science Question-answer 2023

लघु उत्तरीय प्रश्न 

1. वित्तीय संस्थान से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – वित्तीय संस्थान के अंतर्गत बैकों, बीमा कंपनियों, सहकारी समितियों तथा देशी बैंकरों आदि को सम्मिलित किया जाता है जो साख अथवा ऋण के लेन-देन का कार्य करती है | 

2. सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएँ क्या हैं ? 

उत्तर – सूक्ष्म वित्त के अंतर्गत स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से निर्धन परिवारों को बैंक आदि संस्थागत स्रोतों से साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है | इन्हें सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएँ कहते हैं |

3. निम्नांकित के विस्तारित रूप लिखें | 

 ( i ) आर० वि० आई० ( RBI ) ( ii ) जी० एन० पी० ( GNP ) 

उत्तर –

  1. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ( Reserve Bank of India ) 
  2. ग्रोस नेशनल प्रॉडक्त ( gross national product ) 

4. किसानों को साख या ऋण की आवश्यकता क्यों होती है ? 

उत्तर – अधिकांश भारतीय किसानों को कृषि कार्यों के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन तीन प्रकार की सख्की आवश्यकत होती है | अल्पकालीन साख की आवश्यकता प्रायः 6 से 12 महीने तक के लिए होती है,  इसलिए इसे मौसमी साख भी कहते हैं | इनकी माँग खाद एवं बीज खरीदने, मजदूरी चुकाने तथा ब्याज आदि का भुगतान करने के लिए की जाती है | प्रायः , फसल कटने के बाद किसान इन्हें वापस लौटा देताद है | मध्यकालीन साख कृषि यंत्र, हल, बैल आदि खरीदने के लिए ली जाती है | इनकी अवधि प्रायः 1 वर्ष से 5 वर्ष तक के लिए होती है | दीर्घकालीन साख की अवधि प्रायः 5 वर्षों से अधिक की होती है | किसानों को सिंचाई की व्यवस्था करने, भूमि को समतल बनाने, महँगे कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए इस प्रकार की साख या ऋण को आवश्यकता होती है | ये ऋण क्षेत्र में स्थायी सुधार लाने के लिए होते हैं  | 

5. सूक्ष्म वित्त योजना क्या है ? अथवा, सूक्ष्म वित्त योजना को परिभाषित करें | 

उत्तर – अनेक विकासशील देश यह अनुभव कर रहे है कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे पारंपरिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों से निर्धनता की समस्या का समाधान संभव नहीं है | इसका प्रमुख कारण यह है कि निर्धनता मुख्यत: इन देशों की कमजोर ग्रामीण अधिसंरचना के कारण उत्पन्न होती है | इस दृष्टि से सूक्ष्म वित्त योजना निर्धनता निवारण का एक सक्षम विकल्प है | इसके द्वारा स्वयं-सहायता समूहों को व्यवसायिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों से संबद्ध करने, अर्थात जोड़ने का प्रयास किया जाता है | इस योजना द्वारा निर्धन परिवारों को स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से बैंक आदि संस्थागत स्रोतों से साख अथव ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं | 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न               

1. व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें | 

उत्तर – बैंक शब्द से हमारा अभिप्राय प्रायः व्यवसायिक बैंकों से ही होता है | व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित कार्यों का निष्पादन करते हैं | 

  1. जमा स्वीकार करना – लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है | व्यावसायिक बैंक प्रायः चार प्रकार के खातों में रकम जमा करते हैं – स्थायी जमा, चालू जमा, संचयी जमा तथा आवर्ती जमा | स्थायी जमा में एक निश्चित अवधि के लिए रकम जमा की जाती है | ऐसी जमा पर ब्याज की दर सबसे अधिक होती है | इसका कारण यह है कि बैंक इस धन को नि:संकोच किसी अन्य व्यक्ति सो उधार देकर मुनाफा कमा सकता है | चालू जमा वे हैं जिनमें जमाकर्ता अपनी इच्छानुसार कभी भी रुपया जमा कर सकता है या निकाल सकता है | इन जमाओं पर बैंक प्रायः कुछ भी ब्याज नहीं देते या नाममात्र का ब्याज देते हैं | संचयी जमा मुख्यत: मध्यमवर्ग के लिए होती है तथा इसपर ब्याज की दर स्थायी जमा से कम रहती है | आवर्ती जमा में प्रतिमाह एक निश्चित रकम जमा के रूप में एक निश्चित अवधि जैसे 60 या 72 माह के लिए बैंक स्वीकार करते हैं तथा उसके बाद एक निश्चित रकम देते हैं |
  2. कर्ज देना – यह व्यवसायिक बैंकों का दूसरा प्रमुख कार्य है | बैंक अपने ग्राहकों की रकम को जमा करते हैं तथा इस जमा रकम से उनलोगों को कर्ज देते हैं जिन्हें उद्योग या व्यवसाय आदि के लिए धन की आवश्यकता होती है | 
  3. एजेंसीसंबंधी कार्य – व्यवसायिक बैंक अपने ग्राहकों के एजेंट या प्रतिनिधि का कार्य भी करते हैं | वे उनके ब्याज, लाभांश आदि का भुगतान प्राप्त करते हैं, उनके आदेशानुसार प्रतिभूतियों, अंश-पत्रों आदि का क्रय-विक्रय करते हैं तथा उनकी ओर भुगतान भी करते हैं | 
  4. सामान्य उपयोगिता-संबंधी कार्य – उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त व्यवसायिक बैंक कई अन्य कार्य भी करते हैं, जिन्हें सामान्य उपयोगिता-संबंधी कार्य कहा जाता है | 

2. राज्य स्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत के कार्यों का वर्णन करें | 

उत्तर – राज्य के संस्थागत वित्तीय स्रोतों में व्यवसायिक बैंक, सहकारी बैंक, भूमि विकास बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक महत्त्वपूर्ण हैं | इनका मुख्य कार्य उद्योग, व्यापार एवं कृषि की साख-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना है | बिहार में वित्त के संस्थागत स्रोतों में व्यावसायिक बैंक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं | राज्य के कुल ऋण वितरण का लगभग 65 प्रतिशत इन्हीं के माध्यम से होता है | व्यावसायिक बैंक कृषि एवं उद्योग दोनों ही क्षेत्रों को ऋण प्रदान करते हैं, जबकि क्षेत्रीय बैंक तथा सहकारी संस्थाएँ मुख्यतया कृषि एवं ग्रामीण साख की व्यवस्था करती है | सहकारी संस्थाओं को कृषि साख का आदर्श स्रोत माना जाता है | परंतु, बिहार में सहकारी समितियों के पास साधनों का आभाव है, इनका प्रबंध एवं संचालन दोषपूर्ण है तथा राज्य के कृषि ऋण में सहकारी संस्थाओं की हिस्सेदारी मात्र 10 प्रतिशत है | क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को साख प्रदान करना है | इन बैंकों की कार्य-पद्धति व्यावसायिक बैंकों के समान ही है, लेकिन इनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित है | बिहार में 3 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं तथा इनमें प्रत्येक बैंक राज्य के एक विशेष क्षेत्र में सेवा प्रदान करता है | 

3. स्वयं-सहायता समूह में महिलाएँ किस प्रकार अपनी भूमिका निभाती हैं ? वर्णन करें | 

उत्तर – पिछले कुछ वर्षों के अंतर्गत ग्रामीण निर्धन परिवार को कर्ज या उधार देने के कुछ नए तरीके अपनाए गए हैं | इनमें एक तरीका ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन व्यक्तियों को छोटे-छोटे स्वयं-सहायता समूहों में संगठित करने और उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है | स्वयं-सहायता समूहों के संचालन में महिलाओं की पहत्त्वपूर्ण भूमिका होती है तथा अधिकांश स्वयं-सहायता समूह महिलाओं के द्वारा संगठित किए गए हैं | एक विशेष सहायता समूह में एक-दूसरे की पड़ोसी लगभग 15-20 महिलाएँ सदस्य होती हैं | ये महिलाएँ नियमित रूप से बचत करती हैं तथा इस बचत से ही इनकी पूँजी का निर्माण होता है | सदस्य महिलाएँ अपनी ऋण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटे-मोटे कर्ज इस स्वयं-सहायता समूह से ही ले सकती हैं | यदि यह समूह नियमित रूप से बचत करता है तो एक-दो वर्ष बाद वह किसी बैंक से ऋण लेने योग्य हो जाता है | बैंक समूह के नाम पर ऋण देता है तथा इसका उद्देश्य स्व-रोजगार के अवसरों का सृजन करना है | समूह द्वारा अपने सदस्यों को उनकी बंधक जमीन छुड़ाने, गृह-निर्माण, सिलाई मशीन, पशु इत्यादि संपत्ति खरीदने के लिए छोटे-छोटे ऋण दिए जाते हैं | प्रायः , निर्धन महिलाएँ ऋण लौटने के अपने दायित्व के प्रति बहुत गंभीर होती है | यही कारण है कि बैंक भी इन स्वयं-सहायता समूहों को बिना किसी जमानत के ऋण देने के लिए तैयार हो जाते हैं | 

      इस प्रकार, स्वयं-सहायता समूह की महिलाएँ ग्रामीण निर्धनों को संगठित करने और उन्हें जागरुक बनाने में सहायक सिद्ध हुई हैं | इससे गहिलाएँ स्वावलंबी हुई हैं तथा उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है | 

 

 

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